‘पहले कठपुतली से नजर आते थे अक्षर, अब बात करते हैं’
शिक्षा की प्रक्रिया में सबसे जरूरी चीज़ है कि शिक्षक और छात्रों के बीच संवाद हो। किसी विषय पर विस्तृत चर्चा हो। छात्रों को अपनी बात रखने और सवाल पूछने का अवसर दिया जाए।
- पढ़ना-लिखना सीखना एक जानने की क्रिया है, यानि सीखने वाला सक्रिय भूमिका में होता है। कालांश में उसकी भी भागीदारी होती है।
- शिक्षार्थी सृजनात्मक कर्ता वाली भूमिका में अपनी तरफ से कालांश में पूरा योगदान दें। इस बात का ध्यान रखा जाए।
- साक्षरता केवल अक्षरों, शब्दों, मुहावरों को रटने और दोहराने का मामला नहीं है, जैसा कि आमतौर पर माना जाता है। यह अर्थ निर्माण की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी है। जहाँ पढ़ना और समझना साथ-साथ चलता है।
- इसमें सीखने वाला स्वयं पढ़ने-लिखने की प्रक्रिया और भाषा के गूढ़ महत्व पर ध्यान देता है।
- बिना विचार के भाषा असंभव है, इसलिए सीखने वाले छात्रों के विचारों को महत्व देना जरूरी है।
- भाषा और विचार दोनों उस दुनिया के बिना असंभव है जिससे उनका वास्ता है। इसलिए बातचीत के लिए वास्तविक जीवन के संदर्भों का उदाहरण काम में लेना चाहिए।
- छात्रों द्वारा बोले वाले और इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द, शब्दकोश में दिए गए शब्दों से ज्यादा अर्थवान होते हैं। ऐसे शब्दों के उपयोग से बच्चों का सीखना ज्यादा सहज होगा।
- शिक्षक ध्यान रखें कि शिक्षार्थियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द कर्म हैं क्योंकि वे उनके जीवन के अनुभवों से जुड़े हैं।
- आखिर में एक जरूरी बात कि पढ़ना-लिखना सीखना मनुष्य के लिए एक ऐसा अवसर होना चाहिए ताकि वह जान सके कि शब्द वास्तव में क्या बता रहे हैं।
पाओलो फ्रेरे की किताब ‘प्रौढ़ साक्षरता’ में साक्षरता कार्यक्रम से जुड़े लोगों के अनुभवों का भी जिक्र है। अपना पहला शब्द लिखने और पढ़ने में कामयाब होने वाले किसान ने कहा, “मैं बहुत खुश था, क्योंकि मैंने खोज लिया था कि मैं बोले जाने वाले शब्द बना सकता हूँ।”
‘अक्षर कुछ कहते हैं’
एक अन्य किसान ने कहा, “पहले अक्षर कठपुतलियों की तरह नजर आते थे, आज वे मुझे कुछ कहते नजर आते हैं और मैं उनसे बात कर सकता हूँ।”
उपरोक्त अनुभवों को विभिन्न स्कूलों में लागू किया जा सकता है। जैसे कोई भी विषय जो पढ़ाया जाए, उसके ऊपर छात्रों के साथ चर्चा हो। उनकी बातों को महत्व दिया जाए। जैसे एक बच्ची से बात हो रही थी कि तालाब में क्या चलता है? तो उसने जवाब दिया कि मछली चलती है। जबकि उसके बड़े भाई का जवाब था कि पानी चलता है। जब मैंने उससे कहा कि पानी तो बहता है। तो फिर उसे लगा कि पहली कक्षा में पढ़ने वाली बच्ची की बात ज्यादा सही है। तो बच्चों के साथ काम करने की पहली शर्त तो यही है कि हम उनकी क्षमताओं पर भरोसा करें। वे सीखेंगे और सीख सकते हैं इस बात में गहरा यकीन होना चाहिए।
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