Trending

समीक्षाः ‘आम की टोकरी’ कविता पर बच्चों के सवाल हैरान करते हैं

aam-ki-tokari-1—————
आम की टोकरी

छह साल की छोकरी,
भरकर लाई टोकरी।

टोकरी में आम हैं,
नहीं बताती दाम है।

दिखा-दिखाकर टोकरी,
हमें बुलाती छोकरी।

हम को देती आम है,
नहीं बुलाती नाम है।

नाम नहीं अब पूछना,
हमें आम है चूसना।
***

यह कविता रामकृष्ण शर्मा खद्दर जी की है। यह कविता कक्षा पहली के बच्चे 2006 से लगातार पढ़ रहे हैं। साल 2018 से उत्तराखण्ड के बच्चे भी अब इस कविता को पढ़ेंगे। यह कविता भारत के राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् द्वारा तैयार की गई किताब रिमझिम 1 का हिस्सा है। यह कविता पाठ 3 के क्रम में बच्चे पढ़ रहे हैं।इस कविता की खास बात यह है कि इसकी पँक्तियों से ‘आ’ और ‘क’ को परिचित कराने के लिए इसे यहाँ विशेष तौर पर रखा गया है। बताता चलूँ कि इससे पहले आए दो पाठों से बच्चे ‘न‘,‘म’,‘अ‘,‘ठ‘,‘ए‘,‘झ‘,‘ल‘,‘ड‘,‘छ‘,‘ई‘ से परिचित हो रहे हैं।

कविता सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें।

कविता की ‘छोकरी’ कौन है?

अब कविता पर बात करते हैं। इस कविता में जिस छोकरी की बात की जा रही है हो सकता है कि वह स्कूल न जाती हो। घर की परिस्थितियों के चलते वह फलों के मौसम में फल बेचती हो। यह भी हो सकता है कि वह अनाथ हो। उसे खुद ही अपना नाम न पता हो। यह भी संभव है कि यह लड़की जिसका नाम पाठक बच्चे नहीं जानते हैं उनके घर के आस-पास आती हो। उनके गांव-शहर या मुहल्ले में आती हो। यह भी संभव है कि ये पाठक बच्चे जिस स्कूल में पढ़ते हैं, यह छोकरी स्कूल समय में, मध्यांतर में या छुट्टी के समय स्कूल के आस-पास आम बेचने मिल जाती होगी।

परिवेश के बच्चे चर्चा में कहाँ हैं?

aam-ki-tokari-kavitaएक-क्या बच्चे पाठ्यपुस्तक में पाठ के बहाने उन बच्चों के बारे में न सोचें, जो उन्हें आम जीवन में अपने आस-पास दिखाई देते हैं? जो बाजार में, मेलों में, दुकानों में, सड़कों में कुछ न कुछ सामान बेचते नज़र आते हैं!

दो- क्या बच्चे उन बच्चों के बारे में चर्चा न करें, जो उनकी उम्र के हैं और स्कूल नहीं आते?
अब आते हैं इस छोकरी शब्द पर। इस शब्द पर कैसी आपत्ति। शब्द क्या हैं? ध्वनि मात्र ही तो हैं। हमें यह समझना होगा कि बहुत सारे नाम,संबोधन और संज्ञा कई भाषाओं में एक समान हो सकते हैं तो यही कई भाषाओं में गाली के रूप में प्रयोग लाए जाते होंगे। यह कोई जानवरों के मुंह से निकली हुई ध्वनि नहीं हैं कि भारत की बिल्ली हो या जापान की म्याऊँ ही बोलेगी। कुत्ता कहीं का भी हो वो भौंकेगा।

बच्चों के जीवन से जुड़ी है यह कविता

भाषाओं में शब्द और शब्दों से बने वाक्य संदर्भों के साथ विभिन्न अर्थ देने की सामथ्र्य रखते हैं। यह कौन नहीं जानता! अब यह बताना भी जरूरी होगा कि बुनियादी स्कूलों में खासकर पहली कक्षा में अवलोकन, समझ, अभिनय करते हुए बोलना,समझ कर बोलना,घर से विद्यालय तक आते-जाते दृश्य चित्रों से जुड़ती हुई पठन सामग्री पढ़ना।

children-of-village-playing-in-communityबच्चों के क्रियाकलापों से खुद को जोड़ना, स्थानीय परिवेश व वातावरण को गहरे से समझना हिन्दी भाषा की पाठ्यचर्या का हिस्सा हैं। इस लिहाज से यह कविता बेहद उपयुक्त, सारगर्भित और बच्चों के जीवन से जुड़ी है। आखिर संवैधानिक मूल्य भी तो यही कहते हैं कि हम केवल अपनी ही न सोंचे। हाशिए के जीवन को भी महसूस करें। संवेदना के स्तर पर चेतना भी बढ़ाएं।  चकमक के संपादक रहे राजेश उत्साही जी का कहना है कि उन्हें याद पड़ता है कि यह कविता बहुत छोटी है। उन्होंने मुझे भी वह भेजी। आप भी पढ़ें-

छह साल की छोकरी,
सिर पर रखे टोकरी।
नहीं बताती दाम है,
नहीं बताती नाम है,
दाम-नाम क्या पूछना,
हमें आम है चूसना!

