यात्रा वृत्तांतः ‘मेले में खिलौने खोजना, मानो भूसे के ढेर से सूई खोजना’
वर्तमान में जबकि देखा जा रहा है बच्चों को पढ़ाई के नाम पर फिर एक बार ऑनलाइन के बहाने व्यस्त रखने की कोशिशें हो रही है। तब जश्न-ए-बचपन व्हाट्सएप्प ग्रुप का निर्माण इस आशा के साथ किये गए है कि बच्चा दिन में थोड़े ही समय सही संगीत, सिनेमा, पेंटिंग, साहित्य और रंगमंच से जुड़ अपनी भीतर मौजूद रचनात्मकता को प्रकट करे।
मजे-मजे में अपनी रुचि के अनुरूप कुछ मस्ती करते हुए सीख भी ले। इसमें साहित्य का पन्ना महेश पुनेठा, सिनेमा संजय जोशी, ओरेगामी सुदर्शन जुयाल, पेंटिंग सुरेश लाल और कल्लोल चक्रवर्ती, रंगमंच जहूर आलम और कपिल शर्मा मुख्य रूप से इससे जुड़े हुए हैं। इसी कड़ी में बच्चों ने यात्रा वृत्तांत लिखने का अभ्यास किया। यह यात्रा वृत्तांत राधा पोखरिया ने लिखा है। उन्हीं के शब्दों में पेश है यह यात्रा वृत्तांत।
धान की फसल कट चुकी थी
यूं ही नवंबर का महीना चल रहा था और दिवाली भी आ चुकी थी। गाँव में लगी धान की फसल भी कट चुकी थी। अब दिवाली का समय था, तो दिवाली के समय में और कुछ हो ना हो नानकमत्ता में मेला तो जरूर होता है। यूं ही कुछ हजारों की तादात में लोग हैं मेला देखने आते हैं।
मैं भी उस समय यूं ही कुछ 10 साल की थी, हमारा घर नानकमत्ता से 8 किलोमीटर दूर था, और हम सभी भाई-बहन ज्यादा बड़े भी नहीं थे, तो हर रोज मेले में लाना मम्मी और पापा के लिए एक चुनौती के समान था , इसी वजह से हमारा पूरा परिवार केवल 1 दिन के लिए मेले में जाता था और वह दिन हमारे लिए काफी और बहुत ही खुशी का दिन होता था।
नानकमत्ता के मेले में झूले का आनंद
अब वह दिन आ ही गया जिस दिन हमें मेले में जाना था। मम्मी मैं घर का सारा काम जल्दी निपटा कर हमें मेले के लिए तैयार कर दिया। गांव वालों के साथ ट्रैक्टर में बैठकर हम भी मेले की ओर चल दिए। नाश्ते में खूब गाते हुए धूम मचाते हुए हमने पूरा रास्ता तय कर लिया। हम मेले में घुसते ही मम्मी पापा से जीदकर की आइसक्रीम दिलवा ली। अब चलते चलते हम झुलो के पास पहुंचे , बड़े झूलो को देखकर ही चक्कर आने लगता था।
फिर क्या पापा ने हमे बच्चो के झूले में बिठा दिया ,झूला झूलने के बाद चलते चलते मौसी भी मिल गई , फिर क्या मौसी और मम्मी बेखबर होके घर का सामान लेने लग गए। अब सब लोगों ने कुछ नए कुछ के है लिया था मुझे छोड़ के , क्युंकी पता था अब तो आना है नहीं यहां। फिर पापा ने मुझसे कहा” तुझे कुछ लेना है तो ले ले वरना घर चलते है”।
‘मेले में खिलौना खोजना, मानो भूसे के ढेर से सूई खोजना’
