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राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय हरिनगर दिल्ली की टीम का 76 दिन का शिक्षण शास्त्रीय सफर

ajay-chaubeyविद्यालय के लगभग सभी कर्मचारियों एवं शिक्षकों ने 76 दिनों में समुदाय एवं मानवता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखलाई। जिसमें विद्यालय के सफाई कर्मचारी, सुरक्षा गार्ड, स्टेट मैनेजर जितेंद्र झा तथा विद्यालय प्रमुख के रूप में स्वयं भी बिना छुट्टी बिना ब्रेक लगातार प्रतिदिन सुबह 9:30 से रात्रि 10:00 बजे तक लगभग 7000 लोगों को प्रतिदिन लंच एवं डिनर का वितरण एवं प्रतिदिन लगभग 500 लोगों को सूखा राशन वितरण कर रहे थे। जो कल समाप्त हुआ। 76 दिनों में प्रतिदिन हजारों व्यक्तियों से मिलना, उनको अवलोकन तथा कार्य करते हुए उनसे बातचीत एवं संवाद करने की एक आदत सी हो गई। कल विद्यालय के सुरक्षा गार्डों तथा स्टेट मैनेजर ने भी यह बात साझा किया कि भीड़ के बीच सुबह से देर रात तक कार्य करने की आदत हो गई थी।

शिक्षा मनोविज्ञान की भाषा में इसे ‘अनुकूलन’ (conditioning) कहते हैं। कार्य मुश्किल एवं चुनौतीपूर्ण था परन्तु अब बन्द हो गया तो मन नहीं लग रहा है। यही है मानव मन जो न केवल व्यक्ति या समूह की कभी महसूस करता है बल्कि कार्य की कमी भी महसूस करता है। अतः कार्य केवल जीविकोपार्जन का साधन ही नहीं है। बल्कि यह व्यक्तियों एवं समुदाय के बीच रचनात्मक रूप से जुड़ने का जरिया भी है।इसके द्वारा व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से जुड़कर अपने अस्तित्व की सार्थकता को भी महसूस करता है। इस तरह यह 76 दिन प्रत्येक दृष्टि से समृद्ध करने वाला रहा है। इन दिनों में अवलोकनों,अंत:क्रियाओं एवं अनुभवों एक समृद्ध डाटा सेट प्राप्त हुआ है। जिससे जीवन पर्यन्त विश्लेषित एवं व्याख्यायित करके मानव अस्तित्व के बुनियादी प्रश्नों का उत्तर दिया जा सकता है।

फिलहाल उन पर आधारित कुछ त्वरित, स्वत:स्फूर्त एवं अक्रमिक विचारों को प्रस्तुत करूंगा। परन्तु उससे पहले यह साझा करना संगत है कि किसी भी महामारी या विपदा में तीन समूह की कठिन परीक्षा होती है वे है सरकार, शिक्षक और मानवता। वास्तव में जमीनी स्तर पर शिक्षक एवं विद्यालय तीनों समूह के कार्यकर्त्ता एवं नेतृत्व के रूप में मानवतावादी संकट के सम्बन्ध में रचनात्मक भूमिका निभा रहे हैं। कुछ शिक्षक एवं प्रधानाचार्य कोरोना संकटकाल में अपनी ड्यूटी निभाते हुए शहीद भी हो चुके हैं। हम सब उनके इस बलिदान पर गर्व करते हैं एवं सहृदय नमन करते हैं। साथ ही कुछ शिक्षक एवं प्रधानाचार्य कार्य करते हुए कोरोना से संक्रमित हो गए हैं। हम उनके जल्द स्वस्थ होने की कामना करते हैं।

लीक से हटकर होने वाले प्रयास

कोरोना संबंधित विभिन्न अकादमिक एवं मननशील लेखों और निबंधों में शिक्षकों एवं शिक्षा संस्थानों को लीक से हटकर कुछ रचनात्मक योगदान करने की आकांक्षा एवं आवश्यकता रेखांकित की जाती है। इस संदर्भ में यह साझा करना संगत है कि राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय के शिक्षकों, विद्यार्थियों, अभिभावकों एवं एसएमसी की टीम ने तीन शिक्षणशास्त्रीय मोर्चे यथा (1.)Hunger And Fundamental Needs,(2.) Mental Health तथा (3.) Relevent And Emancipatory Pedagogy के रूप में लीक से हटकर प्रयास कर रही है।

