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केंद्रीय शिक्षा परामर्श बोर्ड की बैठक में क्या हुआ?

बच्चे, पढ़ना सीखना, बच्चे का शब्द भण्डार कैसे बनता हैकेंद्रीय शिक्षा परामर्श बोर्ड (सीएबीई) की बैठक में शिक्षा से जुड़े आँकड़ों के साथ-साथ विभिन्न मुद्दों पर बात हुई।  इस बैठक में दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर देना चाहिए। खैर नाम बदलने से क्या होगा? नाम रखने और बदलने की अपनी राजनीति है। इस बात से हम और आप अवगत है। उन मुद्दों पर पर ग़ौर करते हैं, जिनका जिक्र इस बैठक में हुआ।

किम मुद्दों पर चर्चा हुई

इस बैठक में बच्चों के नामांकन की जानकारी ली गई। उसी फॉर्मेट में जिस फॉर्मेट में शिक्षक स्कूल से जुड़ी डाक में जानकारी भरते हैं। यानि बीजीटी (ब्वायज, गर्ल्स और टोटल)। स्कूलों में नामांकन की सूचना के लिए इसी शब्दावली का उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही स्कूल में भवनों की स्थिति से जुड़े आँकड़ों पर भी बात हुई।
बैठक के दौरान आठवीं तक बच्चों को पास करने की नीति (नो डिटेंशन पॉलिसी) को समाप्त करने की माँग दोहराई गई। इस माँग के पीछे एक तर्क दिया गया कि इस नीति को लागू करने से पाठ्यक्रम में जरूरी बदलाव नहीं किए गए। शिक्षकों को इस बात का प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया कि इस नीति को क्रियान्वित कैसे करना है? यह बात काफी हद तक सही भी है कि इस आदेश के कारण शिक्षकों को लगा कि अब तो उनके हाथ में कुछ नहीं है।मगर इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं हो पाया।

जमीनी सच्चाई

“स्कूल में बच्चों को प्रवेश देना है, मारना-पीटना नहीं है और आठवीं तक पास कर देना है।” शिक्षा के अधिकार का मोटा-मोटा आशय इसी बात से लगाया गया था। ठीक इसी बात का जिक्र बहुत से शैक्षिक मंचों से बार-बार सुनाई देता था। इसके बावजूद कुछ शिक्षकों ने उन बच्चों को पहली कक्षा में रोक लिया जो कक्षा के अनुरूप स्तर नहीं हासिल कर पाए थे। उनका कहना था कि यह बच्चा अगर अगली क्लास में चला गया तो फिर कभी भी पढ़ना-लिखना नहीं सीख पाएगा।
 
कम उम्र के बच्चों का मुद्दा इस बार की सीएबीई बैठक में उठा। इस मुद्दे को उठाते हुए कहा गया कि कम उम्र के बच्चों के सीखने वाले मुद्दे की तरफ ध्यान देने की जरूरत है इसके साथ ही शिक्षकों को ग़ैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्त किये जाने का मुद्दा भी उठाया गया। शिक्षा के अधिकार कानून के दायरे में ऐसे बच्चों को लाने की बात हुई जो इस कारण से शिक्षा के अधिकार से वंचित हो रहे हैं। इसके साथ ही शिक्षा के बजट को बढ़ाने (यह वर्तमान में जीडीपी का 4.5% है) का मुद्दा भी उठा।
आखिर में इस केंद्रीय शिक्षा परामर्श बोर्ड की बैठक में बहुत से जरूरी मुद्दों पर ख़ास चर्चा नहीं हुई। जिसका सामना वर्तमान में देश की शिक्षा व्यवस्था कर रही है। इस स्वरूप में बदलाव का जिक्र करने की बात भी इस बैठक के बारे में कही गई। यानि चर्चाओं से बदलाव की उम्मीद छोड़कर ज़मीनी स्तर पर काम की गुणवत्ता को बेहतर बनाना हाल के परिदृश्य के शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने और चुनौतियों का सामना करने के लिए सबसे बेहतर है।

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