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हैप्पी टीचर्स डेः जीवन की पाठशाला के शिक्षकों का शुक्रिया

भारत में हर साल पाँच सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है. लेकिन इस बार के शिक्षक दिवस को लेकर देश पहले से काफ़ी उत्साहित दिखाई दे रहा था. लोगों के बीच इस दिन की सार्थकता को लेकर बहस और विमर्श हो रहा था.

अच्छा लग रहा कि प्रधानमंत्री के संवोधन के कारण लोगों का ध्यान शिक्षक दिवस की तरफ फिर से आकर्षित हुआ है, पता नहीं राधाकृष्णनन का जिक्र उस संवाद में आया कि नहीं, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि इस बहाने शिक्षकों का ध्यान परंपरागत चीज़ों से हटकर अन्य चीज़ों की तरफ़ भी गया.

शिक्षक के सपनों का जिक्र है जरूरी

पूरे देश में लोग टेलीविजन और रेडियो खोज रहे थे ताकि पड़ोस के सरकारी स्कूल में कार्यक्रम का लाइव प्रसारण किया जा सके. ऐसी आपाधापी और व्यस्तता देखकर लगा कि देर से ही शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई देते हैं.

यह दिन शिक्षक और छात्रों के बीच के मैत्रीपूर्ण संबंधों को बदलते दौर में नए सिरे से देखने और समझने का अवसर भी होता है . एक स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक को मिलने वाला वेतन क्या कहता है? एक शिक्षक का अपने बच्चे को लेकर क्या सपना होता है? एक शिक्षक क्या अपने और बाकी बच्चों के बीच अंतर की भावना को महसूस कर पाता है? अगर हां, तो क्या वह बाकी बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारी की अहसास कर पाता है.

एक शिक्षक व्यवस्थागत और व्यक्तिगत अपेक्षाओं के बोझ तले ख़ुद को दबा हुआ महसूस करता है या फिर इनके बीच से कोई रास्ता निकालने की कोशिश करता है. एक चाय बेचने वाला लड़का जब शिक्षक से कहता है कि जितना आपक वेतन मिलता है, उतना तो मैं चाय बेचकर कुछ दिन में कमा लेते हूं तो क्या इस जवाब से शिक्षकों के मनोबल पर असर नहीं पड़ता.

स्कूलों की वास्तविक स्थिति

अपने देश में छात्र-शिक्षक अनुपात की स्थिति देखकर लगता है कि ऐसे स्कूलों के बच्चों का भविष्य तो संभावनाओं और आशंकाओं के बीच झूल रहा है. लेकिन इसके बीच उन शिक्षकों का हौसला भी काबिल-ए-तारीफ़ है जो ग्रामीण क्षेत्रों और ऐसी जगहों पर काम कर रहे हैं जहां कोई शिक्षक आना नहीं चाहता, आता है तो टिकना नहीं चाहता.

ऐसे ही एक शिक्षक से कुछ साल पहले मिला था तो उनका कहना था कि आप हमारे स्कूल में पढ़ाने के लिए आ जाओ तो बात बन जाए. उनको लगता कि मैं भी शिक्षक हूं, जिसकी उस क्षेत्र में नई नियुक्त हुई है. उनका उत्साह और हौसला देखकर काफ़ी अच्छा लगा कि इस तरह की उम्मीद की तमाम किरणें मौजूद हैं और अंधेरे में तारों जितना ही सही रौशनी तो कर रही हैं. इसके साथ-साथ तमाम निजी स्कूलों की भी हालत यों है कि पहली से लेकर 11वीं तक तो बच्चे की किसी को फिक्र ही नहीं होती.

