प्रासंगिक सवालः बदलते दौर में कैसे करें पैरेंटिंग?

21वीं सदी में पैरेंटिंग का तरीका भी बदलना चाहिए।
समय बदला, मगर नहीं बदला तो बच्चों की पैरेंटिंग का परंपरागत तरीका। बहुत से परिवारों में अभी भी बच्चों के ऊपर अपनी अपेक्षाओं का बोझ लादने का पुरातन सिलसिला जारी है। इस सिलसिले को रोकने और नए नज़रिए से सोचने की गुजारिश करती है वरिष्ठ पत्रकार और लेखक दयाशंकर मिश्र की यह पोस्ट, जिसकी शुरूआत एक कहानी से होती है।
टॉपर की ‘दोस्ती’
अब वह मेरा दोस्त नहीं है! 21 साल के अयान ने बेहद निराशा से कहा। उसने एकदम कटप्पा शैली में मुझे धोखा दिया। मेरे लिए उसे क्षमा करना संभव नहीं। मैंने पूछा, क्या तुम उसकी गलती बता सकते हो? वह हमेशा क्लास में नंबर तीन पर रहता था, लेकिन इस बार उसने अपना स्टडी प्लान मुझे बताए बिना बदल दिया और मुझे गलत सलाह देते हुए वह हमारे कॉलेज का टॉपर बन गया। अब तक टॉपर मैं था। अयान ने यह सब बातें दिल्ली-एनसीआर के एक ओपन लाइफ डिस्कशन फोरम ‘जीवन संवाद’ में कहीं। यह संवाद जीवन को समझने और युवाओं को तनाव से बचाने की कोशिश का विनम्र हिस्सा है।
मैंने कहा, जब तक तुम टॉपर थे, तो क्या तुम्हारा दोस्त भी तुम्हारे बारे में ऐसा ही सोचता था। नहीं, अयान ने कहा। वह हमेशा से नंबर तीन पर था। वह कहता था कि टॉपर तो तुम ही हो। फिर मैंने पूछा, क्या तुम्हें कभी नहीं लगा कि तुम्हारे दोस्त को टॉप करना चाहिए।।।तो अयान ने कहा, मैंने इस बारे में सोचा ही नहीं। तो सोचना चाहिए।।।लगभग सभी युवाओं ने एक साथ कहा। क्या तुम्हारा दोस्त तुम्हारी कामयाबी का हिस्सा नहीं है, ठीक वैसे जैसे इतने बरसों तक तुम उसकी कामयाबी का हिस्सा थे।
अयान की मुश्किल क्या है?
अयान की परेशानी यह है कि वह दूसरों की कामयाबी का हिस्सा नहीं बनना चाहता। यह उसके अकेले की नहीं। घर-घर की कहानी है। यह एक किस्म का इंफेक्शन है, जो बच्चों के जीवन में सबसे ज्यादा अवसाद पैदा कर रहा है। अपने ही दोस्तों, साथियों से ईर्ष्या। उनके प्रति प्रेम की कमी। इन दिनों हमारी सांसों में ऑक्सीजन के साथ यह घातक होड़ भी घुल रही है।
अयान में अपने खास दोस्त के लिए यह भावना कहां से आई। कैसे आई। यह परिवार और स्कूल से ही आई, क्योंकि बच्चे सबसे ज्यादा इनके साथ होते हैं। उसके लिए हम कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हो गए हैं।
कैसे करें पैरेंटिंग?
माता-पिता के लिए सबसे बड़ी पहेली है, बच्चों के भीतर बढ़ता डर, उदासी और आत्महत्या का खतरा। यह खतरा उन पर लादी गई टनों वजनी अपेक्षा और किसी भी कीमत पर सफलता की शर्त से आया है। इसलिए यह समझना बहुत जरूरी है कि बच्चों के डिप्रेशन में जाने का मूल कारण उनके अपने ही आंगन से उपजा है। अनजाने में। हर बात का हल इससे नहीं होगा कि हमारी परवरिश भी ऐसे ही हुई थी।

अपने बच्चों को स्कूल पहुंचाने जाती एक माँ।
दुनिया बदल रही है। बच्चे कल की तुलना में कहीं स्मार्ट और संवेदनशील हैं। ऐसे में अपनी अधूरी इच्छाओं और अपेक्षाओं का भार बच्चों पर डालकर हम एक खुशहाल परिवार कभी हासिल नहीं कर सकते हैं। कोटा से हर बरस आत्महत्या की खबरें बढ़ती ही जा रही हैं। हम बच्चों को वह बनाने पर तुले हैं, जो खुद नहीं हो पाए। यह ऐसा बेतुका, आत्मघाती प्रयास है। इससे केवल क्रूर समाज की रचना होगी और कुछ नहीं।
पैरेंटिंग का सबसे अच्छा तरीका है। ‘द काइट थैरेपी’ हम पतंग कैसे उड़ाते हैं! कमान अपने हाथ में रखते हैं, लेकिन पतंग को आसमान में उड़ने की आजादी देते हैं। बच्चों को भी ऐसे ही संभालना होगा। बारिश की आशंका से पतंग उतारनी होगी और मौसम अनुकूल होने पर उसे ढील देनी होगी। नियंत्रण लेकिन पूरी आजादी भी। यह थोड़ा मुश्किल है, लेकिन दूसरा कोई आसान रास्ता भी तो नहीं है। बच्चों पर भरोसा कितना हो।
आइंस्टीन की कहानी
इसके लिए अल्बर्ट आइंस्टीन की पहले सुनी कहानी को एक बार फिर याद करने की जरूरत है। आइंस्टीन को स्कूल से बुद्धू, दूसरे बच्चों के लिए हानिकारक कहकर निकाला गया था। लेकिन उनकी मां ने इसे उन पर कभी जाहिर नहीं होने दिया। मां ने उन्हें अपने तरीके से घर पर पढ़ाया और तैयार किया। आइंस्टीन को अपने स्कूल के इस रिमार्क की खबर तब जाकर मिली जब मां के निधन के बाद घर में कुछ दस्तावेज खोज रहे थे। कहानी बताती है कि अपने बच्चों पर भरोसा कितना होना चाहिए।
हम अपने बच्चों के भीतर डर और गैर जरूरी प्रतियोगिता को ठूंस रहे हैं। अपने हिस्से का अनुशासन रखिए, पर उन्हें उनके हिस्से की आजादी भी दीजिए।
बच्चों को प्रोडक्ट मत बनाइए। बच्चे आपसे हैं। आपके लिए नहीं हैं। फैसले लेने में उनके दोस्त बनें। अपने फैसले उन पर न थोपें।
(इस पोस्ट के लेखक दयाशंकर मिश्र ‘ज़ी न्यूज़’ में डिजिटल एडिटर हैं। इससे पूर्व वे एनडीटीवी और दैनिक भास्कर में काम कर चुके हैं। सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर वे निरंतर लिखते रहे हैं। शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर उनका यह आलेख बदलते दौर में पैरेंट्स से बच्चों को नए नज़रिए से देखने की वक़ालत करता है।)
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