आरव की डायरीः आखिर मेरा रॉकेट उड़ ही गया
डायरी के यह पन्ने इस मायने में बेहद ख़ास हैं क्योंकि इसे चौथी कक्षा में पढ़ने वाले आरव गजेंद्र राउत ने लिखा है। वे एजुकेशन मिरर के सबसे नन्हे लेखक हैं। उनकी दो डायरी जब प्रकाशित हुई थीं, तब वे दूसरी कक्षा में ही पढ़ रहे थे। आरव हिन्दी के साथ-साथ मराठी भाषा में भी लिखते हैं। आरव को किताबें पढ़ने और नये-नये विचारों पर काम करने में काफी आनंद आता है।
(23 नवंबर 2018) आपको पता है मैंने रॉकेट बनाने कि शुरुवात कैसे की। मैं बताता हूँ, चार या पाँच दिनों पहले मेरे पापा ने मुझे एक वीडियो दिखाया वह वीडियो रॉकेट बनाने का था। वीडियो देखकर मैंने बोला कि मैं भी ये कर सकता हूँ। लेकिन मैंने उस वक्त रॉकेट नहीं बनाया। उसके एक दिन बाद मुझे वह बात फिर से याद आ गई तो मेरे पापा ने मुझे फिर से वह वीडियो दिखाया।
फिर मैंने उसका सामान जुटाया पर हमारे पास उसमे से एक सामान कम था वह एक लकड़ी की सींक (स्कीवर) थी, बाकि सारा काम एल्युमीनियम फॉइल और माचिस की तिल्ली के आगे वाले हिस्सा (गुल) जहाँ से आग निकलती है उससे हो जाता है। मेरे पास लकड़ी की सींक नहीं थी इसलिए मैंने सोचा क्यों न एक साधारण सी लकड़ी ले लूँ, जो आकार मे पतली हो, तब मेरे मन में एक खयाल आया क्यों न मै स्कीवर की जगह अगरबत्ती की लकड़ी का सारा काला वाला हिस्सा निकालकर उसे इस्तेमाल कर लूँ क्योंकि वह सीधी होती है। तो फिर मेरे पास सारा सामान आ गया। अब बस बनाने का ही काम रह गया था।
मेरा रॉकेट कैसे बना?
पता है रॉकेट को बनाते वक्त मैंने क्या-क्या किया? एक माचिस की तिल्ली ली, उसका गुल (आगे का मसाले वाला हिस्सा ,जिसपर घर्षण से आग पैदा होती है) वाला हिस्सा काट दिया। अगरबत्ती की लकड़ी को 16 से.मी. काटा। फिर एक एल्युमीनियम फॉइल ली उसे पंचकोण के शेप में काटा जो नीचे दिखाया है। फिर उसके ऊपर राइट साइड में माचिस की तिल्ली का गुल रखा और फिर गुल के नीचे अगरबत्ती की लकड़ी रखी, फिर एल्युमीनियम फॉइल से गुल और अगरबत्ती की लकड़ी को लपेट दिया और फेवीक्विक से उसे चिपका दिया। चिपका देने के बाद उस एल्युमीनियम फॉइल का आगे का हिस्सा नुकीला कर दिया। फिर दो से.मी. का एक एल्युमीनियम फॉइल का स्क्वेयर काटा।
फिर उसे इस तरह मोड़ दिया ताकि वह एक रॉकेट के स्टैंड की तरह लगे और जोड़ने में आसान रहे। अब मैंने रॉकेट के नीचे वाले हिस्से को रॉकेट के स्टैंड से जोड़ दिया। फिर माचिस की डिब्बी ली और उसमें से तिल्लियां निकाल लीं। माचिस के बॉक्स को ऊपर से छेद किया और उसमे अगरबत्ती की लकड़ी 60 डिग्री के एंगल पर सेट की। अब गुल वाले हिस्से के नीचे कैंडल लगा दी, जिसकी लौ रॉकेट के गुल तक पहुंच पाए। फिर उस कैंडल को जला दिया और इस उम्मीद से इंतजार किया की थोड़ी देर बाद रॉकेट उड़ जायेगा। पर मेरा रॉकेट नहीं उड़ा, क्यों? क्योंकि मेरी बहुत सारी गलतिया हुई थी इसलिए।
ग़लतियों से मिली सीख
अब मै बताता हूँ कि मेरी गलतियां क्या-क्या हुई हैं। मैंने उस रॉकेट को तीन बार बनाया था। पहली बार जब मैंने उसे आधा बनाया तब मै उसे उड़ाने चला गया और वह रॉकेट मुझे थोड़ा सा उड़ता हुआ दिखा और थोड़ी सी आवाज़ भी आयी वह रॉकेट थोड़ा सा आगे भी गया। जो वीडियो मैंने देखा था उसमे लकड़ी की सींक (स्कीवर) का इस्तेमाल कर रहे थे जबकि मै अगरबत्ती की लकड़ी का इस्तेमाल कर रहा था। इसलिए मैं बार-बार फेल हो रहा था।
