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नई शिक्षा नीति-2019 के ड्राफ्ट की 10 ख़ास बातें क्या हैं?

पिछले चार-पाँच सालों से नई शिक्षा नीति का इंतज़ार हो रहा था। नई शिक्षा नीति-2016 का पहला ड्राफ्ट आते-आते यह नई शिक्षा नीति-2019 के रूप में पहला ड्राफ्ट नये मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को उनके पदभार ग्रहण करते ही के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा सौंपा गया।

नई शिक्षा नीति-2019 के ड्राफ्ट में बहुत सी बातें ऐसी हैं, जिनकी तरफदारी पूर्व की समितियों और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005 में भी की गई है जैसे प्राथमिक स्तर पर शिक्षण में मातृभाषा को प्राथमिकता देना। इसके साथ ही साथ तीन भाषाओं के फॉर्मूले को नई शिक्षा नीति-2019 के मसौदे में भी प्रमुखता के साथ शामिल किया गया है।

एजुकेशन मिरर के यूट्यूब चैनल पर देखिए: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्राफ्ट की 10 ख़ास बातें

नई शिक्षा नीति-2019 के प्रारूप की पहली सबसे ख़ास बात है शिक्षा का अधिकार कानून के दायरे को व्यापक बनाना। इसमें अबतक प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्तर की शिक्षा को ही शामिल किया जा रहा है जो 6 से 14 वर्ष तक की उम्र वाले बच्चों को शिक्षा का अधिकार कानून के दायरे में लाने की बात करती है। नई शिक्षा नीति के मसौदे के अनुसार चूंकि बच्चों के मस्तिष्क के विकास के लिए पूर्व-प्राथमिक शिक्षा वाली उम्र बेहद महत्वपूर्ण है, इसलिए इसका दायरा पूर्व-प्राथमिक शिक्षा से लेकर 12वीं तक की पढ़ाई के लिए लागू होना चाहिए। नर्सरी से 12वीं तक की पढ़ाई को 5+3+3+4 के फॉर्मूले के तहत चार चरणों में बाँटने की बात कही गई है। इस संदर्भ में सुझाव दिया गया है कि पूर्व-प्राथमिक शाला को विद्यालय के कैंपस में ही स्थापित किया जाना चाहिए।

इसकी दूसरी सबसे ख़ास बात है कि इसमें राष्ट्रीय शिक्षा आयोग बनाने का सुझाव भी नई शिक्षा नीति के प्रारूप में रखा गया है ताकि शिक्षा को समग्र रूप में पर्यावरण हितैषी व ज्ञानवान समाज बनाने के उद्देश्यों के साथ बदलाव को सुगमता प्रदान की जा सके। इसके साथ ही साथ निजी स्कूलों के साथ पब्लिक जैसा शब्द इस्तेमाल बंद हो, इस दिशा में भी प्रयास करने की बात कही गई है। साथ ही साथ निजी स्कूलों को सपोर्ट करने की भी बात नई शिक्षा नीति के प्रारूप में कही गई है ताकि निजी स्कूल सरकारी विद्यालयों में होने वाले नवाचारी प्रयासों से सीख सकें, हालांकि यह सरकारी स्कूल के विकास की शर्तों पर न हो इस बात का ध्यान रखने की बात कही गई है।

तीसरा सबसे अहम बिंदु है कि नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में 2015 तक प्राथमिक व इससे उच्च स्तर की कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए बुनियादी साक्षरता व संख्याज्ञान से संबंधित दक्षताओं के विकास का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए पूर्व-प्राथमिक शिक्षा तक पहुंच, शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात (पीटीआर) को 30ः1 तक रखने का सुझाव भी दिया गया है, व ऐसा न होने के कारण बच्चों के सीखने पर होने वाले असर को रेखांकित किया गया है। मल्टी लेबल शिक्षण के तरीकों को अपनाने व पौष्टिक नाश्ते व आहार की व्यवस्था का प्रावधान करने की बात भी नई शिक्षा नीति के प्रारूप में है। इसके तहत मिड डे मील के कार्यक्रम का विस्तार करने की बात कही गई है।

