एजुकेशन वर्ल्ड फोरम: शिक्षा और तकनीक का रिश्ता क्या है?

औद्योगिक क्रांति के दौरान वैश्विक सार्वजनिक शिक्षा की शुरूआत हुई। इसकी प्रगति को विभिन्न समय के दौरान ग्राफ़ में देखा जा सकता है।
साल 2018 के ‘एजुकेशन वर्ल्ड फोरम’ लंदन में शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई, उनमें से एक मुद्दा शिक्षा और तकनीक के रिश्तों की पड़ताल का भी था। 25 जनवरी को इस कार्यक्रम का समापन हुआ। इस मौके पर एक प्रतिभागी ने लिखा, “जब किसी तेज़ रफ़्तार वाले की गति तेज़ हो जाती है, तो धीमी रफ़्तार से चलने वालों के लिए उसकी बराबरी करना मुश्किल हो जाता है। यही बात शिक्षा और तकनीकी क्रांति के संदर्भ में भी लागू होती है। इस सिलसिले में कार्यक्रम के दौरान प्रस्तुत एक ग्राफ़ मुझे बेहद पसंद आया, इस सम्मेलन से मिली बड़ी उपलब्धियों में से एक यह भी है।“
वहीं फोरम के एक वक्ता पैट्रिक हैस ने कहा, “हमारे बच्चे ऐप का इस्तेमाल करें, केवल यही पर्याप्त नहीं है, हमें उनको यह भी पढ़ाने की जरूरत है कि ऐप कैसे बनाये जाते हैं।”
‘शिक्षकों को पढ़ाने के लिए पढ़ाया गया’
एक प्रतिभागी ने ट्वीट किया, “शिक्षा को एक बेहद रूढ़िवादी पेशा माना जाता है, जब पाठ्यक्रम में बदलाव होता है तो माता-पिता विरोध करते हैं क्योंकि उनके बच्चों को उनके समान ढंग से नहीं पढ़ाया जा रहा होता है। और शिक्षक वही पढ़ाने को प्राथमिकता देते हैं जो उनको पढ़ाया गया था, बजाय इसके कि शिक्षकों को पढ़ाने के लिए पढ़ाया गया था।”
वर्ल्ड बैंक एजुकेशन द्वारा ट्वीट किया गया, “दुनिया सीखने के संकट से जूझ रही है। स्कूल जाने भर का मतलब सीखना नहीं है। कम-आय वाले देशों के तकरीबन 96 फीसदी बच्चे जो पढ़ रहे होते हैं, उसका अर्थ नहीं समझ पाते और 86 फ़ीसदी बच्चे गणित के बुनियादी ज्ञान से वंचित हैं।”
स्कूल से बाहर बच्चों की संख्या कितनी बड़ी है?
इस फ़ोरम के दौरान एक चौंकाने वाला आँकड़ा सार्वजनिक किया गया, “अगर स्कूल से बाहर बच्चों का कोई देश होता, तो आबादी के लिहाज से वह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश होता।
वहीं एक ट्विटर यूज़र सारा रुतो ने लिखा,”क्या हम सीखने के संकट से जूझ रहे हैं? आप ऐसी परिस्थिति को भला और क्या कहेंगे जहाँ बच्चे 20वीं सदी के कौशलों का विकास किये बिना ही स्कूल छोड़ रहे हैं? हम तो 21वीं सदी के बारे में बात भी नहीं कर रहे हैं।”
क्लासरूम में हो ‘वैश्विक क्षमताओं’ का विकास
जोसेत्ते शीरन ने इस मौके पर बोलते हुए कहा, “विषय विशेष तक सीमित रहने की बजाय, शिक्षकों को वैश्विक क्षमताओं के विकास के लिए प्रशिक्षण देना बड़े स्तर पर सभी विद्यार्थियों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराने की दृष्टि से बेहद अहम है।” (Training teachers on how to bring #globalcompetence into their classrooms, regardless of subject, is the key to equalizing opportunity for all students at great scale.)
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