दूसरी बार जब मैने रॉकेट बनाकर उसे पेन पर लगाया था, वह पेन प्लास्टिक का था इसलिए वह नीचे से आग लगते ही रॉकेट प्लास्टिक से चिपक गया। उसके नीचे से धुआँ भी निकल गया था। इसीलिए वह नहीं उड़ा। जब मैंने तीसरी बार कोशिश की तो मैंने अगरबत्त्ती की लकड़ी का इस्तेमाल किया और उस रॉकेट को लकड़ी के साथ दबा-दबाकर चिपका दिया, दबाने के कारन उसमे से धुआँ नहीं निकल पाया, धुआँ नहीं निकलने की वजह से वह रॉकेट जगह पर ही फट गया। मैंने सोचा की एल्युमीनियम फॉयल बहुत वेस्ट हो रहा है और मेरी मम्मी डांट भी रही थी इसलिए मुझे वह काम रोकना पड़ा।
(25 नवम्बर 2018) आज मैंने चार बार रॉकेट बनाये। दो रॉकेट मैंने सुबह बनाए और दो शाम को। तीन मैंने शाम को बनाए पता है मैंने यहा पर दो क्यों लिखा क्यों-की जब पहली बार शाम को रॉकेट बनाया तब मेरे पापा आए और हम बाहर जा रहे थे तब मै रॉकेट बना रहा था पर हमें देर हो रही थी और पापा बोल रहे थे की ये रॉकेट तो बड़ा अच्छा बना है मुझे हाथ में दिखाओ तो मैंने उनको दिखा दिया, रॉकेट को हाथ में लेते-लेते उन्होंने रॉकेट के नीचे वाले भाग को गलती से पिचका दिया और मैं उसे उड़ा भी नही पाया। जो रॉकेट मैं उड़ाता हूँ उसकी ही मैं गिनती करता हूँ।
मैंने सोचा अब मुझे लकड़ी की सींक (स्कीवर) खरीदनी ही पड़ेगी, मैं दौड़कर वॉलेट लेके आया फिर मै पापा के साथ बिल्डिंग के नीचे उतर गया फिर हम ज्वाला हेडी मार्केट में चले गए। हम ज्वाला हेडी मार्केट से आ गए पर हमने स्कीवर नहीं लाये क्योंकि स्कीवर मार्केट में उपलब्ध नहीं था। इसलिए हमने बम्बू की लकडिया लाई जो स्कीवर की तरह ही थी। फिर मैंने दो बार रॉकेट बनाये। पहली बार जब मैंने रॉकेट बनाया तब वह थोड़ा सा आगे बढ़ा और पीछे से धुआँ भी निकला था। जब मैंने दूसरी बार रॉकेट बनाया तब मैंने छोटा बनाया था, जब उसे लॉन्च किया तब उसमे से थोड़ा धुआँ निकला और थोड़ी-थोड़ी आग निकलती रही और उसने अपने साथ साथ लकड़ी को भी जला दिया। इसलिए वह नहीं उड़ा। मुझे लगा की इसमें मैं बार-बार फेल हो रहा हूँ तो मैंने ये काम करना ही छोड़ दिया। ऐसे करते करते 18 महीने बीत गए। जून 2019 में मैं दिल्ली से अमरावती आ गया।
फिर से किया रॉकेट बनाने का प्रयास
(11 मई 2020) आज मेरी मम्मी ने एक आइसक्रीम बनाई थी और उस आइसक्रीम को पैक करने के लिए उन्होंने एल्युमीनियम फॉयल लिया था। मुझे पता ही नहीं था की हमारे घर एल्युमीनियम फॉयल भी है तो मेरे मन में खयाल आया की मैंने दिल्ली में रॉकेट बनाने का प्रयास किया था लेकिन वह सफल नहीं हुआ तो मैंने सोचा क्यों न एक बार फिर से प्रयास करें, क्या पता रॉकेट उड़ जाये। उस वक्त मैंने रॉकेट बनाने की प्रक्रिया, रॉकेट क्यों नहीं उड़ा , कैसे नहीं उड़ा और जो गलतिया मेरी हुई थी उनके बारे में डायरी के पन्नों में लिखा था। डायरी के पन्ने निकालने के बाद मुझे वह सबकुछ याद आ गया की रॉकेट कैसे बनाते है और क्या-क्या गलतियां मैंने की थी। मैंने रॉकेट के लिए जो सामान लगता है वो फिर से इकठ्ठा किया। सामान में एक अगरबत्ती की लकड़ी, माचिस की तिल्लियां, एल्युमीनियम फॉयल पेपर और एक दीया।
मैंने रॉकेट बनाया, फिर अगरबत्ती की लकड़ी को जिसमें रॉकेट लगा हुआ था, उसको एल्युमीनियम फॉयल के एक डिब्बे में डाला फिर उसे 60 डिग्री के एंगल पे झुकाया। तब मेरा लगभग पूरा काम हो चुका था, बस दिये को रॉकेट के अंदर के गुल के नीचे लगाना था। तो मैंने मेरे भैया और दीदी को बुलाया और दिये को गुल के नीचे ले गया, पर मेरा मेरा रॉकेट नहीं उड़ा और वहीं जल गया।