चौथी सबसे ख़ास बात है कि इसमें पहली व दूसरी कक्षा में भाषा व गणित पर काम करने पर जोर देने की बात नई शिक्षा नीति के मसौदे में है। इसके साथ ही चौथी व पाँचवीं के बच्चों के साथ लेखन कौशल पर काम करने पर भी ध्यान देने की बात कही गई है। भाषा सप्ताह, गणित सप्ताह व भाषा मेला व गणित मेला जैसे आयोजन करने की बात भी इस प्रारूप में लिखी गई है।

नई शिक्षा नीति-2019 के ड्राफ्ट की पाँचवीं सबसे ख़ास बात है कि इसमें पुस्तकालयों को जीवंत बनाने व गतिविधियों को कराने पर ध्यान देने की बात कही गई है। इसमें कहानी सुनाने, रंगमंच, समूह में पठन, लेखन व बच्चों के बनाये चित्रों व लिखी हुई सामग्री का डिसप्ले करने पर ध्यान देने की बात कही गई है। स्कूल के साथ-साथ सार्वजनिक पुस्तकालयों को विस्तार देने व पढ़ने और संवाद करने की संस्कृति को प्रोत्साहित करने की बात भी नई शिक्षा नीति-2019 के ड्राफ्ट में कही गई है। इसमें बच्चों को किताब पढ़ने और घर ले जाकर पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने व सप्ताह में एक बार विद्यालय में पढ़ी गई किताब के बारे में अपने अनुभवों को साझा करने का अवसर देने की बात भी कही गई है।

आवासीय विद्यालयों में बालिकाओं के लिए नवोदय जैसी व्यवस्था करने का भी सुझाव है। यह इसकी छठीं सबसे ग़ौर करने वाली बात है। इसका उद्देश्य है कि लड़कियों की शिक्षा जारी रहे इसके लिए उनको भावनात्मक रूप से सुरक्षित वातावरण देने का सुझाव दिया गया है। कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय का विस्तार 12वीं तक करने का सुझाव नई शिक्षा नीति-2019 के मसौदे में किया गया है।

नई शिक्षा नीति-2019 के ड्राफ्ट की सातवीं सबसे बड़ी बात है कि रेमेडियल शिक्षण को मुख्य धारा में शामिल करने जैसा सुझाव दिया गया है। इसके तहत 10 सालों की परियोजना का प्रस्ताव किया गया है। इसमें स्थानीय महिलाओं व स्वयं सेवकों की भागीदारी हासिल करने की बात कही गई है। इसके तहत काम करने वाले अनुदेशक विद्यालय समय से पूर्व व बाद में स्टूडेंट्स के साथ रेमेडियल शिक्षण का काम करेंगे। इसके साथ ही साथ लंबे अवकाश वाले दिनों में भी रेमेडियल कक्षाओं के संचालन का सुझाव दिया गया है।

आठवीं सबसे ख़ास बात: शिक्षकों के सपोर्ट के लिए तकनीकी के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने की बात भी नई शिक्षा नीति-2019 के मसौदे में है। इसके लिए कंप्यूटर, लैपटॉप व फोन इत्यादि के जरिए विभिन्न ऐप का इस्तेमाल करके शिक्षण को रोचक बनाने की बात कही गई है। तकनीक को शिक्षकों के विकल्प के रूप में देखने की बजाय सहायक शिक्षण सामग्री के रूप में देखने की बात कही गई है। इसके साथ ही साथ अभिभावकों की भागीदारी और एसएससी की भूमिका को सक्रिय बनाने वाले बिंदु पर भी नई शिक्षा-2019 के मसौदे में फोकस किया गया है।

इसकी नौवीं सबसे प्रमुख बात है, शिक्षाक्रम में विषयवस्तु का बोझ कम करने का सुझाव ताकि मूलभूत अधिगम और तार्किक चिंतन को समृद्ध किया जा सके। इसके लिए 1993 की मानव संसाधन विकास मंत्रालय की यशपाल समिति की रिपोर्ट ‘लर्निंग विदाउड बर्डन’ और एनसीएफ़-2005 की सलाह का जिक्र है, “यदि हम अपने स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा को अधिक समग्र, पूर्ण, विश्लेषण और तार्कि चिंतन को बढ़ावा देने वाली बनाना चाहते हैं तो इसकी भारी बोझ बन गयी विषय-वस्तु को घटाना ही होगा।”

