ऑनलाइन क्लासः ज़मीनी वास्तविकता और शिक्षकों के सामने मौजूद चुनौतियां क्या हैं?
कोरोना वायरस ने जब पूरी दुनिया को एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ सबकी गति मानो थम सी गयी हो, भागते- दौड़ते शहर मानो रुक से गये हों। चिड़ियों की चहचाहट के साथ पार्कों और सड़कों पर सैर को निकलते लोग आज घरों में कैद हो गये हैं। स्कुल, कॉलेज सब पर ताला लटका हुआ है। ऐसे में पढ़ाई का नुकसान ना हो यह एक चिंता का सबब था पर हम तो पत्थरों को चीरकर राह निकालने वाले लोग हैं। बेशक दुनिया को घरों में नजरबंद कर कोरोना अपनी कामयाबी पर खुश हो रहा हो पर हम कहाँ हार मानने वाले हैं। इंटरनेट और विडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये जब हम पुरे विश्व को एक धागे में बाँध सकने का जज्बा रखते हों तो छात्रों की पढ़ाई का नुकसान की सोचना बेमानी बात होगी।
अब तो हर स्कुल में ऑनलाइन क्लास एक अति आवश्यक अंग हो गया है जो लॉकडाउन को मुंह चिढ़ा रहा है। प्रत्येक स्कूल में प्रत्येक कक्षा के लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाये जा रहे हैं जहाँ छात्रों को नियमित रूप से शिक्षक होमवर्क, पढने के लिए पीडीएफ और देखने के लिए विडियो भेजते हैं। इसका फायदा ये है कि अब सब कुछ दोनों की मर्जी पर शिक्षक ने अपना काम कर लिया अब छात्र अपना काम करें। कोई रोक- टोक, डांट- डपट, शरारत कुछ नही। और तो और दंड का कोई प्रावधान भी नही। सबकुछ मजे में चल रहा है पर इतने से लोगों में संतोष आ जाये ऐसा होता है भला?
अभिभावकों की चिंता
अभिभावक का एक वर्ग इस बात को लेकर चिंतित है कि लॉकडाउन में जब शिक्षकों ने पढाया ही नही तो पैसे क्यों दिए जाये और फिर स्कुल और अभिभावकों के बीच की रस्साकसी में स्कूलों ने आगे आकर छात्रों को ऑनलाइन क्लास देने का निर्णय लिया जो एक स्वागत योग्य कदम है। व्हाट्सएप पर काम भेज देना तो रस्मअदायगी भर है। अब एक ग्रुप में सभी शिक्षक अपने अपने हिस्से का काम देकर निश्चिन्त हो जाये तो भला उन बच्चों के साथ तो ये नाइंसाफी ही है।
सबसे दुखदायी पहलू इनमे छोटे बच्चों के साथ गुजरता है। अब जब विद्यालय ज़ूम, माइक्रोसॉफ्ट टीम या सिसको जैसे सॉफ्टवेयर की मदद से पढ़ाते हैं। 4 या 5 साल के बच्चों को लैपटॉप , टैब या मोबाइल के सामने बैठने की आदत तो होती नहीं पर शिक्षक की भी मज़बूरी है क्योंकि उनके ऊपर दबाब है पर क्या इतने छोटे बच्चों को बिना माँ- बाप की मदद से ऑनलाइन क्लास दिया जा सकता है और अगर इसका उत्तर हाँ है तो अगर माँ बच्चे के साथ बैठ गयी तो घर का काम कौन करेगा क्योंकि क्लास का टाइम तो सुबह का होता है और ऐसे में घर की जरूरतों का ध्यान कौन रखेगा क्योंकि लॉकडाउन में तो घरों में किसी सहायक का आना संभव नही।
मुझे ताज्जुब तब हुआ जब मेरी 4 साल की बेटी निष्ठा को पढ़ाने वाली शिक्षिका ने ऑनलाइन क्लास में हिंदी बोलना जैसे मुनासिब ही नही समझा अब समस्या ये है की अगर अभिभावक को इतनी अंग्रेजी ना आये तो क्या एक अंग्रेजी स्कुल का शिक्षक माँ- बाप को ऑनलाइन इंग्लिश ट्रेनिंग देंगे या 2 घंटे की क्लास में A से J तक के दस अक्षरों को , 1 से 10 तक की गिनती, ड्राइंग, योगा सब सिखाकर 4 साल के बच्चे के ऊपर पर हम एहसान कर रहे है या पढ़ाई के नाम पर माँ- बाप का दोहन।
ऑनलाइन शिक्षण में ‘संवाद’ की जरूरत
बड़े बच्चों को भी ज़ूम या टीम पर पढ़ाने में शिक्षक का सभी छात्रों से संवाद तो होता नही और सब शिक्षक अपनी स्लाइड या ब्लैकबोर्ड स्क्रीन शेयर कर अपनी पीठ तो थपथपा सकते हैं पर असल में संवाद के बगैर पढ़ाई का कोई अर्थ नही बचता। जबतक आपसी संवाद ना हो , एक सुखद चर्चा ना हो, विचार का आदान प्रदान ना हो तो पढ़ाई उबाऊ है क्योंकि आप एक कमरे से बैठ 60 बच्चों के साथ बिना उन्हें देखें सिर्फ ये मान लेते हैं की पढ़ाई हो गयी तो फिर आप ऐसी पढ़ाई से तौबा कीजिये।

तस्वीरः साभार http://www.freepik.com से।
मेरे एक मित्र बताते हैं की उनका बेटा कैसे मोबाइल पर ऑनलाइन क्लास में गेम खेलता है , मैं अपने बेटे नीलभ को अक्सर बिस्तर पर सोकर पढ़ते देख डांटता हूँ क्योंकि ऑनलाइन क्लास में आपके पास छात्रों के नियंत्रण के लिए कुछ है नहीं बस आप अपना ज्ञान देते रहिये अब लेने वाला कितना जागरूक है, कितना आत्म-अनुशासित ये आपको सोचना है नही।
शिक्षकों के सामने एक नई चुनौती
ये तो हो गया अभिभावक का पक्ष अब एक शिक्षक के पहलू से देखते हैं। हाल ही में कई शिक्षिकाओं ने शिकायत की है कि छात्र उन्हें कभी-कभार व्हाट्सएप पर ऐसे मेसेज भेजते हैं जो उपयुक्त नहीं कहे जा सकते। इसके साथ ही साथ बच्चों के पिता जिनके मोबाइल पर शिक्षिकाओं के मोबाइल नंबर व्हाट्सएप ग्रुप पर मौजूद है, शिक्षिकाओं को फोन करके बेवहजह परेशान करते नजर आते हैं। इसके कारण भी शिक्षक साथियों को होने वाली परेशानी की तरफ भी हमें ध्यान देने की जरूरत है ताकि ऑनलाइन लर्निंग के दौरान छात्र-शिक्षक रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े और अभिभावकों की तरफ से भी अगर ऐसी कोई समस्या किसी शिक्षिका को हो रही है तो विद्यालय प्रबंधन व संबंधित विभाग को अपनी तरफ से सहयोग की पहल करनी चाहिए। इस आशय की कुछ खबरें भी मीडिया में प्रकाशित हुई हैं। इसलिए इस मुद्दे को लेकर सजगता और जागरूकता जरूरी है।
ऑनलाइन लर्निंगः सीखने का अवसर और तैयारी की जरूरत
मैं इस बात से पूर्णतः इत्तफाक रखता हूँ की आज के इस माहौल में ई-लर्निंग एक आवश्यक अंग बन चुका है पर हम इसके आदी नही है और हमें ऐसे सिस्टम को अपनाना तो पड़ेगा ही पर यह एक खानापूर्ति बनकर सीखने की और सिखाने की परम्परा में आड़े ना आये। हम अपने ज्ञान को थोपने के लिए मासूम बच्चों को अपना शिकार तो नही बना सकते। शिक्षा में आडम्बर का स्थान नही है पर व्हाट्सएप पर अपने काम की खानापूर्ति या ज़ूम पर सभी छात्रों के बोलने पर म्यूट बटन की पाबन्दी लगा हम एक स्वस्थ बातावरण बना रहे हैं। क्या ऑनलाइन क्लास में जहाँ शिक्षकों को एक अभिभावक भी सुन सकता है , क्लास की प्राइवेसी का उलंघन तो नही और कहीं इसी डर से तो शिक्षक खुद को एक अच्छा शिक्षक साबित करने की होड़ में शिक्षा के मूल उद्देश्य से भटक तो नही रहा है?
आज एक छात्र के दर्द खासकर 4 से 8 साल के बच्चों की जरूरत को समझते हुए हमे ऑनलाइन क्लास को एक रूप देने की आवश्यकता है। इसके साथ ही साथ शिक्षकों की प्राइवेसी बेहद जरुरी है ताकि उनके भी निजता के अधिकार की सुरक्षा हो सके और अनावश्यक तनाव और परेशानी का सबब न बने।
(लेखक परिचयः डॉ राजेश कुमार ठाकुर वर्तमान में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय , रोहिणी , सेक्टर 16 दिल्ली -110089 में बतौर शिक्षक काम कर रहे हैं। 60 पुस्तकें , 500 गणितीय लेख, 400 से अधिक ब्लॉग व 10 रिसर्च पेपर प्रकाशित। इस लेख के संदर्भ में आपके विचार और अनुभव क्या है, टिप्पणी लिखकर बताएं। एजुकेशन मिरर के लिए अपने लेख भेजें Whatsapp: 9076578600 पर, Email: educationmirrors@gmail.com के माध्यम से)
Respected Vinay Astha Ji
I am not pessimist but I have highlighted the concern of teachers. I emphasized the need of online learning but not at the cost of privacy of teachers. Though KOVID has made a change in educational paradigm but we need to understand the importance as well as drawback. Online classes are held with the availability slot of teachers and in that case you can’t fix the time frame where a learning takes place. Fact of matter is no one is against online class but it has stressed parents a lot. How can a 3 years or 4 years operate zoom and do activity without the help of parents? Does same happen when normal school open?
Putting pressure and forwarding homework in group or assignment in microsoft team will not do good to education at the early stage and that I am trying to say.
आदरणीया नीलिमा जी
गाँव की बात तो छोडिये शहरों में भी आज छात्रों के पास या छोटे कामगारों के बच्चों के पास मोबाइल अर्थात स्मार्ट फोन नही है , पर सिस्टम से लड़ना तो सबके बस में नहीं. सरकारी घोषणा और हकीकत में काफी अंतर है. मैं आपकी बात से इत्तफाक रखता हूँ. जहाँ दो जून का खाना मुश्किल से मिलता हो वहां आप मोबाइल का बिल भर एक अनावश्यक बोझ तब बढ़ा रहे हैं जब मजदूरों के पास काम नही हैं.
डॉ राजेश कुमार ठाकुर
It’s just beginning of new era. with passing time everybody will be able to adopt this. Have we ever thought vegetable sellers would start digital transactions. People of Odisha will be able to face Amfan without any single fatality. Everything takes time. Instead of highlighting negative points we will have to give more stress on suggestions upword side. Regards
बहुत जागरूक करता लेख महोदय ।
🙏🙏🙏🙏
गाँवो में जहाँ सरकारी स्कूलों के बच्चों के पालकों के पास मोबाईल , स्मार्टफोन ,डाटा जैसी सुविधाएं नहीं ,वहाँ बच्चों की ऑनलाइन स्टडी फेल है। शिक्षकों के सामने चुनौतियां हैं , पर इनके बेहतर समाधन के विकल्पों पर विचार करने की आवश्यकता है ।
गांव के बच्चों की शिक्षा के बारे में क्या विचार है जहां ना तो उचित बिजली की आपूर्ति और ना ही प्रत्येक बच्चे के पास मल्टीमीडिया मोबाइल… ऐसे में शिक्षा जो सभी बच्चे का मौलिक अधिकार है, इस lockdown में उनके अधिकार कहां