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कविताः कहते लोग सोने की चिड़िया’

कहते लोग सोने की चिड़िया,
अनेकों गांव की सुंदरता की है ये पुड़िया,
हम चले गांव की ओर लेकर अपनी गाडियां,
हरे – भरे खेत थे, फूल भी खिले थे बहुत बढ़िया

चह चहाती मिली वहा अनेकों चिड़िया,
नहीं थी वहा शहरों के जैसी गंदगी व कड़ियां,
जो मिले , सब कहे राम – राम , कैसे हो?, हम है बढ़िया!
कहीं साइकिल, कहीं बाइक, तो कहीं बेल गाडियां,
वहीं पास में ही थे नले व नदियां,

पानी तो ऐसे चमके जैसे हो साँप की मणियां,
बगिया में थे आम के बौरे बढ़िया,
टूट रही थी पेड़ों से सुखी डंडिया,
खेतो से तोते उड़ाने को लोग मर रहे लोग थाली में लकड़ियां,
कितने सारे नए जुगाड़ हैं बढ़िया

सच में! सारी खूबसूरत चीजों की है ये पुड़िया,
साथ ही प्रकृति के साथ मेल की जगह है ये बड़िया,
और मुझे मिला एक नया नज़रिया।

राधा पोखरिया( 10)
नानकमत्ता पब्लिक स्कूल

(राधा पोखरिया, उत्तराखंड के नानकमत्ता पब्लिक स्कूल में कक्षा दसवीं में अध्ययनरत हैं। वह अपनी स्कूल की दीवार पत्रिका के सम्पादक मंडल से भी जुड़ी हैं। अपने विद्यालय के अन्य विद्यार्थियों के साथ मिलकर एक मासिक अखबार भी निकालती हैं। जश्न-ए-बचपन की कोशिश है बच्चों की सृजनात्मकता को अभिव्यक्ति होने का अवसर मिले)

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