पहली-दूसरी क्लास को एक साथ बैठाने के 10 बड़े नुकसान
पहली क्लास में पढ़ने वाले बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं जो पहली बार स्कूल आ रहे होते हैं। ऐसे में स्कूल को लेकर उनके बारे में तरह-तरह का धारणाएं और विचार होते हैं। जिसके साथ वे समायोजन की प्रक्रिया से गुजर रहे होते हैं। बड़े समूह में बैठना और शिक्षक के निर्देशों के अनुसार व्यवहार करने वाली परिस्थिति उनके लिए बिल्कुल अज़नबीं होती है। ऐसे में पहली क्लास के बच्चों को दूसरी क्लास के बच्चों के साथ बैठाना तमाम तरह की समस्याओं की बुनियाद तैयार करता है। जिससे बचने की जरूरत है। ताकि पहली क्लास के बच्चों का लर्निंग स्पेश बचा रहे। उनके साथ अच्छे से काम हो पाए।
दूसरी क्लास के बच्चे स्कूल के साथ ज्यादा समय बिता चुके हैं, जबकि पहली क्लास के बच्चों के लिए यह पहला अवसर है। ऐसे में जरूरी है कि पहली क्लास के पहले अनुभव को संपन्न बनने की राह में आने वाली बाधाओं को दूर करने का प्रयास शिक्षकों की तरफ से हो।
1. सबसे ख़ास बात है कि पहली-दूसरी कक्षाओं के एक साथ होने पर शिक्षक दोनों कक्षाओं के सभी बच्चों पर बराबर ध्यान नहीं दे पाते। क्योंकि आमतौर पर क्लास में बच्चों की संख्या ज्यादा होती है। इसके साथ ही शिक्षक को जब अपने काम का अच्छा परिणाम नहीं मिलता तो अपने प्रयासों पर ही संदेह करने लगते हैं। जबकि किसी क्लास के बच्चों के अधिगम को प्रभावित करने वाले एक बड़े फैक्टर पहली-दूसरी क्लास के एक साथ बैठाने के कारण होने वाले नुकसान की तरफ उनका ध्यान ही नहीं जाता।
2. पहली कक्षा के बच्चों की आवाज़ दब जाती है। क्योंकि दूसरी कक्षा के बच्चे जवाब दे रहे होते हैं। वे जो जानते हैं उसे बताने की ख़ुशी महसूस करना चाहते हैं। इसलिए शिक्षक की जिम्मेदारी बनती है कि दूसरी क्लास को पहली के साथ न पढ़ाएं।
3. पहली क्लास के सभी बच्चों को सीखने का अवसर नहीं मिल पाता क्योंकि शिक्षक आमतौर उन्हीं बच्चों के ऊपर ध्यान देते हैं जो जवाब दे रहे होते हैं। ऐसे में वे बच्चे पीछे छूट जाते हैं, जिनको सीखने में किसी तरह की समस्या पेश आ रही है।
4. दूसरी क्लास के बच्चों को बोरियत होती है, क्योंकि पहली क्लास में पढ़ाई जाने वाली बहुत सारी चीज़ों को वे पहले से ही जानते हैं।
5. किसी सवाल का जवाब देने के दौरान जब दूसरी क्लास के बच्चे तेज़ी से बोल रहे होते हैं, तो पहली क्लास के बच्चों का आत्मविश्वास टूटता है। उनको लगता है कि हमको तो कुछ नहीं आता। दूसरी क्लास के बच्चे ही सवालों के जवाब दे सकते हैं। हमसे यह नहीं हो पाएगा।
6. पहली क्लास के बच्चे स्कूल में पहली बार आ रहे होते हैं। वे क्लास में बैठना। हाथ में किताबों को कैसे पकड़ना है, पेन-पेंसिल कैसे पकड़नी है, किस तरफ से किस तरफ को पढ़ना है? शिक्षक के साथ कैसे पेश आना है? बाकी बच्चों की तरफ से होने वाले व्यवहार का क्या जवाब देना है, ऐसी सैकड़ों बातें सीख रहे होते हैं? इसलिए उनको ज्यादा केयर, सपोर्ट और मोटीवेशन की जरूरत होती है। दूसरी क्लास की मौजूदगी के कारण शिक्षक ऐसी बारीक बातों की तरफ ध्यान नहीं दे पाते हैं। ऐसे में पहली क्लास को अलग से पढ़ाना ही सबसे अच्छा विकल्प होगा।
