मछलियां साथ क्यों रहती हैं?

एजुकेशन मिरर पर पढ़िए यशस्वी की तीसरी पोस्ट। बच्चों से बातचीत का ऐसा अद्भुत अनुभव शायद ही पहले हिंदी में पढ़ने का अवसर मिला होगा। आपकी क्या राय है? जरूर बताएं।

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यह तस्वीर अहमदाबाद के एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे योगेश ने बनाई है।

अहमदाबाद के एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले योगेश का मन बहुत ही चंचल है। मगर जब वो कोई काम करता है तो वह उसमें पूरी तरह डूब सा जाता है। ऐसे में उसका पूरा ध्यान अपने काम की तरफ होता है। वह समूह में बैठकर दोस्तों के साथ जमकर मस्ती तो करता है लेकिन साथ ही अपना कल्पना की दुनिया में लगातार आगे बढ़ रहा होता है और बनाता है अपनी सोच की कला

चित्रों को समझाने का प्यारा अंदाज

योगेश को चित्र बनाना बेहद पसंद हैं और चित्र बनाने की बात पर चहक कर कहता है ये बनाता हूँ ,वो बना दूंगा । हमेशा कहता है आप फिर स्कूला आना मैं और भी सोचकर बनाऊंगा  और शुरू हो जाता है। कुछ लाइनें खिचता हैं अधूरी सी और उसकी कला  हर पल नयीनयी कहानी के  रूप  में आगे बढ़ने लगती हैं । वो हर बात को दो -तीन तरह से मुझे बताता है क्योकि उसकी नज़र में तो मुझे गुजराती  समझ नहीं  आती ।

छोटी मछली लोटे के अंदर क्यों?

जब वह किसी चित्र में  एक छोटे भैया को फुटबाल खेलते हुए बनाता हैं तो वो भैया फूल सूंघते हैं, गुब्बारे उड़ाते रहते हैं। जब वह छोटी सी बेबी बनाता है तो कहता हैं की एक दिन कहीं देखा था उसने और जब उस बेबी के पैर नहीं  दिखते तो तर्क देते हुए कहता हैं की अरे छोटा -छोटा पग है न छोटी बेबी का तो पैर मोड़कर सो गयी है । अपनी मछली को उसने छोटे लोटे के अंदर इसलिए डाल दिया क्योंकि वो घास पे बेचारी अकेले ही टहल रही थी

fishथोड़ी देर बाद वो कुछ सोच कर दौड़ता हैं और कोने में  जाकर कुछ बनाता  हैं। फिर असीम  खुशी के साथ  दिखाता है की उसने मछली के लिए  घर  बनाया है  जिसमे  खूब  सारी  मछलियाँ इसलिए साथ में  रहती  है  क्योकि अकेले तो वो बोर हो जाएँगी  ना.और  उनके  लिए   दरवाज़ा  भी बनाया हैं ताकि जब मछलियों का मन नहीं लगेगा  तो वो उसे खोलकर घुमने चली जाएँगी

उसके घर में  खूब सारे हाथी हैं । सब अलग -अलग कमरे में रहते हैं , और उनके पंख भी हैं । क्या वो उन हाथियों के पास जाता है, तो सीधा -सादा सा जवाब मिलता हैं की -नहीं वो तो अभी बहुत छोटा है ना इसलिए । मगर मम्मी रोज जाती है उनके कमरों में । दो तिरछी मोटी लाइन  उसके हाथी का एक पावँ है और   बाकी पैर कहाँ  हैं ,तो       बताता हैं की हाथी उधर जा रहा था ना तो झाड़ के पास वाले  झाड़ के पीछे  बाकी पैर छुप गएँ हैं ।

तीन  तरफ से घिरी एक लाइन को वो लड़की कहता है और एक छोटा सा बिंदु उसका वो तरबूज  है जिसे खरीदने के लिए बगल में  एक लड़की  खड़ी  हैं।   २ मिनट  तक वो सोचता है और  दुखी होकर कहता है की   इसके  पास तो  पैसे  ही नहीं हैं  खरीदने  के लिए। लेकिन टीचर ये ना  दौड़कर पैसे मांगने  अभी   ही

दिल के अंदर का झूला

 घर  जाएगी  । फिर  तीन लाइन जो की उसके लिए लड़की थी तुरंत वो छोटी बच्ची का घर बन जाता हैं । इस  तरह मैं  भी उसकी कल्पना में समाहित हकीकत को समझने के लिए अपनी बातों  को कुछ इस तरह आगे बढाया की अब तुम वो सोचकर बनाओ जो  अभी तक नहीं  बनाया है । चुटकी बजाकर उसने शुरुवात  की से दिल के अंदर झूला बनाने  से और हमारी बातें आगे बढ़ी कुछ इस तरह —

योगेश —            मैं ना दिल में झूला बनाता हूँ  टीचर  ।

मैं–                      दिल में ?

