NEP 2020 वेबिनार: ‘बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान’ को व्यापक अर्थ में देखना है जरूरी’
जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान (डायट) सारनाथ, वाराणसी द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 पर 14 दिवसीय वेबिनार का आयोजन किया जा रहा है। इसके तहत चौथे दिन के वेबिनार का संचालन डायट प्रवक्ता नग़मा परवीन ने किया जो ‘बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञानः सीखने के लिए एक तात्कालिक आवश्यकता और पूर्वशर्त’ विषय पर केंद्रित था। इसमें विशेषज्ञ के रूप में गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद के शिक्षा विभाग में एसोसिएट प्रोफ़ेसर, डॉ. महेश नारायण दीक्षित, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ. प्रशांत स्टालिन शामिल हुए। यह 14 दिवसीय वेबिनार डायट सारनाथ, वाराणसी के प्राचार्य श्री उमेश कुमार शुक्ल के नेतृत्व में आयोजित किया जा रहा है। डायट सारनाथ, वाराणसी में प्रवक्ता प्रवीण श्रीवास्तव ने इस विषय पर अपने प्रजेंटेशन से सत्र की शुरूआत की।
डायट प्रवक्ता प्रवीण श्रीवास्तव ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में ‘बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान’ के बारे में बताते हुए कहा, “बुनियादी साक्षरता का आशय है कि बच्चे छोटे अनुच्छेद को पढ़कर समझ लें और उससे जुड़े सवालों का जवाब दे सकें। संख्या ज्ञान का अर्थ है कि बच्चे अंकों की पहचान कर सकें और जोड़-घटाव की बुनियादी संक्रियाओं को कर सकें। शिक्षा नीति के आँकड़ों के अनुसार वर्तमान में 5 करोड़ के आसपास बच्चे ऐसे हैं जो बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान हासिल नहीं कर पा रहे हैं, ऐसी स्थिति में बच्चों के ड्रॉप आउट होने का ख़तरा लगातार बना रहता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-20202 में ‘बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान’
इस स्थिति को बेहतर करने में स्कूल पूर्व होने वाली तैयारी बेहद महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही पारंपरिक तरीके से पढ़ाने और रटाने वाली पद्धति के कारण भी बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान में बच्चों को सीखने में कठिनाई हो रही है। छात्र-शिक्षक अनुपात का विपरीत होना भी सीखने में बच्चों के पिछड़ने के लिए जिम्मेदार कारणों में से एक है। बच्चों के घर की भाषा और स्कूल में मानक भाषा के बीच तालमेल के अभाव के कारण भी बच्चों को सीखने में समस्या होती है। इस संदर्भ में एक राष्ट्रीय अभियान चलाने की बात कही गई है जिसके तहत 2025 तक बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान के लक्ष्य को हासिल करने के लिए काम किया जा रहा है। इस संदर्भ में मिशन प्रेरणा के प्रेरणा लक्ष्यों का निर्धारण भी किया गया है।”
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डायट प्रवक्ता प्रवीण श्रीवास्तव ने कहा कि छात्र-शिक्षक अनुपात के अनुसार शिक्षकों की भर्ती करने, बच्चों के बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान के ऊपर विशेष ध्यान देने, छात्र-छात्राओं को सीखने के लिए प्रोत्साहित करने वाले बिंदु को भी रेखांकित किया गयाहै। बुनियादी साक्षरता के लिए स्कूल रेडिनेस मॉड्यूल बनाने और उसे लागू करने की बात भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में कही गई है। तीन महीने के इस मॉड्यूल में अक्षर, ध्वनि, शब्द, रंग, आकार, संख्या इत्यादि को ध्यान में रखकर तैयार किया जायेगा। इसके क्रियान्वयन में अभिभावकों का भी सहयोग लिया जायेगा। दीक्षा पोर्टल पर बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान से संबंधित गुणवत्तापूर्ण सामग्री विविध भाषाओं में अपलोड की जायेगी। पियर लर्निंग या ट्युटरिंग को बढ़ावा देने की बात को भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में प्रमुखता के साथ शामिल किया गया है। साक्षरता के अभियान को आगे बढ़ाने में समुदाय की भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण है। पोषण का पहलू बच्चों को ध्यान में रखते हुए बेहद महत्वपूर्ण है इसमें दोपहर के भोजन के साथ-साथ सुबह में नाश्ता देने की सुविधा का उल्लेख किया गया है। प्रत्येक बच्चे का हेल्थ कार्ड बनाने और स्वास्थ्य की जाँच करने की बात कही गई है।
शिक्षा नीति के लक्ष्यों को हासिल करने में शिक्षकों की भूमिका है महत्वपूर्ण
गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद के शिक्षा विभाग में एसोसिएट प्रोफ़ेसर, डॉ. महेश नारायण दीक्षित ने प्रारंभिक वक्तव्य की चर्चा को आगे बढ़ाते हुए बताया कि अगर पूर्ववर्ती नीतियों के साथ तुलना करते हुए वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को देखें तो इसमें टेक्नोलॉजी वाले पहलू को छोड़कर बहुत कुछ नया नहीं है। 1937 में वर्धा में शिक्षा नीति पर चर्चा हो रही थी तो महात्मा गाँधी ने एक सुंदर शिक्षा नीति प्रस्तुत की थी, जिसमें साक्षरता नहीं की बजाय शिक्षा को फोकस किया गया था। हम 199 देशों में 127वें – 128वें स्थान पर हैं। 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस के मौके पर प्रस्तुत रिपोर्ट को पढ़ते हुए प्रश्न उठता है कि पिछले 72 सालों में हम बुनियादी साक्षरता के लक्ष्य को भी हासिल नहीं कर सके। हमने भले ही लक्ष्य को हासिल न किया हो, लेकिन इस दिशा में हमने काफी प्रगति की है और काफी सारे संसाधन जुटाए।