7. पहली-दूसरी क्लास के बच्चों को एक साथ बैठाने की परंपरा का अनुशरण करना। पहली-दूसरी क्लास के बच्चों के सीखने की क्षमता और अपेक्षाओं की सटीक पहचान के अभाव वाली स्थिति की तरफ संकेत करता है। इससे लगता है कि पहली क्लास में बच्चा तो बस इतना सीख ले, बहुत है। इससे दूसरी क्लास के बच्चों का स्तर वह नहीं हो पाता, जिसकी अपेक्षा की जाती है। इसी कारण तीसरी-चौथी और पांचवी के बहुत से बच्चे पढ़ने-लिखने के बहुत से मूलभूत कौशलों के साथ सहज नहीं होते। अंग्रेजी व गणित जैसे विषयों में भी उनको समस्या का सामना करना पड़ता है।
8. पहली-दूसरी क्लास के एक साथ बैठने से पहली के बच्चों का स्वाभाविक विकास बाधित होता है। क्योंकि उनके साथ बैठे दूसरी क्लास के बच्चे स्कूल के परिवेश और बाकी दूसरी चीज़ों से बहुत अच्छी तरह परिचित होते हैं। बड़े बच्चे छोटे बच्चों को मारते-डांटते भी हैं, इसका असर एक बच्चे के स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया पर पड़ता है। ऐसे में जरूरी है कि दोनों कक्षाओं को हम अलग-अलग करके देख पाएं।
9. अगर दोनों कक्षाओं में ज्यादा बच्चों का नामांकन है। मान लीजिए दोनों कक्षाओं का संयुक्त नामांकन 50 या इसके ऊपर है तो क्लास को व्यवस्थित रूप से बैठाना मुश्किल होता जाता है। ऐसे में एक शिक्षक को पता नहीं चलता कि कौन सा बच्चा सीख रहा है, कौन सा बच्चा नहीं सीख रहा है, क्योंकि सामूहिक तौर पर बच्चे तो बाकी बच्चों का अनुकरण करके या सुनकर जवाब दे देते हैं। लेकिन व्यक्तिगत तौर पर वे जवाबों के लिए तैयार नहीं होते। ऐसे में उनका आत्मविश्वास कमजोर होता है जब ख़ुद से पढ़ने-लिखने की बात होती है।
10. एक सबसे जरूरी बात जिन स्कूलों में पहली-दूसरी कक्षाओं को एक साथ बैठाया जाता है, वहां उनके लिए शिक्षक को एक ही कालांश मिलते हैं। ऐसे में सभी शिक्षक अपने-अपने विषयों के ऊपर विशेष ध्यान नहीं दे पाते। ऐसे में शिक्षकों का टाइम ऑन टास्क यानि किसी क्लास को पढ़ाने के लिए दिया गया वास्तविक समय काफी कम हो जाता है। इस पहलू की तरफ शिक्षक साथियों का ध्यान जाना चाहिए क्योंकि बच्चों को पढ़ना-लिखना सिखाने के साथ-साथ अन्य विषयों पर जरूरी समझ बनाने के लिए पर्याप्त समय देना बहुत जरूरी है। दोनों कक्षाओं को 45 मिनट के कालांश में 15-20 मिनट का समय दोनों कक्षाओं को देकर क्या सिखाया जा सकता है? इस सवाल का जवाब यही है कि कुछ बच्चे जो तेज़ी से चीज़ों को पकड़ लेते हैं। सीख जाते हैं। वे तो आगे बढ़ जाएंगे। मगर बाकी बच्चों के सीखने में विशेष प्रगति नहीं दिखाई देगी।
आख़िर में पहली-दूसरी क्लास को एक साथ बैठाने से दोनों कक्षाओं के बच्चों का अधिगम प्रभावित होता है। ऐसे में बच्चों का मिनिमम लर्निंग लेवल (न्यून्तम अधिगम स्तर) भी हासिल नहीं हो पाता। अधिगम सीखने वाले स्तर तक बच्चों को ले जाना तो बहुत दूर की बात है। ऐसे में जरूरी है कि दोनों कक्षाओं के लिए अलग-अलग कालांश हों। ताकि दोनों कक्षाओं को अलग से पढ़ाया जा सके। एक क्लास को पढ़ाते समय दूसरे क्लास को कोई काम करने के लिए दिया जा सके। उस समय का उपयोग दूसरी क्लास को पढ़ाने के लिए किया जा सके। बहुत से स्कूलों में पढ़ना-लिखना सीखने की स्थिति कमज़ोर होने का एक प्रमुख कारण छोटी कक्षाओं पर ध्यान न देना और पहली-दूसरी क्लास को एक साथ बैठाना है। मगर इस तरफ हमारा ध्यान नहीं जाता। क्योंकि हम आठवीं कक्षा में बोर्ड परीक्षा की चिंता कर रहे होते हैं या फिर दसवीं-बारहवीं की बोर्ड परीक्षाओं पर फोकस कर रहे होते हैं।
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