अब वह खिलौनों की दुकान में जाकर खिलौने ढूंढने लगे, अब दिमाग में आ रहा था क्या लूं और क्या नहीं? इतने खिलौनों में से एक खिलौना ढूंढना तो मानो ऐसा लग रहा था जैसे “भूसे के ढेर से सुई ढूंढना हो “। सारे खिलौने देखने के बाद मुझे एक खिलौने वाला फोन पसंद आया, से पापा ने दुकानदार से पूछा कि इसका दाम कितना है , दुकानदार ने उन्हें बताया यह ₹50 का है। पापा तो वह लेने को तैयार हो गए थे पर मम्मी ने मना कर दिया।
क्योंकि मम्मी को पता था” यह सब से अलग चीज ले लिया और भाइयों से अगर इसकी लड़ाई हुई तो यह फोन आज ही टूट जाएगा”। फिर क्या मन मार कर मुझे वहां से मम्मी लोगों के साथ चलना पड़ा। आप बहुत शाम हो चुकी थी , फिर क्या सबको घर जाने की पड़ी थी सब पूरा दिन थक चुके थे, फिर क्या किसी ने मेरा ध्यान नहीं दिया और मेरा ध्यान मैं नजरें उसी फोन में थी। सब आगे चलते रहे मैं वहीं खड़ी होकर उस फोन को देखने लगी।
‘मुझे उम्मीद थी कि परिवार वाले ढूंढने आएंगे’
अब जब मेरा ध्यान उस फोन से हटा तो मैंने पीछे देखा और पीछे देखने पर मुझे अपने परिवार का वहां कोई भी नहीं मिला। फिर क्या मेरा रोना शुरू हो गया, रोते-रोते मैं वहां इधर-उधर देखने लगी और अपने परिवार वालों को ढूंढने लगी , पर वहां कोई नहीं मिला। मुझे रोते देख हमारे गांव की एक दीदी ने मुझसे पूछा” राधु क्या हुआ क्यों रो रही है?” और मुझे अपने साथ झूला झुलाने के लिए लेकर जाने लगी।
मैं भी कम जिद्दी थोड़ी थी, मैंने भी बिना कुछ कहे उनका हाथ छोड़कर वहां से भाग गई, और वही आकर खड़ी हो गई जहां मैं अपने परिवार वालों से अलग हुई थी। मैं वहां इसलिए खड़ी हुई “क्योंकि मुझे आशा थी कि मैं जहां से अलग हुई थी मेरे परिवार वाले मुझे ढूंढने वहीं आएंगे।”मन में अजीबो ख्याल आने लगे, मेले में हो रही आवाजों से डर लगने लगा। बहुत देर हो चुकी थी पर वहां कोई नहीं आया मुझे लेने, फिर क्या अपनी हिम्मत ना हारते हुए मैंने भी सोच लिया अब मैं अकेली ही घर जाऊंगी, क्योंकि मुझे वह टैक्टर अभी भी वहां ही खड़ा हुआ दिख रहा था, जिसमें हम लोग आए थे।
मैं रोते-रोते टैक्टर की ओर जाने लगी और फिर क्या उसी ट्रैक्टर के पास मुझे मेरे परिवार वाले मिल गए। वह लोग तो मौसी के साथ व्यस्त थे और किसी को मेरी होश भी नहीं थी, फिर पापा ने पूछा” तू कहां थी ?रो क्यों रही है?”फिर मैंने वह हादसा रोते-रोते पापा को बताया, और फिर पापा ने सॉरी कहके मुझे गले लगा लिया। फिर हम सब लोग खुशी-खुशी घर की ओर जाने लगे।
(राधा पोखरिया, उत्तराखंड के नानकमत्ता पब्लिक स्कूल में कक्षा दसवीं में अध्ययनरत हैं। वह अपनी स्कूल की दीवार पत्रिका के सम्पादक मंडल से भी जुड़ी हैं। अपने विद्यालय के अन्य विद्यार्थियों के साथ मिलकर एक मासिक अखबार भी निकालती हैं। जश्न-ए-बचपन की कोशिश है बच्चों की सृजनात्मकता को अभिव्यक्ति होने का अवसर मिले)
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