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शिक्षा विमर्शः “बेहतर संवाद का ही दूसरा नाम है ‘कक्षा शिक्षण’

आईआईएमसी से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद जितेंद्र महला ने गाँवों में स्कूलों के साथ काम करने का निर्णय किया। गांधी फेलोशिप में दो साल प्रधानाध्यापकों को नेतृत्व विकास का प्रशिक्षण देने के बाद वर्तमान में बतौर शिक्षक प्रशिक्षक कार्य कर रहे हैं। शिक्षा से जुड़े मुद्दों में बच्चों का सीखना कैसे सुनिश्चित हो, शिक्षकों की स्कूलों में नियमित उपस्थिति हो, वे अपने भविष्य के लिए बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ न करें, ऐसे मुद्दे पर वे निरंतर लिखते रहे हैं।

बच्चे, पढ़ना सीखना, बच्चे का शब्द भण्डार कैसे बनता हैएक शिक्षक के सामने कक्षा से जुड़ें कई बुनियादी सवाल होते हैं। जैसे मेरी कक्षा बेहतर कैसे हो ? कक्षा में सीखने-सिखाने का अच्छा माहौल कैसे बने ? कक्षा रूचिकर कैसे हो ? और कक्षा प्रभावी कैसे हो ?

कक्षा से जुड़ें इन सभी सवालों के जवाब में एक बहुत बुनियादी उपाय नजर आता है, वो है, कक्षा में बेहतर संवाद। कक्षा में शिक्षक और बच्चों के बीच आपसी बातचीत का स्तर जितना अच्छा होगा, कक्षा का स्तर भी उतना ही बेहतर होगा। दूसरे अर्थों में हम कह सकते हैं कि कक्षा शिक्षण (क्लासरूम टीचिंग) बेहतर संवाद का ही दूसरा नाम है।

बेहतर संवाद कैसे हो?

अब सवाल उठता है कि आखिर कक्षा में शिक्षक और बच्चों के बीच बेहतर संवाद का क्या मतलब है ? कक्षा में बच्चों और शिक्षक के मध्य संवाद या बच्चों के बीच आपसी संवाद या किसी के भी मध्य बेहतर संवाद का मतलब होता है कि संवाद में भाग लेने वाले सभी लोगों और पक्षों को अपनी बात कहने का अवसर मिलें। सभी अपनी बात बगैर किसी डर के कह सकें, क्योंकि संवाद में पद, लिंग, जाति, धर्म या और किसी भी वजह से डर होने पर संवाद का स्तर बहुत ही निम्न कोटी का हो जाता है।

सामने वाला अपनी बात कहना चाहता है मगर किसी ना किसी डर की वजह से वह अपनी बात नहीं कह पाता। इस तरह को कोई भी अवरोध संवाद को एकतरफा और बहुत ही अलोकतांत्रिक बना देता है। बोझिल और नीरस बना देता है। संवाद में ध्यान रखना होता है कि वक्ता हमेशा सरल भाषा का इस्तेमाल करें। सरल भाषा मतलब आम बोलचाल की भाषा जिसे कोई भी आसानी से समझ सकें। वक्ता अपनी बात कहते समय सहज और आत्मविश्वास के साथ रहें।

आपस में बात कर रहें दो लोगों का एक-दूसरे के प्रति भरपूर सम्मान भी होना चाहिए, अगर बात कर रहें दो लोग एक-दूसरे का सम्मान नहीं करेंगे तो बातचीत या संवाद कभी बेहतर हो ही नहीं सकता। सम्मान भी इस स्तर का की अगर सामने वाला कोई ऐसी बात कह रहा है, जो पहले वाले को पसंद नहीं है फिर भी पहले वाला सामने वाले को सुन सके। पसंद ना होने पर भी सुनने की क्षमता होना। घनघोर असहमती होने पर भी सुनने का साहस रखना और बाद में अपनी बात सलीके से रखना और असहमती पर विरोध करना। ताकि संवाद के सिलसिले को आगे बढ़ाया जा सके।

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