योगेश —             हाँ देखना आप (कुछ समय बाद वो वापिस आया ) ये दिल है और उसमें झूला और पता

                            है ये दिल का छोटा बच्चा है .अच्छा है ।

मैं–                      हाँ ।

योगेश —            ये दोनों ना खो गए थे   बहुत  दिनों के बाद मिले हैं इसलिए सजे हुए हैं ।

picture-by-yashswi-made-by-yogeshचंदा मामा पहले छोटे थे, अब बड़े हो गए हैं

( फिर वो एक  गोला  बनाने लगा  तो  मैंने पूछा  क्या  बना   रहे हो योगेश )

योगेश —                 चंदा मामा ( फिर वो आँखें बनाकर आस -पास लकीरें खीचने लगा जब  मैंने पूछा

                                 ये  क्या हैं तो ………)

योगेश —                शांति  से बैठो मैं समझा देता हूँ  आपको  …ये लड़की हैं ।

मैं —                        मगर  अभी तो ये चंदा मामा थे ना ?

योगेश —                हाँ मगर वो भी तो पहले छोटे थे न ,बाद मैं बड़े हो गए।

‘ये दीवानी लड़की है, संगीत सीखती है’

कुछ देर तक उसी चित्र को देखते  हुए लकीरों को दिखाकर  बोला ये छोटी लड़की हैं डांस  सिखने जा रही है  ,औररर….ये पूरे बाड़( तीर ) हैं न लड़की को मारने आ रहें हैं और ये चिल्ला रही हैं -बचाओ -बचाओ । फिर वो चिंता  में  पड़ गया एकदम चुप होकर बोला   अब कैसे बचेगी ये। और तुरंत  दूसरी तरफ एक बड़ी लाइन सीधी खिचीं और चिल्लाकर खुशी से बोला।

योगेश —                    बच गयी -बच गयी, निकल गयी लड़की टीचर और दूसरी तरफ  फटाफट दूसरी

                                   लड़की   बनायीं और  प्यानो भी ।

मैं—                           ये लड़की क्या कर  रही हैं?

योगेश —                    ये दीवानी लड़की हैं ,प्यानो बजा रही हैं .संगीत सिखाती हैं ।

(दूसरी लड़की बगल में बनाकर  कहा ये वाली भी प्यानो सिखने जा रही हैं इसके पास) इसके बाद सफरजन के पास खूब सारी छोटी -छोटी लकीरें बनायीं ।

मैं–                           अरे ये क्या हैं ?

योगेश —                सफरजन हैं वो जो दिवाली में पटाखें बजाते  हैं तो जो उसके छोटे -छोटे तन

                               निकलते हैं न .उसके तन से जो विश मांगते  हैं वो पूरी हो जाती हैं ।

मैं—                        अच्छा आप मांगते हो ?

योगेश —                  हाँ …।

मैं —                       पूरी हुयी ?

योगेश —                 (चुप ) हाँ कभी -कभी तो हुयी थी ।

ये देखो ये छोटी सी नदी हैं न और दोनों तरफ सीढ़ी हैं ।छोटी मछली है छोटी नदी में।सीढ़ी पर से चढ़कर आती हैं ,नदी में खूब नहाती हैं और फिर इस सीढ़ी से बाहर चली जाती है – सूखने के लिए। दूसरी जगह एक सीढ़ी बनायीं बड़ी सी और वह से बच्चे -बड़े जल्दी -जल्दी फिसल रहे  थे । फिर वो बाहर चला गया पानी पीने ये वादा लेकर की आप कल स्कूल जरुर आओगी।

yashswi(लेखक परिचयः यशस्वी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एमए किया। इसके बाद गांधी फेलोशिप में दो वर्षों तक गुजरात के सरकारी स्कूलों में प्रधानाध्यापक नेतृत्व विकास के लिए काम किया। यशस्वी को स्कूली बच्चों से बात करना और उनके सपनों व कल्पनाओं की दुनिया को जानना बेहद पसंद है।

योगेश से यशस्वी की बातचीत अहमदाबाद में सरकारी स्कूलों के साथ काम करने के दौरान ही हुई थी। उन दिनों की बहुत सी बातें यशस्वी की डायरी में दर्ज़ हैं। जो आप सभी के साथ एजुकेशन मिरर पर साझा हो रही है। )

3 Comments

  1. बचपन और जिज्ञासा का चोली-दामन का रिश्ता है। बच्चे बग़ैर सीखे तो रह ही नहीं सकते। वे तो पल-पल बहुत सारी चीज़ों को अपने सटीक आब्जर्बेशन से नकल करके अपनाते रहते रहते हैं। गाँव का एक छोटा सा बच्चा हँसिए को जिस सधे हुए अंदाज में बेफिक्री के साथ लेकर चलता है, उसे देखकर हैरानी ही होती है। छोटे-छोटे बच्चे जिस सहजता के साथ पेड़ की ऊंची-ऊंची डालियों पर आम और जामुन तोड़ने के लिए चढ़ जाते हैं, उसे देखकर तो बड़ों का भी साहस जवाब दे जाता है।

