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पुस्तकालय को जीवंत व सक्रिय बनाने की सफल रणनीति कैसे बनाएं?

भारत में पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त कुछ भी पढ़ना लोगों के लिए सवाल और जिज्ञासा का जरिया बन जाता है। लोग पूछते हैं कि क्या आप किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, अगर नहीं तो फिर क्यों पढ़ रहे हैं? बच्चों के लिए सिर्फ पाठ्यपुस्तकों का पढ़ना आवश्यक माना जाता है क्योंकि परीक्षाओं में पूछे जाने वाले वाल कहानी व कविताओं की किताबों से न होकर पाठ्यपुस्तकों से पूछे जाते हैं। अगर बाल साहित्य से भी परीक्षाओं में सवाल पूछे जाने लगेंगे तो पुस्तकालय की किताबों से मिलने वाला पढ़ने का आनंद या ख़ुशी भी एक तरह की यांत्रिक प्रक्रिया में तब्दील हो जाएगी, जहाँ सबसे प्रमुख उद्देश्य परीक्षा में पूछे जाने वाले सवालों के रेमीमेड जवाब तक पहुंचना भर हो जाएगा और पढ़ने की ख़ुशी बारिश के दौरान बनने वाले पानी के बुलबुलों की भांति क्षणभंगुर होकर रह जायेगी। इन्ही जटिल परिस्थितियों के कारण बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित करने के लिए पुस्तकालय की मुहिम को प्रोत्साहित करना और उसके लिए समुदाय का सहयोग हासिल करना कठिन होता है।

लोग, जगह, संग्रह, गतिविधि और संवाद क्या है महत्वपूर्ण?

किसी पुस्तकालय को जीवंत और सक्रिय बनाने के लिए पुस्तकालय से जुड़े लोगों, पुस्तकालय की जगह, पुस्तकों के संग्रह, पुस्तकालय में होने वाली विभिन्न गतिविधियों और इस प्रक्रिया में होने वाले संवाद की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लोगों यानि अपने नियमित पाठकों के बिना विभिन्न सुविधाओं से संपन्न पुस्तकालय भी किसी उद्देश्य की पूर्ति में सक्षम नहीं है। इसलिए पुस्तकालय से लोगों का जुड़ाव स्थापित करना और इसकी निरंतरता को बनाये रखना बेहद महत्वपूर्ण है।

इस संदर्भ में एक भयमुक्त माहौल में बच्चों तक किताबों की पहुंच सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। पसंद की किताबों के चुनाव पर किसी तरह का कोई डर हावी नहीं होना चाहिए। किसी पुस्तकालय में जहाँ बच्चों को इस तरह का प्रेरित करने वाला माहौल मिलता है, वहाँ पुस्तकालय उनकी सबसे पसंदीदा जगह बन जाती है। बच्चे पुस्तकालय में आना, अपनी पसंदीदा किताबों के साथ बैठना, किताबों के मुख्य पृष्ठ व उसके भीतर बने चित्रों के साथ संवाद करना और उनके बारे में अपनी एक स्वतंत्र राय कायम करने की दिशा में आगे बढ़ जाते हैं। यह पहली-दूसरी से लेकर उच्च प्राथमिक स्तर तक के बच्चों के लिए समान रूप से लागू होता है।

पुस्तकालय का संग्रह और पठन गतिविधियों

इस प्रयास में पुस्तकालय में मौजूद किताबों का संग्रह, पुस्तकालय में होने वाली विभिन्न पठन गतिविधियां और पुस्तकालय में होने वाला जीवंत व दो-तरफा संवाद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विभिन्न पठन गतिविधियों को करने के पीछे की योजना और रणनीति बेहद अहम है। एक ही गतिविधि का दोहराव हो रहा है या गतिविधियों में वैविध्य का समावेश किया गया है, ऐसे हर निर्णय का बच्चों की रुचि के विकास और पढ़ने की आदत पर प्रत्यक्ष असर पड़ता है।

इसीलिए पुस्तकालय का संचालन करने वाले शिक्षक के बारे में कहा जाता है कि उनकी खुद की समझ बाल साहित्य और इसके प्रयोग को लेकर बेहतर होनी चाहिए। इससे वे बच्चों की आवश्यकता के अनुसार मदद करने, उनके पठन स्तर व रुचि के अनुसार किताबों का चयन करने में एक अच्छे व सजग सुगमकर्ता की भूमिका निभा सकते हैं। पुस्तकालय को जीवंत बनाने वाले विद्यालय बच्चों को धारा प्रवाह पठन करने, समझ के साथ पढ़ने और लिखित सामग्री के साथ बच्चों के जुड़ाव बना पाने की क्षमता को कई गुना बढ़ा देते हैं।

पढ़ने की आदत विकसित करता है जीवंत पुस्तकालय

पुस्तकालय से बच्चों को भाषा कालांश के दौरान सीखे गये भाषायी कौशलों के अभ्यास का अवसर मिलता है। इसके साथ ही साथ अपने पठन स्तर की किताबों से पढ़ने की प्रक्रिया एक पाठक के रूप में बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाती है। पढ़ने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए इस आत्मविश्वास की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। पुस्तकालय में बच्चों को जब विभिन्न कहानियों व कविताओं को सुनने का अवसर मिलता है तो स्वाभाविक रूप से उनका झुकाव अन्य किताबों की तरफ बढ़ता है। इस प्रयास का लाभ सभी विषयों की पाठ्यपुस्तकों को पढ़ने के दौरान मिलता है। यही कारण है कि कहा जाता है पुस्तकालय का लाभ पाठ्यक्रम की दृष्टि से बच्चों को हर तरह से लाभ पहुंचाता है।

भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में रेखांकित सीखने के संकट के समाधान हेतु निपुण लक्ष्य को हासिल करने में पुस्तकालय की भूमिका को बाल वाटिका से लेकर प्राथमिक स्तर तक बेहद महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। विभिन्न राज्यों ने इस मुहिम को सफल बनाने के लिए बीते वर्षों में 100 दिन के रीडिंग कैंपेन का अपने-अपने स्तर पर संचालन करके प्रत्यक्ष रूप से किताबों के माध्यम से व डिजिटल सामग्री के माध्यम से बच्चों तक पहुंच बनाने का प्रयास किया है। यहाँ एक तथ्य रेखांकित करना आवश्यक है कि प्रत्यक्ष किताबों से जितना सघन जुड़ाव बच्चों का बनता है, वैसा डिजिटल माध्यमों से संभव नहीं है। यही कारण है कि प्राथमिक कक्षाओं में किताबों के माध्यम से बच्चों तक पहुंच बनाने और बच्चों के लिए पठन कोना या रीडिंग कॉर्नर या पुस्तकालय बनाने को इतना महत्व दिया गया है।

अंत में हम कह सकते हैं कि किसी विद्यालय में पुस्तकालय की स्थापना करना बेहद आसान है, लेकिन पुस्तकालय को विद्यालय के एक जीवंत व सक्रिय  बनाना सतत प्रयास और काफी मेहनत से हासिल होने वाला लक्ष्य है। इसलिए जरूरी है कि हम शिक्षकों की ऐसी सफलताओं को पहचाने व उसे सम्मान दें। यह पुस्तकालय को जीवंत बनाने की मुहिम में लगे शिक्षकों व बच्चों के लिए एक सार्थक अनुभव होगा, इस कड़ी में समुदाय को जोड़ने के लिए होने वाले प्रयासों को कतई अनदेखा नहीं किया जा सकता है।

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