परीक्षाओं में कोर्स की किताब पढ़ें या कहानियां?
निरंतर पढ़ना पठन कौशल के साथ-साथ पढ़ने की आदत का विकास करने में मदद करता है। अगर यह काम बच्चे रुचि के साथ करें तो पढ़ने की आदत बच्चे के स्वभाव का एक स्थाई हिस्सा बन जाती है।
वे कहते हैं, “परीक्षाओं के टाइम तो बच्चे का हर सेकेंड कीमती है। ऐसे में वे कहानी की किताबें कैसे पढ़ सकते हैं? इसीलिए हमने अभी लायब्रेरी को बंद कर रखा है। परीक्षाओं के बाद इसे फिर से शुरू करेंगे।”
प्रतिस्पर्धी माहौल में शिक्षकों की यह बात सच प्रतीत होती है। मगर किताबों के साथ बच्चों के रिश्ते को स्विच ऑन, स्विच ऑफ वाले मोड की बजाय बच्चों के चुनाव की स्वतंत्रता के ऊपर छोड़ देना चाहिए।
इससे बच्चों के मन में किताबों को लेकर कोई दुविधा नहीं होगी कि कोर्स की किताबें पुस्तकालय की अन्य किताबों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, जबकि कहानियों की किताबें पढ़ने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि परीक्षाओं के सवाल तो कहानी की किताबों से नहीं आते।
किताबों के साथ बच्चों के रिश्ते को प्रगाढ़ करने के लिए हिंदी वाले पर्चे में किसी मनपसंद किताब के बारे में लिखने वाला सवाल बच्चों को दिया जा सकता है। इससे थोड़ा ही सही, मगर बच्चों के बीच यह संदेश जायेगा कि लायब्रेरी की किताबें पढ़ना भी जरूरी है। क्योंकि उससे जुड़े सवाल परीक्षाओं में आते हैं और उसके नंबर भी मिलते हैं।
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