उन्होंने कहा, ” सतत विकास लक्ष्य का चौथा लक्ष्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का है। साक्षरता के मामले में हम 77.7 प्रतिशत तक पहुंचे हैं। महात्मा गाँधी ने कहा था कि निरक्षरता भारत के माथे का कलंक है। सरकार एक माध्यम है जो हमारा नेतृत्व करती है। संसाधन जुटाती है। लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने की जिम्मेदारी हम शिक्षकों की है, ख़ासतौर पर नये नियुक्त होने वाले शिक्षकों से काफी उम्मीदे हैं। बुनियादी साक्षरता को इतना महत्व क्यों दिया जा रहा है? शिक्षा के एक प्रबल साधन के रूप में साक्षरता को देखना सही है, साक्षरता अपने आप में शिक्षा नहीं है। साक्षरता शिक्षा का एक साधन जरूर है। शिक्षा को हर कोई हासिल कर सके, इसलिए साक्षरता पर काम करने की जरूरत है।”
शिक्षा पर होने वाले खर्च को बढ़ाने की जरूरत
डॉ. महेश नारायण दीक्षित ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि कच्ची बुनियाद पर पक्की इमारत नहीं बन सकती, इसलिए बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान को केंद्र में लाने का काम राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में किया गया है। साक्षरता में पहले स्थान पर केरल आया, दूसरे स्थान पर दिल्ली का नाम आया। आंध्र प्रदेश, बिहार और राजस्थान से ठीक ऊपर उत्तर प्रदेश का नाम मिला। नीचे से चौथे स्थान से ऊपर लाने के लिए मिशन प्रेरणा जैसे कार्यक्रमों की जरूरत होगी। इसके लिए शिक्षकों, शिक्षक प्रशिक्षकों, अभिभावकों को जागरूक होना पड़ेगा।
जेंडर, ग्रामीण व शहरी, एससी और एसटी समुदायों के संदर्भ में देखें तो साक्षरता का अंतर स्पष्ट दिखाई देता है। एक शिक्षक होने के नाते, शिक्षक प्रशिक्षक होने के नाते अपने क्षमतावर्धन पर काम करें, पढ़ाने की शैली को रोचक बनाएं क्योंकि पहली कक्षा में 100 फीसदी नामांकन होता है। 12वीं तक पहुंचते-पहुंचते 40 फीसदी बच्चे शिक्षा से बाहर हो जाते हैं। वित्तीय कारणों से भी बच्चे शिक्षा से बाहर होते हैं। दीक्षा पोर्टल का इस्तेमाल शिक्षक अपनी क्षमता संवर्धन के लिए करें इस बात को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 रेखांकित करती है। वर्तमान में जीडीपी का 4.43 प्रतिशत खर्च किया जा रहा है। केवल 1.5 प्रतिशत बढ़ाकर 40 फीसदी बच्चों की पढ़ाई को सुनिश्चित कैसे किया जा सकेगा, यह प्रश्न भी विचार करने योग्य है। प्रत्येक बच्चे पर वार्षिक खर्च का निर्धारण करें और अमरीका जैसे देशों का उदाहरण सामने रखें।”
साक्षरता को विस्तृत अर्थों में देखने की जरूरत
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ. प्रशांत स्टालिन ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर होने वाले वेबिनार में अपने विचार रखते हुए कहा, “साक्षरता को केवल पढ़ना-लिखना नहीं समझना चाहिए। साक्षरता को विस्तृत अर्थों में देखने की जरूरत है, इसमें अपने विचारों को अभिव्यक्त करना पाना, अपने अधिकारों-कर्तव्यों को समझ सकना एवं शोषण के खिलाफ आवाज़ उठा पाना भी शामिल है।
स्कूली शिक्षा के ख़ास संदर्भ में बच्चों की साक्षरता को अगर देखें तो बच्चे विविध तरह की अधिगम सामग्री से रूबरू होते हैं उनको समझ सकें, इस अर्थ में साक्षरता को देखा जाता है। लिट्रेसी एक प्रकार से संचार का कौशल है। हम बातचीत कैसे करते हैं? किस तरीके से अपने विचारों को रखते हैं ये बातें भी इसके अर्थ में आती हैं। इसके साथ ही साथ संख्या ज्ञान की अत्यंत आवश्यकता है। बच्चा उसका इस्तेमाल करके अपने परिवेश की व्यावहारिक समस्याओं को समझना और उसका समाधान करना सीखता है। इस संदर्भ में साक्षरता और संख्या ज्ञान दोनों आपस में जुड़े हुए हैं। वर्तमान संदर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को देखते हुए इस बात पर भी चिंतन करें कि क्रियान्वयन की क्या परेशानियां और कारण हैं जिनका समाधान इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी है।
डायट सारनाथ, वाराणसी के प्रवक्ता श्री प्रवीण श्रीवास्तव ने अतिथि वक्ताओं गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद के शिक्षा विभाग में एसोसिएट प्रोफ़ेसर, डॉ. महेश नारायण दीक्षित और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ. प्रशांत स्टालिन का धन्यवाद ज्ञापित किया। लाइव में शामिल होने वाले सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद करते हुए चौथे दिन के वेबिनार का समापन किया।
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