बिहारः ‘दसवीं में ‘फेल’ होने वाली ‘टॉपर’ के हौसले को सलाम!’

बिहार की छात्रा प्रियंका को पेंटिंग में रुचि है। वह मेडिकल की तैयारी करना चाहती थीं, मगर ‘फेल’ वाले अंकपत्र ने उनके हिस्से संघर्ष और जीत की कहानी दर्ज की।
इस सप्ताह शिक्षा के क्षेत्र में जिस ख़बर की सबसे ज्यादा चर्चा थी वह बिहार से आई। यहां के सहरसा के सिमरी बख्तियारपुर की सिटानाबाद पंचायत के गंगा टोला की एक छात्रा प्रियंका सिंह ने बिहार बोर्ड द्वारा फेल किये जाने को पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। इस मामले में उन्होंने जीत पायी। उनको 5 लाख का हर्जाना भी मिला। इस बारे में मगध विश्वविद्यालय में बतौर एसोसिएट प्रोफ़ेसर काम करने वाले हेमंत कुमार झा क्या कहते हैं, विस्तार से पढ़िए इस पोस्ट में।
सहरसा की जिस लडक़ी को फेल घोषित किया बिहार बोर्ड ने, जिसके हर दावे को खारिज करता रहा बोर्ड, जिसे हाईकोर्ट में भी डिमोरलाइज करने की कोशिश की बोर्ड ने, अंततः वही बोर्ड शर्मसार हुआ और प्रियंका नाम की वह लड़की न सिर्फ फर्स्ट डिवीजन से पास घोषित हुई, बल्कि उसने टॉप टेन में भी जगह बनाई। यह है बिहार स्कूल एक्जामिनेशन बोर्ड।
प्रियंका के आत्मविश्वास और साहस को सलाम
पिछले कुछ वर्षों में सिर्फ इस एक संस्था ने बिहार की जितनी बदनामी कराई है, उसका दूसरा उदाहरण शायद ही कहीं और मिले। प्रियंका के आत्मविश्वास, साहस को सलाम करने के साथ ही उसके अभिभावकों की भी सराहना होनी चाहिये, जिन्होंने उस पर विश्वास बनाए रखा। अन्य बहुत सारे बच्चे इतना साहस और आत्मविश्वास नहीं दिखा सके, उनके अभिभावक ऐसा जज्बा नहीं दिखा सके, वरना, जो हाल है बिहार बोर्ड की परीक्षा और मूल्यांकन प्रणाली का, न जाने कितने बच्चे अन्यायपूर्वक फेल कर दिए गए होंगे, जबकि उन्हें अच्छे नम्बरों से पास करना था।
यह बिहार के बहुत से बच्चों की व्यथा है
बतौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सारी उपलब्धियां बोर्ड की इन कलंक कथाओं के सामने फीकी पड़ती नजर आने लगी हैं। ऐसी व्यवस्था के साथ हजारों बच्चों का कॅरिअर बर्बाद हुआ है। हर किसी में यह क्षमता नहीं कि बोर्ड से लड़ सके, हाई कोर्ट से न्याय हासिल कर सके। न जाने कितने मासूमों ने रेल की पटरियों पर जान दे दी, कितनों ने गले मे फंदा डाल कर दुनिया छोड़ दी, लेकिन सत्ता की निर्लज्जता बदस्तूर कायम है। बोर्ड कार्यालय के गेट पर फरियाद करते बच्चों पर लाठी चार्ज, उन्हें सही जानकारी देने में बाबुओं की आनाकानी, अनंत है व्यथा कथा बिहार के बच्चों की।
यह सिर्फ संस्थाओं की आपराधिक विफलता नहीं है। यह मुख्यमंत्री की भी सीधी विफलता है, क्योंकि यह एक सिलसिला बन चुका है बिहार में। प्रतियोगिता परीक्षा लेने वाली संस्था से प्रश्न पत्र लीक होते हैं, लोग जेल जाते हैं, लेकिन रुक जाती हैं हजारों बहालियाँ। वर्षों की मेहनत और उम्मीदों पर पानी फिरता देख हताश हैं हजारों प्रतियोगी परीक्षार्थी। किसी को कोई लाज नहीं, किसी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं, कोई डर भय नहीं। किसी काम से जरा बोर्ड आफिस जा कर तो देखिये, आपको वास्तविक हालात से साक्षात रूबरू होने का मौका मिलेगा।
( हेमन्त कुमार झा मगध विश्वविद्यालय के एम डी कॉलेज, नौबतपुर पटना के हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। शिक्षा से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर आप निरंतर लिखते रहते हैं।)
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