बच्चों के साथ इस कविता पर बातचीत के अनुभव

मैंने यह कविता स्कूल में बच्चों के साथ साझा की। मैंने इसे श्यामपट्ट पर लिखा। पहले मैंने इसे सस्वर पढ़ा। फिर बच्चों से कहा कि इसे एक साथ पढ़ें। बच्चों ने एक साथ इसे पढ़ा। मैंने कहा अब इसे काॅपी पर लिखिए। बच्चों ने कविता काॅपी पर लिखी। फिर सबसे कहा गया कि मौन पठन करिए। बच्चों को कुछ देर कविता से जूझने दिया गया।

अब बगैर भूमिका के और भाव के मैंने बच्चों से कहा कि कविता को पढ़कर समझकर कुछ सवाल बनाने हैं। अपनी-अपनी काॅपी पर। ऐसे सवाल नहीं बनाने हैं कि जवाब एक जैसा आया। मैंने उदाहरण दिया कि एक जैसा जवाब के दो उदाहरण देता हूँ। एक जैसा जवाब के दो सवाल मैंने श्यामपट्ट पर लिख दिए। वह यह थे-

सवाल- छोकरी कितने साल की है?

सवाल- उसकी टोकरी में क्या है?

मैंने बात को विस्तार दिया कि हमें ऐसे सवाल नहीं बनाने हैं जिसका एक जैसा जवाब हो। हमें ऐसे सवाल बनाने हैं जिनके जवाब मन के जवाब हों। जवाब देने वाले को मन से सोचना पड़े। अनुमान और कल्पना के घोड़े दौड़ाकर जवाब खोजना पड़े। मुझे लग रहा था कि दस पंक्तियों की इस कविता में तीन-चार सवाल ही बन सकेंगे। सवालों में दोहराव अधिक होगा। लेकिन जो सवाल बच्चों ने बनाए वह अद्भुत थे। कुछ खास सवाल (अलग-अलग अनुभव वाले) यहां दिए जा रहे हैं-

कविता से जुड़े बच्चों के सवाल ध्यान खींचते हैं

एक- छोकरी का क्या नाम रहा होगा?

दो- टोकरी में कितने आम रहे होंगे?

तीन- वह बच्चों को नाम से क्यों नहीं बुला रही थी?

चार- लड़की आम कहाँ से लाई होगी?

पाँच- एक टोकरी में कितने आम आ सकते हैं?

छःह- छह साल की लड़की कितना वजन उठा सकती है?

सात- पेड़ एक साल छोड़कर आम क्यों देता है?

आठ- लड़की आमों के दाम क्यों नहीं बताती?

नौ- टोकरी के आम कितने रुपए में बिके होंगे?

दस- ऐसी लड़कियाँ क्या-क्या काम कर सकती हैं?

ग्यारह- इस कविता के और क्या-क्या शीर्षक हो सकते हैं?

बारह- यदि आम चालीस रुपए किलों हैं तो लड़की के आम कितने के बिके होंगे?

तेरह- टोकरियां किस-किस चीज़ की बनी होती हैं?

चैदह- टोकरियों में क्या-क्या चीज़ें रखी जा सकती हैं?

पन्द्रह- आम के सीजन के बाद लड़की टोकरी का क्या करती होगी?

सोलह- लड़की आम के मौसम को छोड़कर क्या बेचती होगी?

सवालों की विविधता में बच्चों के अनुभव नज़र आते हैं

यह सवाल बनाने वाले छात्र कक्षा छह से नौ तक के हैं। राधिका, प्रिया, कंचन, प्रेरणा, खुशी के सवालों में विविधता थी। कुछ सवाल एक जैसे बन पड़े। आधा घंटा वह भी कविता पर बिना बात किए हुए छात्रों ने अपने अनुभव से ऐसे सवाल बनाए हैं तो वे जवाब भी दे सकते हैं। मजेदार बात यह है कि यह छात्र अपने आस-पास के जंगल में हर साल आम को चूसने का लुत्फ उठाते हैं। हमारे स्कूल के ठीक पीछे भी एक विशालकाय आम का पेड़ है।

कवि रामकृष्ण शर्मा खद्दर जी ने भी सोचा न होगा कि सुदूर उत्तराखण्ड के पौड़ी जनपद के ग्रामीण विद्यालय के बच्चे उनकी कविता पर इतने बेहतरीन सवाल उठा रहे होंगे। अब सोच रहा हूँ कि इस कविता पर छह-सात साल के बच्चे तो मौखिक सवालों की बारिश करेंगे।

(manhohar-chamoliलेखक परिचय : मनोहर चमोली ‘मनु’ उत्तराखण्ड के शिक्षा विभाग में शिक्षक हैं। उनकी लिखी  ‘ऐसे बदली नाक की नथ’ और ‘पूछेरी’ पुस्तकें नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित हुई हैं। ‘चाँद का स्वेटर’, ‘बादल क्यों बरसता है?’ और ‘अब तुम गए काम से’ सहित पांच पुस्तके ‘रूम टू रीड’ से प्रकाशित हुई हैं।

उत्तराखण्ड में कहानी ‘फूलों वाले बाबा’ कक्षा पाँच की पाठ्य पुस्तक ‘बुराँश’ में शामिल। भारत के छह राज्यों के बुनियादी स्कूलों में 13 कहानियां ‘पढ़े भारत’ के तहत सम्मिलित। सम्प्रति :रा०उ०मा०वि०विद्यालय, भितांई, पौड़ी गढ़वाल। 246001 उत्तराखण्ड।)

इस लेख के बारे में अपनी टिप्पणी लिखें

%d bloggers like this: