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कोई भी विचार कभी पुराना नहीं पड़ताः प्रो. कृष्ण कुमार

education_mirror-imageप्रोफ़ेसर कृष्ण कुमार बुनियादी शिक्षा विषय पर अपने एक व्याख्यान में विचारों पर बड़ी ग़ौर करने वाली बात कहते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिए इन बातों का ध्यान रखना काफी मददगार हो सकता है। क्योंकि हमें ऐसी प्रतिक्रिया बार-बार सुनने को मिलती है, जिसका जिक्र कृष्ण कुमार करते हैं, “अरे, यह सब तो हमें पहले से ही पता है, इसमें नया क्या है?” और यही बात खतरनाक है।”

दर्शनशास्त्र का जगत

वे कहते हैं, “दर्शनशास्त्र के जगत में, कोई भी विचार पुराना नहीं पड़ता। न ही वह उसी स्थिति में बना रहता है जहाँ शुरू में था – इन दोनों बातों को दिमाग में रखना बहुत जरूरी है। भले ही कोई कोई 2500 वर्ष पुराना विचार हो, भले ही गौतम बुद्ध का कोई विचार हो, या कोई ऐसा विचार जो समाज में अभी-अभी आया हो – वह विचार कभी पुराना नहीं पड़ता, भले ही एक नहीं सैकड़ों पीढ़ियां उसे आजमा चुकी हों। और भले ही उन्होंने यह राय दी हो कि हम आजमाकर देख चुके और इसमें कुछ सार नहीं है। इसके बाद भी, उस विचार में एक चमक बनी रहती है।”

इसके आगे की पंक्तियां हैं, “दूसरी तरफ, कोई भी विचार वह नहीं रह जाता जो वह पहली बार प्रस्तावित किए जाते वक्त था, क्योंकि बीच के समय में वह विचार अन्य कई विचारों में जीता है। किसी विचार की, उसकी उत्पत्ति से आगे जाने की क्षमता का अनुभव उस विचार को निरन्तर पूरे परिदृश्य में फिर से स्थापित कर देता है।”

(प्रोफेसर कृष्ण कुमार एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक रह चुके हैं। वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा विभाग में पढ़ा रहे हैं। एनसीएफ-2005 के बनने का कार्य उनके नेतृत्व में संपन्न हुआ।)

3 Comments on कोई भी विचार कभी पुराना नहीं पड़ताः प्रो. कृष्ण कुमार

  1. Anonymous // March 16, 2018 at 11:05 am //

    Very nice
    Any suggestions in teacher education quality

  2. बहुत-बहुत शुक्रिया ऋषिकेश। प्रो. कृष्ण कुमार का शिक्षा के क्षेत्र में काफी बड़ा योगदान है। हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में बराबर दख़ल रखने के साथ-साथ वे हिंदी में शानदार लिखते हैं। उनको सुनते हुए लगता कि अगर इनसे मिलना (और उनकी किताबों को पढ़ना) नहीं होता तो शायद शिक्षा के क्षेत्र में आना नहीं होता। ख़ासकर भाषा के क्षेत्र में मेरी रुचि उनकी एक किताब बच्चों की भाषा और अध्यापक पढ़ते हुए ही निर्मित हुई।

    उनकी एक काफी चर्चित किताब है ‘चूड़ी बाज़ार में लड़की’> इस किताब को पढ़ते हुए लगा कि हमारे समाज में लड़कियों की ज़िंदगी को इतनी बारीकी से भी देखना-समझना मुमकिन है। उन्होंने कई अन्य किताबें भी लिखी हैं जो पढ़ने लायक हैं। इंटरनेट पर उनके साक्षात्कार मौजूद हैं, जो सुने जा सकते हैं। इससे उनकी यात्रा को समझने में काफी मदद मिल सकती है।

    एक बार उनसे दिल्ली विश्वविद्यालय में मिलना हुआ था। मैंने शिक्षा के क्षेत्र में अपने लिखने वाली रुचि के बारे में बताया। तो उनकी सलाह थी, “लगातार पढ़ते रहो। जिन मुद्दों पर नहीं लिखा जा रहा है। उन पर लिखते चलो।”

  3. ऋषिकेश // September 12, 2016 at 8:52 am //

    ‘एज्युकेशन मिरर’ के सहारे मुझे शिक्षा जगत की विविध जानकरियाँ मील रही हैं , साथ ही प्रो. कृष्ण कुमार को भी इसी मंच के माध्यम से जान रहा हूँ , कई बार तो ऐसा लगता है की मैं नए सिरे से पढ़ाई तो नहीं शुरू कर दी !!!!!!!!

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