    कला का रिश्ता प्रोत्साहन से भी है। उसको समझने और ऐसे अवसर देने से भी जिससे उसको निखरने का मौका मिल सके। उदाहरण के लिए एक चित्रकार ने बताया कि वे अपनी बेटी को रंगों के बीच में खेलने के लिए छोड़ देते थे ताकि वो जो करना चाहे आजादी के साथ कर सके। इस तरह से कूची चलाने और रंगों के शेड्स बनाने का अभ्यास कला के आगामी सफर में उसके काम आएगा। कला का रिश्ता विचारों की स्पष्टता से भी है एक बच्चा जो मूर्तियां बनाने में रुचि रखता है, उसके सवालों ने तो सच में हैरान कर दिया था। उसने जो कहा था, कुछ यों है, “पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले एक बच्चे ने सवाल किया,”सच में भगवान होते हैं क्या?” इस सवाल का क्या जवाब दें। मैंने कहा कि हो सकता है। तो उसने कहा, “मेरी माँ ने भूत देखा है। जैसे भूत होते हैं। वेसे भगवान भी होते हैं।”

    उससे मैंने पूछा, “भूत ज्यादा खतरनाक होते हैं या आदमी?”
    उसने बड़ा रोचक सा जवाब दिया, “आदमी ज्यादा खतरनाक होते हैं। भूत तो केवल परेशान करते हैं। आदमी तो जान ले लेते हैं।”

    इस बच्चे ने बातों ही बातों में एक सवाल किया, “कला ज्यादा जरूरी हैं या पढाई?” इस सवाल पर मेरा जवाब था, “दोनों जरूरी है। कला की भी तो पढ़ाई होती है।”

    बच्चे ने फिर सवाल किया, “ज़िंदगी में मेहनत काम आती है या पढ़ाई?”
    सबसे पहले तो इस सवाल को सुनकर मैं चौंका कि इतना सुंदर सवाल सुने हुए जैसा जमाने बीत गए हों। फिर उसने कहना शुरू किया कि उसका बड़ा भाई पढ़ाई में अच्छा है। लेकिन मेहनत वाले काम बहुत कम करता है।

    फिर उसने कहा कि मैंने घर बनाने में मेहनत की। बाकी सारे काम करता हूँ। मैं पढ़ाई कम करता हूँ। मगर मेहनत ज्यादा करता हूँ। कला, जीवन, पढ़ाई और मेहनत को लेकर बच्चे की समझ चौंकाने वाली लगी।

  2. शुक्रिया संतोष भाई।

  3. बच्चों का मन बहुत ही चंचल होता है ये हम सब जानते हैं,और वो तरह तरह की खोजी प्रवृति वाले काम करते हैं। उनके आसपास जो कुछ भी होगा वे उसको पूरा जान्ने की कोशिश करेंगे। हर एक चीज़ जो उनके लिए नई होगी, उसके बारे में तो वे जरूर जानना चाहते हैं। चाहे फिर बड़े कितना ही मना करें।

    यही हालत कुछ मेरी भी थी बचपन में। पापा जो भी खिलौना लाकर देते उसको मैं महज़ एक सप्ताह में खोल कर पूरी लगन से पड़ताल करता। मेरी इस हरकत पर फिर पापा मुझे डांटते| गर्मियों की दोपहरी में जब स्कूल से वापस आता और घर में मम्मी खाना खिला कर सोने को कहती और खुद सो जाती तो फिर मै धीरे से चुपके-चुपके अपने घर के बगीचे में न जाने कौन कौन सी कलाएं रचता था।

    कभी एक गाँव में खेतों की तस्वीर बनाता या कभी सिंचाई के श्रोत और नदी नालियां बनाता ताकि एक जगह से पानी डाला जाए तो एक साथ बगीचे में पहुच जाता। ये सब देख कर मम्मी कहतीं दोपहर में मत खेला करो लू लग जाएगी। लेकिन मैं हर रोज़ वही का करता। आखिरकार मैं सिंचाई को आसान बना देता और नलके के पानी को बेकार करने के बजाये उसको सिंचाई के उपयोग में लेता हूँ। फिर मम्मी को लगता कि मैंने कुछ सही किया है।

    इसी तरह मेरे प्रयोगों और कामों का सिलसिला जारी रहता।
    इस तरह की अनेकों कलाकारियाँ मैं करता ही रहता था, और हर बच्चों में कलाकारी के गुण होते हैं, बस उन्हें एक वातावरण और मौका देना चाहिए, अपनी सहूलियत के लिए या अपनी नौकरी के लिए उनके द्वारा किये जा रहे कामों को रोकना नही चाहिए, अगर बच्चों का दिमाग सोचने के लिए रुक जाएगा तो वो शक्ति हीन हो जायेंगे और उनमे तर्क करने, दायरे से निकल कर सोचने, नए नए विचारों को बनाने और चिंतन मनन करने की क्षमता खत्म हो जायेगी, इसलिए हर अभिभावक और शिक्षक को चाहिए कि वो बच्चों को रोकने की बजाये उनके कामों में सवाल करें, कि ये क्यूँ, कैसे, क्या होगा इत्यादि|
    -संतोष वर्मा “लखनवी”

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