आखिर में चर्चा नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट-2019 के दसवें सबसे प्रमुख बिंदु की, इसमें प्राथमिक स्तर पर शिक्षा में बहुभाषिकता को प्राथमिकता के साथ शामिल करने और ऐसे भाषा शिक्षकों की उपलब्धता को महत्व दिया दिया गया है जो बच्चों के घर की भाषा समझते हों। यह समस्या राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राज्यों में दिखाई देती है। पहली से पाँचवी तक जहाँ तक संभव हो मातृभाषा का इस्तेमाल शिक्षण के माध्यम के रूप में किया जाये। जहाँ घर और स्कूल की भाषा अलग-अलग है, वहां दो भाषाओं के इस्तेमाल का सुझाव दिया गया है। बहुभाषिकता को समस्या के बजाय समाधान के रूप में देखने की बात को नई शिक्षा नीति-2019 के मसौदे में प्रमुखता के साथ रेखांकित किया गया है।

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14 Comments on नई शिक्षा नीति-2019 के ड्राफ्ट की 10 ख़ास बातें क्या हैं?

  1. श्याम नारायण मौर्य // May 24, 2020 at 5:07 am //

    शिक्षकों की योग्यता पर विश्वास करना होगा। चयन के पूर्व आवश्यक योग्यताओं का परीक्षण करके चयन करने के पश्चात कुछ निर्धारित समयान्तराल (३-५वर्ष) पर नवाचार के प्रशिक्षण की व्यवस्था हो, बजाय इसके कि प्रत्येक वर्ष अनेकों प्रकार के प्रशिक्षण के। बार-बार प्रशिक्षण शिक्षा बजट के बंदर-बांट के अलावा कुछ नहीं। जिससे शिक्षा बजट का अधिकांश भाग जरूरी अवस्थापना सुविधाओं पर खर्च हो सके और बच्चों को आवश्यक शैक्षिक सुविधाएं उपलब्ध हो सके।
    शिक्षक छात्र अनुपात (PTR 30:1) तो ठीक है परन्तु प्रत्येक कक्षा के लिए एक अध्यापक भी हो। प्राय: देखने में आता है कि पूरी शिक्षा व्यवस्था एक अध्यापक/शिक्षामित्र के भरोसे है। परिणामस्वरूप अभिभावकों का विश्वास उठ जाता है और विद्यालय में छात्र संख्या बेहद कम हो जाती है तब इस शिक्षक छात्र अनुपात का क्या मतलब।

  2. लगता है जब भी शिक्षा नीति बनता है उसमें किसी भी शिक्षक का योगदान नही होता है।
    नीति देख के लगता है कि किसी को जमीनी वास्तिविकता का अनुभव ही नही है।हम 21वी सदी में है और आज ब सरकारी विद्यालय के बच्चे जमीन में बैठ के शिक्षा प्राप्त करते है और हम निजी विद्यालयों से तुलना करते हैं इतना पैसा शिक्षा विभाग में आने के बाद भी आज तक प्रशिक्षण और किसी प्रकार के नवाचार पर इस्तेमाल करते हैं जिसका कोई भी हिसाब नहीं है पर बच्चों के लिए आज तक टेबल कुर्सी का व्यवस्था आज तक नहीं हुई है। वैसे है तो बहुत सी बातें कर लिखने लगूंगा तक लेख बन जाएगा इसलिए मैं ही अपने बातों को विराम देते हुए यह पोस्ट कर रहा हूं

  3. सुंदर लेख

  4. interview se corruption badega

  5. Dr AK Prajapati // August 28, 2019 at 11:38 am //

    नई शिक्षा नीति 2019 में भारत की प्रथम महिला अध्यापिका सावित्रीबाई फुले जी को प्राथमिक शिक्षा में पढ़ाया जाना चाहिए और उनके योगदान को बताना चाहिए!