उम्मीद और निराशा का मिश्रित भाव

बच्चा स्कूल जा रहा है और पास हो रहा है. 12वीं के परिणाम के बाद ही बच्चे का वास्तविक भविष्य तय होगा. यह विचार देश की राजधानी नई दिल्ली में पढ़ाने वाले एक शिक्षक के हैं. यहां तो तमाम नामी-गिरामी स्कूल भी हैं जिनकी फ़ीस लाखों में हैं. कहा जा सकता है कि अपने देश के अलग-अलग राज्यों के विभिन्न हिस्सों के सारे स्कूलों की हालत एक सी नहीं है. सबकी अपनी-अपनी ख़ासियत, दिक्कतें और जरूरतें हैं. देश के नागरिकों की तरह उनकी भी तमाम श्रेणियां हमारे देश में मौजूद हैं. इनके तुलनात्मक अध्ययन का काम हमारे देश में हो रहा है.

इस अध्ययन से क्या हासिल होगा कहना मुश्किल है, लेकिन अभी तो सिर्फ़ इतना कहा जा सकता है कि प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में तमाम कोशिशों के बावजूद व्यापक सुधार और स्कूलों के सुचारु संचालन का कोई कार्यक्रम हमारे देश में नहीं है. शिक्षा के विभिन्न घटकों पर काम का सिलसिला जारी हैं..जिसका इलाज हो रहा है, वह भी इसे समझने में नाकाम है. शिक्षकों का हाल भी किसी हैरान-परेशान अभिभावक जैसा है जिसके बच्चे का डॉक्टर इलाज कर रहे हैं…लेकिन उसे नई दवाओं के संबंध में बहुत ज़्यादा जानकारी नहीं है. वह उम्मीद और निराशा के मिश्रित भाव से देश के अबूझे भविष्य को निरंतर निहार रहा है.

आखिर में

सभी शिक्षकों और छात्रों को बीते शिक्षक दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं और बधाइयां. शिक्षक और छात्रों के जिक्र के बिना इस दिन की कोई सार्थकता नहीं खोजी जा सकती है. शिक्षक और छात्र दोनों का यश पारस्परिक है. एक के सहयोग के अभाव में दूसरे का काम तो चल सकता है, लेकिन रफ़्तार थोड़ी धीमी पड़ जाती है. जीवन एक शिक्षक है. इस दर्शन का भी चलन है.

शिक्षकों का दायरा भी टूटा है कि स्कूल की चारदीवारी के बाहर भी जिन लोगों ने सीखने की प्रक्रिया में भागीदारी निभाई है और सार्थक सहयोग दिया है, उनका योगदान शिक्षक सरीखा ही है. अध्ययन के बाद प्रोफ़ेशन में भी सीखने-सिखाने के इस सिलसिले को सतत विस्तार देने वाले लोगों का शुक्रिया कहना ही चाहिए. तो दायरे के विस्तार के साथ लगता है कि सारा जीवन सीखने-सीखे हुए को सुधारने-सही तरीके से सीखने में बीत जाता है…रीत जाता है….और समझ में आता है कि सीखने के लिए जो लगन और जिज्ञास का भाव मन में काफ़ी गहरे पैठा हुआ था…वही तो असली शिक्षक थी. जिसने सीखने की भूख को निरंतर बढ़ाने का काम किया.

जीवन के ठहराव में जिज्ञासा के कंकड़ों को गहरे पैठने का मौका दिया और रास्तों के महत्व से रूबरू करवाया. इसके बिना तो मंज़िलों की तलाश तक….जिज्ञासा का ईधन बचा होने तक ही सफ़र जारी रहता. लेकिन अभी तो अनंत संभावनाओं के द्वार खुले हैं. अज्ञानताओं की समझ बाकी है और यह अहसास भी अभी बहुत कुछ जानने, समझने और सीखने को बाकी है. अभी भी सीखने का सफ़र जारी है. सिखाने वाले के प्रति सम्मान और विनम्रता का भाव मन में है. तो दौड़ते हैं जिज्ञासा के पथ पर जीवन शिक्षक के साथ पाठशाल के शिक्षकों को हैप्पी टीचर्स डे कहते हुए. मन को छूने वाला कोई गीत गुनगुनाते हुए…दौड़ चलते हैं जीवन की पाठशाला के इस छोर से उस छोर तक…..

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