सरकारी विद्यालयों एवं उनके शिक्षकों को चुनाव,जनगणना, सरकारी सुविधाओं के वितरण इत्यादि जैसे मानवतावादी कार्यों को प्रभावशाली ढंग से पूरा करने का कौशल एवं महारथ दोनों प्राप्त है। आज भी कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न मानवीय संकट से निपटने के लिए कई मोर्चों पर वर्णनीय कार्य कर रहे हैं। पका भोजन वितरण, ड्राई राशन वितरण, क्वारैंटाईन सेंटर पर ड्यूटी, जनता को जागरुक करने का कार्य, शेल्टर होम में ड्यूटी, अतिथि श्रमिकों को एस्कोर्ट करने जैसे अनेकों कार्य कर रहे हैं। परन्तु अक्सर उन्हें सरकारी कर्मियों की श्रेणी में ही रखते हुए उनकी अपनी विशिष्ट शिक्षा की अस्मिता की अनदेखी की जाती है।

आज भी कोरोना की लड़ाई में शामिल डॉक्टर, नर्स, सफाईकर्मचारी, पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारियों को कोरोनावाॅरियर के रूप में पहचाना जा रहा है। एक चिकित्सक, नर्स,पुलिस अधिकारी, सफाई कर्मचारी भी सरकारी प्रशासन के ही भाग होते हैं परन्तु उनको, उनके पेशे से पहचाना जाता है जबकि एक विशेषज्ञ के रूप में शिक्षकों की अस्मिता को प्रशासन की श्रेणी में ही अक्सर परिभाषित किया जाता है।

delhi-school-1उत्तरदायित्व का निर्धारण करने के लिए शिक्षक की अस्मिता कोटि को बहुत स्पष्टता के साथ उभारा जाता है। चुनाव, जनगणना, सर्वेक्षण तथा आपदा में शिक्षकों के द्वारा केन्द्रीय भूमिका निभाई जाती है। परन्तु उनको कभी भी चुनाववाॅरियर, सामाजिकवाॅरियर,आपदावाॅरियर के रूप में नहीं पहचाना जाता है। यह शिक्षकों की अस्मिता का लघुकरण या शून्यीकरण या हासियाकरण या विरुक्तीकरण है। इसके द्वारा ही शिक्षकों एवं शिक्षण पेशा के विरुद्ध ज्ञानमींमासीय हिंसा तथा शिक्षकों के शिक्षण पेशा का बहिर्निवेशन होता है।

प्रथम पंक्ति के योद्धाओं का आभार

सफाई कर्मचारी, नर्स, चिकित्सक, पुलिस एवं सुरक्षाकर्मी निश्चित तौर पर अत्यधिक जोखिम का सामना करते हैं। उन्हें प्रथम पंक्ति के योद्धा के रूप में पहचान के द्वारा उनके प्रति सम्मान एवं कृतज्ञता प्रकट करना आवश्यक है। परन्तु इसके साथ ही, शिक्षक भी प्रथम पंक्ति के वाॅरियर है। अधिकांश शिक्षकों के शहीद होने से उनके हिस्से की जोखिम का भी पता लगता है। हालांकि लोक कल्याण का कार्य सेवा भाव है जहाँ इस तरह की पहचान में कोई मायने नहीं है। परन्तु किसी खास पेशों को एक विशेष श्रेणी में रखने की प्रक्रिया एक गहरे विमर्श की राजनीति से प्रेरित है जिसमें शिक्षक, शिक्षण पेशा तथा कुछ उदाहरणों को छोड़कर सरकारी शिक्षा संस्थानों के योगदानों एवं अस्मिता को या तो सरलीकरण किया जाता है या अनदेखा किया जाता है। इसके अतिरिक्त अपने कार्यालयी जिम्मेदारियों के साथ लोक शिक्षा संस्थानों एवं उसके शिक्षकों को अनेक मोर्चे पर मानवता के संकट के समय सृजनात्मक विकल्प प्रस्तुत करते हुए सामाजिक एवं मानवता के कार्यकर्त्ता एवं नेतृत्व के रूप में कार्य कर रहे हैं।

इस कोरोना संकटकाल में भी कुछ अपवादों को छोड़कर शिक्षकों को कोरोना योद्धा के रूप में शायद ही पहचाना जा रहा है। हालांकि इससे शिक्षकों को कोई फर्क नहीं पड़ता। शिक्षक अपने जीवन काल में अनेकों जिम्मेदारियों का वहन करते हुए अनेक मोर्चे पर काम करते हुए व्यक्ति, समाज, व्यवस्था, संस्कृति एवं सभ्यता को पोषित करता है। फिर भी उनके कर्म और योगदानों के रूप में उनकी अस्मिता को पुनर्व्याख्यायित या पुनर्परिभाषित करने से उनके आत्मविश्वास, सर्जनात्मक उत्साह एवं प्रतिबद्धता पोषित होती है। राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय हरिनगर में एक विद्यालय प्रमुख के रूप में, शिक्षकों, सफाई कर्मचारियों तथा सुरक्षा गार्डों, इस्टेट मैनेजर, सिविल डिफेंस वालिटिंयर, स्थानीय एमएलए, स्थानीय नेतृत्व, समुदाय के सदस्य, गुरुद्वाराप्रबंधन कमेटी, समाज सेवक तथा एसडीएम,डीएम के कर्मचारियों के साथ लगभग 7000 लोगों को प्रतिदिन सुबह-शाम पके भोजन के वितरण की व्यवस्था तथा प्रतिदिन 500 लोगों को राशन वितरण की व्यवस्था को सुगमित किया।

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यह कार्य लगभग 76 दिन चला। जिसमें विद्यालय प्रमुख के नाते रविवार या छुट्टी के दिन भी ब्रेक लेने का अवसर नहीं मिला। प्रतिदिन प्रात: 10-11 बजे के आसपास विद्यालय आना तथा रात्रि में 9:30 से 10:00 के आसपास विद्यालय छोड़ने का बाद, आधे घंटे बाद घर पहुंचना तथा लगभग एक घंटा साफसफाई के बाद 11 11:15 बजे तक तैयार होकर रात्रि भोजन करता। फिर सुबह उठकर तैयार होकर विद्यालय आता। कभी जब सूखा राशन आता था तो रात्रि के 12 या 1 बजे तक विद्यालय में रहना होता था। इस दौरान कोविड की आपात ड्यूटी व समय दोनों सामान्य दिनों से अधिक एवं प्रतिकूल था परन्तु 76 दिनों में काम करने से अप्रत्याशित अनुभव एवं संतोष प्राप्त हुआ तथा जमीनी स्तर पर अभाव, असहाय स्थिति, अन्यायपूर्ण जीवन परिस्थितियों में फंसे कुछ व्यक्तियों एवं समूह के लिए ओर अधिक जिम्मेदारी उठाने की प्रेरणा प्राप्त हुयी।

आज दोनों काम समाप्त हो गये। एक प्रशासनिक प्रमुख के नाते अब विद्यालय प्रतिदिन आना होगा परन्तु काम करने का मोड अलग होगा अतः यह रीलर्निंग अवसर होगा। 76 दिनों में काम करते हुए जो सीखने को मिला उसमें पहली बात यह है कि जो आप के आसपास, पड़ोस या स्थानीयता में है वही यथार्थ है बाकी सब आभासी है। स्थानीयता ही यथार्थ है महामारी या आपदा जैसी स्थिति में काम में आता है। सीखने के दूसरा अवसर यह मिला कि विद्यालय एवं शिक्षक मानव कल्याण के लिए कार्य करने वाले सभी व्यक्तियों संस्थाओं या अभिकरणों के बीच समन्वित प्रयास का परिवेश एवं अभिकरण दोनों होते हैं। उनके बिना किसी भी प्रभावशाली समन्वित प्रयास को प्रभावशाली ढंग से फलीभूत नहीं किया जा सकता।

मानवतावादी नवाचार

राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय हरिनगर में विद्यालय एवं शिक्षकों के प्रयास से गरीब, बेघर, अतिथि मजदूरों के भोजन वितरण की व्यवस्था को इसी परिप्रेक्ष्य, रणनीति एवं जज्बे के साथ प्रबन्धित एवं सुगमित किया जिसके कारण सरकारी भोजन को सामुदायिक भोजन के रूप में सुगमित किया जा सका। जहाँ भोजनग्रहण करने वाले में स्वामित्व व स्वाभिमान का बोध पोषित होता है। इसके अतिरिक्त सीखने को यह भी मिला कि विद्यालय एवं शिक्षक अपनी कल्पनाशीलता, क्षमता, समीक्षायीचेतना, करुणा ,सर्जनात्मक उत्साह एवं अभिकरण के माध्यम से नई संभावनाएं सृजित कर सकता है। जैसे राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय के शिक्षकों और विद्यार्थियों ने मिलकर कुछ मानवतावादी नवाचार किये।जो इस प्रकार है

1. शिक्षक एवं विद्यार्थियों की टीम ने गरीब, वंचितों, अतिथि श्रमिकों के लिए राशन के लिए ई कूपन बनाने के लिए तकनीकी सहायता दी। जिससे न केवल विद्यालय के विद्यार्थी बल्कि उनके माध्यम से उनका पड़ोस तथा विद्यालय के पड़ोस भी लाभान्वित हुआ।

2. शिक्षक, विद्यार्थी, अभिभावक एवं एसएमसी सदस्यों ने स्वैच्छिक सहयोग के द्वारा धन एवं संसाधन एकत्रित किये। जिसके द्वारा विद्यार्थियों के परिवार, उनके पड़ोस तथा अन्य जरूरतमंद व्यक्तियों को राशनकिट, गैससिलेंडर, तेल मसाले, सब्जी के पैसे,बच्चों के स्नेक्स, बॉर्नविटा, हॉरलिक्स,दूध पाउडर, दवाईयां तथा कुछ विशेष परिस्थितियों में नगद सहायता उपलब्ध करवायी गयी। इसके साथ ही उक्त धनराशि से विद्यार्थियों के डिमांड पर उनका इंटरनेट डाटा रिचार्ज करवाया गया जिससे उनके साथ ऑनलाइन क्रिया के द्वारा जुड़ा जा सका।

3. इसके साथ वर्तमान संकट में उभर रहे मनोवैज्ञानिक या मानसिक स्वास्थ्य की स्थितियों को देखते हुए विद्यालय में कोरोना संकट के संदर्भ में मनोवैज्ञानिक या मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से निपटने के लिए एक पाठ्यक्रम निर्मित किया गया जिसके द्वारा विद्यार्थियों तथा उनके परिवार एवं पड़ोस में रचनात्मक मानसिक या मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पोषित करने के लिए शिक्षकों एवं बच्चों ने काम किया।

4. इसके बाद विद्यार्थियों को किताबी या परीक्षा उन्मुखी शिक्षा के स्थान पर संगत एवं सन्युक्ति शिक्षाशास्त्र को अपनाया गया जिसके द्वारा बच्चों को परीक्षावाॅरियर या सिलेबसवाॅरियर के स्थान पर वर्तमान जीवन व इसके संकट से सीखने की प्रक्रिया को पोषित किया जा रहा है। जहाँ बच्चों में वैज्ञानिक एवं मानवीय दृष्टिकोण तथा रचनात्मकता के विकास को सुगमित किया जा रहा है। इस तरह संगत एवं सविमुक्त शिक्षाशास्त्र के द्वारा बच्चों में कल्पनाशीलता, सामाजिक अन्वेषण, स्वतंत्र एवं खुला चिंतन, समीक्षायी चेतना, करूणा, सृजनात्मक एवं लोकतंत्रकारी अभिकरण को पोषित किया जा रहा है।

इस तरह समझ में आया कि एक विद्यालय एवं शिक्षक सरकारी उपकरण से अधिक है। समाज को शिक्षकों को एवं विद्यालय में छुपी हुयी संभावनाओं को अनाच्छादित करना होगा तभी उनमें छुपी मानवता के कल्याण की संभावनाएं प्रस्फुट होगी। यह तभी संभव है जब शिक्षकों को स्वायतता, सम्मान उनकी अस्मिता एवं अभिकरण का सशक्तिकरण किया जाए। जमीनी स्तर पर लोगों से परिचर्चा एवं संवाद तथा अवलोकन के द्वारा उनके जीवन जोखिम के आकलन करते हुए यह स्पष्ट हुआ कि विद्यालय समुदाय के हितों एवं सरोकारों से विमुख है।

harinagarसमाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अभाव, अक्षमता, असुरक्षा, असमानता, अन्याय तथा संभावनाओं की कमी से त्रस्त है। अतः विद्यालय को समुदाय के स्वामित्व में सौंपे जाने की जरूरत है। जहां सरकार का दायित्व संसाधन,राजकोषीय एवं नीतिगत जिम्मेदारी उठाना मात्र होगा। समुदाय के स्वामित्व का अर्थ विद्यार्थी, शिक्षक, अभिभावक एवं पड़ोस का साझा स्वामित्व। इसके द्वारा ही विद्यालय को समतामूलक एवं समावेशी समाज के निर्माण के अभिकरण के रूप में सुगमित किया जा सकता है।

अगले अंक में कोविड 19 संकट के दौरान राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय हरिनगर के द्वारा तीन शिक्षणशास्त्रीय मोर्चे ( pedagogic design) पर किये जा रहे प्रयासों के Framework तथा कार्ययोजना को साझा करूंगा। सुरक्षित रहे,स्वस्थ रहे तथा आशान्वित रहे। यही कामना करता हूं।

(अजय चौबे जी राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय हरिनगर, दिल्ली के हेड ऑफ स्कूल हैं। शिक्षा के क्षेत्र में नवाचारों का नेतृत्व विद्यालय स्तर पर कर रहे हैं और शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर चिंतन और समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास लगातार कर रहे हैं।आप एजुकेशन मिरर को फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर फ़ॉलो कर सकते हैं। वीडियो कंटेंट व स्टोरी के लिए एजुकेशन मिरर के यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। एजुकेशन मिरर के लिए अपनी स्टोरी/लेख भेजें Whatsapp: 9076578600 पर, Email: educationmirrors@gmail.com पर।)

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