शिक्षा के ‘व्यवसायीकरण’ और ‘मुनाफाखोरी’ पर सख्त सुप्रीम कोर्ट
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने ‘मार्डन डेंटल कॉलेज एण्ड रिसर्च सेंटर बनाम मध्य प्रदेश सरकार’ मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य सरकार को फीस निर्धारित करने, कमजोर तबकों के लिए सीटें निर्धारित करने और प्रवेश की योग्यता तय करने का अधिकार है।
इस फ़ैसले का एक हिस्सा है, “निजी शिक्षण संस्थाओं द्वारा दायर अपील में संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (g) का हवाला देते हुए कहा गया कि उन्हें राज्य सरकार की तरफ से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती, इसलिए राज्य सरकार को फीस निर्धारित करने का अधिकार नहीं है। मगर इस मसले पर सरकार की शक्ति केवल निगरानी तक सीमित है….ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा तय की गई फीस ‘मुनाफाखोरी’ की सीमा तक न बढ़ जाय और इसका परिणाम शिक्षा के ‘व्यवसायीकरण’ के रूप में सामने न आये।”
विवेकपूर्ण नियंत्रण की जरूरत
निजी शिक्षण संस्थाओं को मनमानी करने की छूट नहीं दी जानी चाहिए, इस फैसले में यह बात स्पष्ट रूप में उभरकर सामने आती है। सुप्रीम कोर्ट ने बीमा, बिजली और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों की भांति इस क्षेत्र में भी निगरानी करने वाली संस्था बनाने की आवश्यकता की तऱफ ध्यान दिलाया।
स्वायत्तता का सवाल
इस फ़ैसले में निजी शिक्षण संस्थाओं की स्वायत्तता वाले सवाल का भी जिक्र आता है। ऐसे शिक्षण संस्थान जो सरकार से किसी तरह की आर्थिक सहायता नहीं लेत, वे इन मामलों में स्वायत्त होते हैंः
- छात्रों को प्रवेश देने का अधिकार
- उपयुक्त फीस निर्धारण का अधिकार
- स्टाफ की नियुक्ति (टीचिंग एण्ड नॉन-टीचिंग) का अधिकार
- किसी कर्मचारी द्वारा अनियमितता करने पर कार्रवाई का अधिकार
इस फैसले में कहा गया कि अल्पसंख्यक संस्थाओं को अपने चुने हुए छात्रों को प्रवेश देने का अधिकार है। ये छात्र अल्पसंख्यक नहीं भी हो सकते हैं। लेकिन यह उसी सीमा तक किया जा सकता है ताकि संस्थान का अल्पसंख्यक वाला दर्जा बना रहे। एक ही तरह के संस्थानों के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा अपनी जगह सही है। हर संस्था अपने फीस निर्धारण को स्वतंत्र है, मगर मुनाफाखोरी रोकने के लिए इसका नियमन किया जा सकता है। यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि छात्रों से कोई कैपिटेशन फीस न ली जाये।
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बनी रहे पेशे की गरिमा
आधुनिक युग में ख़ासतौर पर राज्य द्वारा उदारीकरण की नीति अपनाने के बाद निजी निकायों को शैक्षणिक संस्थान खोलने की अनुमति दी गई है। शिक्षा के ऊपर सरकार के पूर्ण एकाधिकार वाली स्थिति में बदलाव हुआ है, जिसमें निजी संचालकों को फलने-फूलने के अवसर दिये गये हैं। शिक्षा के मसले पर एक बात साफ है कि ग़ैर-सरकारी सहायता प्राप्त भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देंगे और उनके काम-काज में न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप के साथ काम करने की आज़ादी होगी।
हालांकि शिक्षा को अब एक ‘व्यवसाय’ के रूप में देखा जाता है, मगर संविधान के अनुच्छेद 19(1) जी के तहत यह एक मौलिक अधिकार भी है। इसलिए ऐसी पाबंदियों की जरूरत रहेगा ताकि इस पेशे की ‘गरिमा’ बनी रहे।
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