  6. नीतियों की समीक्षा अवश्य होनी चाहिए। लेकिन हमें यह भी देखना चाहिए कि धूल फांकती शिक्षा व्यवस्था नई नीतियों के बदौलत हमे किस ओर ले जाएगी।

  7. Virjesh Singh // July 3, 2019 at 3:24 am //

    ऐसा कहने के पीछे क्या तर्क है, यह भी जरूर साझा करें

  8. nae shiksha niti lagu nahi krni chahiye

  9. nae shiksha niti lagu krne ke bjay bhrti nikale

  10. Narendra vyas // June 8, 2019 at 1:24 pm //

    नमस्ते सर मुझे पहले तो यह कहना की अप्रैल में लगने वाले स्कूल बंद किया जाये उसकी जगह अप्रैल में पारीछा ली जाए एव नया सत्र 15 जून के बाद ही सुरु करे क्योकि अप्रैल में कोई स्कूल आना पसंद नही करता । ये महीना ऐसे ही निकलता है। दूसरी बात प्राइवेट स्कूल के टीचर हो या चपर्सि हो उसको सुरछित
    किया जय एव उसे सम्मानित वेतन दिया जाय ।

  11. शशि मोहन वर्मा // June 3, 2019 at 4:51 pm //

    सर नमस्ते, हमारी शिक्षा प्रणाली बहुत ही बेकार है । मैं एक शिक्षक हूँ ।जमीनी स्तर पर मैने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कार्य किये हैं । मैंने एक शिक्षक के रूप में कार्य करतें हुए यह महसूस किया है कि हम बच्चो को विभिन्न विषयों की शिक्षा प्रदान तो कर ही रहे हैं लेकिन उनकों हम नैतिकता,अनुशासन,एकता,राष्ट्रीयता,सामाजिकता ।की शिक्षा प्रदान नहीं कर पा रहे हैं ।श्री मान जी, विभिन्न विषयों की शिक्षा ग्रहण कर बच्चे अपना सर्वागीण विकास कर रहे है यह तो अच्छी बात है ।लेकिन हमारा यह भी दायित्व है कि हम उनको राष्ट्र के लिए समर्पित नागरिक भी बनाए ।इसके लिए हमे,,,,,, स्काउट, एन सी सी , एन एस एस को अनिवार्य रूप से लागू कर देना चाहिये ।हिन्दूस्तान का हर बच्चा स्कूली शिक्षा में तीन साल स्काउट,एन सी सी, एन एस एस इनमें से किसी भी एक मे जरूर दे।।। कक्षा 6,7,8 में रहते हुए बच्चा इनमें से किसी भी एक activity में अनिवार्य रूप से part करें ।।श्री मान जी, स्काउट, एन एस एस,एन सी सी के फायदे बताने की जरूरत नहीं है ।।।।फिर देखिये हमारी भावी पीढ़ी को राष्ट्र के जीते हुए ।।श्री मान जी मेंरे पास शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए और भी कई प्रकार सुझाब हैं ।।आमन्त्रित करे तो वह भी आपसे साझा कर राष्ट्रनिर्माण मे अपना योगदान प्रदान कर सकता हूँ ।।।जय हिंद

  12. Vijendra Kumar // June 3, 2019 at 9:26 am //

    इस सम्बन्ध में मेरा सुझाव है कि दोहरी शिक्षा नीति नहीं होनी चाहिए । अर्थात् पूरे भारत में एक ही प्रारूप हो 1-12 तक ।यह न हो कि गरीब का बच्चा सरकारी प्राइमरी में ऑर वीआईपी का सीबीएसई,आईसीएससी या कॉन्वेंट में । यदि समाज में एकता ऑर समरसता लानी है तो सभी बच्चे एक जैसे विद्यालयों में पढ़े । तभी देश में एकरूपता आएगी ।छात्र में हीन भावना दोहरी शिक्षा नीति से उत्पन्न होती है।सरकारें दिखावे के लिए कहती कुछ हैं तो करती कुछ । जहां तक सुझावों की बात है वो हर सरकार मांगती है वह एक नाटक भर मात्र है । असल में होता वहीं को सरकार को करना है । अभी तक इस क्षेत्र में कोई समीचीन प्रयत्न नहीं हुए हैं ।

  13. सतेंद्र सिंह // June 2, 2019 at 10:56 pm //

    इंटरवियू नहीं होना चाहिए इससे भरस्टाचार बढेगा और कमजोर वर्ग केछात्रो का नुकसान होगा

  14. Bhagirath sharma // June 2, 2019 at 8:33 pm //

    इंटरव्यू नही होना चाहिए और लिखित परीक्षा नही होनी चाहिए

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