एक शिक्षक ने क्यों कहा, “मेरी जगह आप होते तो आप भी बदल जाते”
अपने स्कूल में काम के माहौल का हवाला देते हुए एक शिक्षिका ने कहा, “अगर आप मेरी जगह होते तो आप भी बदल जाते। हमारे साथी शिक्षक ज्यादातर समय ऑफिस में बैठे रहते हैं। मैं अकेले पढ़ाती हूँ। उनको भी उतना ही वेतन मिलता है, जितना मुझे मिलता है। हम भी इंसान हैं, हमारे ऊपर भी माहौल का तो असर होता ही है। बच्चे सीख रहे हैं। इसलिए पढ़ा रही हूँ ताकि इनके साथ अन्याय न हो।”
मैंने कहा कि हमारा संघर्ष बाकी लोगों की तरह बन जाने वाले माहौल के खिलाफ ही है। ऐसे लोगों से अपनी तुलना क्यों की जाए तो अपने मानक के अनुरूप नहीं हैं। वे जिस शिद्दत से साथ बच्चों से जुड़े अपने अनुभव सुना रहीं थी, उनको सुनते हुए लगा जैसे किसी शिक्षक की डायरी पढ़ रहा हूँ।
‘मुझे मेरी माँ की याद आती है’
एक बच्चा जिसकी माँ नहीं है।उसनें अपनी माँ को कभी नहीं देखा, पर उसे अपनी माँ की याद आती है। उसने अपनी टीचर को बताया. “जब वह बाकी बच्चों की माँ को उनके कपड़े धोता हुआ देखता है तो माँ याद आती है। मेरे कपड़े कौन धोएगा?” यह टीचर उस बच्चे को बहुत मानती हैं। बच्चों से नेह करने वाले ऐसे शिक्षक दुर्लभ है। ऐसे शिक्षक सही मायने में अच्छे शिक्षक हैं जो बच्चों से संवाद करते हैं। उनकी भावनाओं को समझते हैं। बच्चे भी ऐसे शिक्षक के साथ अपने मन में चलने वाली बातों को ज्यों का त्यों कह पाते हैं। क्योंकि उनको पूरा विश्वास होता है कि उनकी बात सुनी जाएगी।
दोस्ती में पाँच रूपए की कीमत क्या है?
उन्होंने एक दूसरे बच्चे की कहानी बताई जो अपने दोस्त के लिए स्कूल से छुट्टी लेकर मेडिकल स्टोर से दवाई लाने जाता है और अपने पाँच रूपए खर्च कर देता है। दवाई खाने वाली बात पर शिक्षक उसे समझाती हैं कि अगर तुम्हारे दोस्त को कुछ हो गया तो जिम्मेदार कौन होगा? बच्चे ने जवाब दिया, “मेडिकल स्टोर वाला।”
जब उन्होंने कहा कि दवाई जिसने लाई है, वही जिम्मेदार होगा। तब उस बच्चे को लगा कि उससे ग़लती हो रही थी। ऐसी स्थिति में उसे शिक्षक या किसी बड़े की मदद लेनी चाहिए। शिक्षिका ने बताया कि उन्होंने सोचा कि बच्चे को दस रुपए दिए जाएं, मगर बार-बार पैसे देने वाली परिस्थिति पैदा होने से उनके लिए परिस्थितियों को संभालना मुश्किल होगा। इसलिए उन्होंने ऐसा करने की बजाय टॉफी इत्यादि देना ज्यादा बेहतर समझा।
हमारी शिक्षा व्यवस्था में ऐसे शिक्षकों की मौजूदगी उम्मीद की ऐसी किरणों की तरह हैं, जिनकी आज के दौर में सबसे ज्यादा जरूरत है। ऐसे शिक्षकों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है ताकि वे अपने अच्छे स्वभाव को आसपास के माहौल के असर में आकर संवेदनहीन होने वाले रास्ते पर न धकेल दें।
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