रूचि के अनुसार शिक्षण को प्रोत्साहित करती है गिजूभाई बधेका की ‘दिवास्वपन’: अर्चना द्विवेदी
मैं अर्चना द्विवेदी सहायक अध्यापक दरवानीपुर विकास क्षेत्र करंजाकला, उत्तर प्रदेश के जौनपर जिले से हूँ। प्राथमिक शिक्षा विभाग में आये हुए मुझे 2 वर्ष हुए हैं। इन दो वर्षों का अनुभव बहुत ही रोमांचक एवं रोचक रहा है ।विपरीत परिस्थितियों को मात देकर कैसे खुश रहा जा सकता है ये मैंने अपने विद्यालय के विद्यार्थियों से सीखा।
घने कोहरे एवं ठिठुरन वाली ठंड में बिना स्वेटर, पैरों में बिना चप्पल खुशी खुशी विद्यालय पढ़ने को आते हुए।बहुत संभावनाएं है हमारे देश के भविष्य हमारे नौनिहालों में। आज आवश्यकता है तो बस उन्हें प्रोत्साहित करने और सही राह दिखाने की जो एक अध्यापक के अतिरिक्त कोई नही कर सकता। अतः हमारा ये दायित्व और विद्यार्थियों का अधिकार है कि प्रत्येक शिक्षक इनकी प्रतिभा को निखारे और समाज का एक कुशल नागरिक बनने की प्रक्रिया में सतत सहयोग करे।
बतौर शिक्षक मेरा लक्ष्य क्या है?
शिक्षा एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो व्यक्ति को जीवन की हर परिस्थिति के साथ सामंजस्य स्थापित करने की योग्यता प्रदान करती है।औपचारिक शिक्षा तो एक निश्चित समयावधि में समाप्त हो जाती है पर जीवन के अनुभव एवं वातावरण से व्यक्ति हर अवस्था मे सीखता रहता है । एक शिक्षक होने के कारण हमारा ये लक्ष्य होना चाहिए कि हम अपने विद्यार्थियों की अंतर्निहित शक्तियों को पहचाने और उनको विकसित करने की दिशा में प्रयासरत रहें। एक देश और समाज प्रगति तभी कर सकता है जब उसका प्रत्येक नागरिक कुशल और शिक्षित हो।
बग़ैर ‘रट्टा मारे’ भी विद्यार्थी पास हो सकते हैं
गिजूभाई बधेका की ‘दिवास्वप्न’ एक बहुत ही रोचक एवं उपयोगी पुस्तक है। इसमें विद्यार्थियों में शिक्षा के द्वारा मौलिक चिंतन, व्यवहारिक ज्ञान, सृजनात्मकता, रचनात्मकता, कल्पना शक्ति आदि गुणों के विकास को प्रयोगों के माध्यम से दर्शाया गया है।
यह किताब शिक्षा प्रणाली में विद्यमान दोषों एवं घिसी पिटी मानसिकता पर भी ध्यान आकर्षित करती है।
दिवास्वप्न के माध्यम से लेखक यह समझाना चाहते हैं कि कैसे शिक्षक विद्याथियों को उसकी रुचि के हिसाब से क्रियाकलाप करवाकर भी पढ़ा सकते हैं और उबाऊ रटंत पद्धति के बिना भी विद्यार्थी परीक्षा उत्तीर्ण कर सकते हैं।
विद्यार्थियों की रुचि के अनुसार हो पढ़ाई, कहती है दिवास्वपन
खेल विधि,अभिनय एवं वास्तविक अनुभव द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है । अन्य बिंदुओं जैसे स्वच्छ्ता, व्यवस्था,अभिभावकों से वार्तालाप,धर्मशिक्षा से पूर्व सामान्य शिष्टाचार पर भी ध्यान केंद्रित करने की ओर ध्यान आकर्षित किया है ।
एक अन्य महत्वपूर्ण बात पुस्तक में बताई गई है कि विद्यार्थियों की रुचि के अनुसार हो शिक्षा।
आज के परिवेश में जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण है बढ़ती हुई आबादी एवं सीमित पदों के कारण हर विद्यार्थी को औपचारिक शिक्षा समाप्त होने पर नौकरी मिलने संभव नही ।
तो यदि हम अपने विद्यार्थियों की रुचि एवं रुझान प्रारंभिक स्तर से ही समझ ले और उनका विकास करें तो बहुत से व्यक्ति अपना स्वयं का रोजगार स्थापित करके और भी बहुत से बेरोजगार युवकों को रोजगार दे सकते हैं ।
(एजुकेशन मिरर के लिए यह पोस्ट जौनपुर के प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक अर्चना द्विवेदी जी ने लिखी है। उन्होंने ‘दिवास्वपन’ पुस्तक पढ़ने के बाद के अपने अनुभवों को साझा किया है। आप भी अपने विद्यालय के बारे में ऐसी पोस्ट लिख सकते हैं। अपने अनुभव एजुकेशन मिरर के साथ साझा कर सकते हैं। इस पोस्ट और ऐसे प्रयास के बारे में आपकी राय क्या है? जरूर साझा करें।)
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