फिर दूसरी बार मैंने रॉकेट छोटा करके देखा क्योंकि इससे रॉकेट का वजन कम होगा और वो रॉकेट उड़ जायेगा, मैंने सोचा। पर इस बार भी मेरी किश्मत अच्छी नहीं थी। मेरा रॉकेट फिर से नहीं उड़ा। अब तीसरी बार मैंने एक के बजाय तीन माचिस की तिल्लियों का गुल लगाया, और रॉकेट को छोटा किया। अब वह रॉकेट मैंने स्टैंड (एल्युमीनियम फॉयल के एक डिब्बे में डाला फिर उसे 60 डिग्री के एंगल पर झुकाया) पर लगाया और दिया बिल्कुल गुल के नीचे लाया तब पिछले वाले से भी अब रॉकेट में ज्यादा आग लगी और रॉकेट जल गया। ऐसे करते-करते और दो बार अलग-अलग तरीकों से मैंने रॉकेट बनाया तब भी मेरा रॉकेट नहीं उड़ा।
15वें प्रयास में मिली पहली सफलता
तो फिर मैंने सोचा कि अब मुझे एक बार और वीडियो देखना ही पड़ेगा। जो वीडियो मैंने देखा उसमे तो वही तरीका था पर उसमें अगरबत्ती की लकड़ी के बजाय स्कीवर (लकड़ी की सींक) इस्तेमाल की थी। तो मैंने मेरे पापा से पूछा की हमारे पास स्कीवर हैं क्या? तो मेरे पापा बोले नहीं, पर हमारे पास सरगुण्डे बनाने के “सर” है (सरगुण्डे विदर्भ की स्पेशल डिश है जिसे बनाने में चिकनी लकड़ी का इस्तेमाल करते है उसे “सर” कहते है) तो मैंने ‘सर’ लाये। और मैंने वीडियो में देखकर फिर से एक रॉकेट बनाया।
फिर मैंने पापा को बुलाया और कहा की रॉकेट बन गया है। तो मेरे पापा आ गए और फिर मैंने दिया नीचे लाया और फिर मेरी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा, मुझे लगा की इतनी बार असफल होने के बाद भी मै सफल हो सकता हुँ। वह रॉकेट 30 से.मी. दूर गया था। मुझे वो फिर करना था क्योंकि वो तरीका इस बार भी काम करेगा क्या? ऐसा मुझे प्रश्न पड़ा और रॉकेट उड़ते हुए किसी और ने भी तो नहीं देखा था ना। फिर मैंने रॉकेट बनाया और भैया को कहा की आप इसे रिकॉर्ड करना तो मैंने दिया निचे लगाया और वो रॉकेट पिछले वाले से दो गुना दूर गया। मतलब 60 से.मी.। इसके बाद मैंने वो रिकॉर्डिंग सबको दिखाई।
https://photos.app.goo.gl/oENMQ9ujPkoPbJut6
प्रयास करते-करते मैंने तेरह बार प्रयास किया पर मुझे सफलता हासिल नहीं हुई इसके बाद चौदहवें और पन्द्रहवें प्रयास में मैं सफल रहा क्योंकि मैंने हर बार अलग-अलग तरीकों से रॉकेट बनाया और गलतिया नहीं दोहराई।
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Hat’s off to your consistency.
Good Aarav. Nice to read your article.
Good to read your article. Keep it up.
Consistent efforts always pays.keep it up. Continue to write diary.
बोहत अच्छे आरव।इसमें आपने जो लिखा है। डायरी के पन्नों में लिखा था। उससे यह स्पष्ट हो जाता है की, डायरी लिखना बोहत ही अच्छा है। इसी तरह लिखते रहो। all the best
Very good aarav keep going God bless you and best of luck for your future
बहुत खूब आरव सफल होणे के लिये बहोत प्रयास ज
करना पडता है ये आपणे शाबीत कर दिया उमर के हिसाब से बहुत मेहनत की है भविष्य मे कूच और करणेकी कबिलियत आपमे है ये महसुस होता है
Bahutahi badhiya Aarav…tum kafi kuch sikh rahe ho…bahot acche…
Good going keep it up
Good to see that you made consistent efforts and finally your rocket got launched. Consistency and perseverance are key to achieve success in any field. Keep it up and all the best for future writings.
बहुत खूब 👌👌👌
नन्हें हाथों में कलम का जादू हैं ।
Chan itkya vela asaflta milun sudha tu har manli nahi praytn suruch thevle very good aarav
Bahut achhe aarav likhate rho