चर्चाः ‘जूते-मोजे’ में क्यों उलझी है बोर्ड परीक्षा?
हर साल देश के विभिन्न राज्यों में 10वीं और 12वीं में बोर्ड की परीक्षा होती है। मगर जिन बोर्डों की चर्चा सबसे ज्यादा होती है, उसमें बिहार और यूपी बोर्ड की सबसे ज्यादा चर्चा होती है। इसकी सबसे बड़ी वजह है, इन परीक्षाओं में होने वाली नकल।
बिहार के टॉपर्स के फेल होने और फेल छात्रा के टॉप 10 में शामिल होने वाली छात्रा की कहानी बोर्ड परीक्षाओं के इंतज़ाम और छात्रों को होने वाली परेशानी की कहानी कहती है। उत्तर प्रदेश में 6 फरवरी से शुरू हुई बोर्ड परीक्षा में अबतक 10 लाख से ज्यादा छात्रों ने परीक्षा छोड़ दी है। इसकी मुख्य वजह परीक्षा में होने वाली सख़्ती बताई जा रही है। इसी बीच लखनऊ से एक ख़बर आयी थी, जिसमें 10वीं कक्षा के एक छात्र ने बोर्ड परीक्षा के दबाव की वजह से आत्महत्या कर ली थी।
छात्रों पर इतना ज्यादा दबाव क्यों?
इन ख़बरों के मूल जो चिंता सबसे बड़ी है, वह है बोर्ड परीक्षाओं को लेकर छात्र-छात्राओं पर बढ़ते अनर्गल दबाव का। बोर्ड परीक्षा में सुचिता सुनिश्चित हो। लेकिन छात्रों पर बनने वाले अतिरिक्त दबाव को कम करना चाहिए। मगर इसके प्रयास नाकाफी से प्रतीत होते हैं। क्योंकि जो ख़बरें लोगों के बीच में जा रही हैं, वे परीक्षा में सख़्ती और छात्र-छात्राओं पर सख़्ती के प्रयासों के बारे में होते हैं।
छात्रों के लिए अच्छा माहौल उपलब्ध कराने और उनका सहयोग करने की भी पुरजोर कोशिश राज्य सरकारों की तरफ से होनी चाहिए। परीक्षा देने वाले छात्रों पर ऐसे अतिरिक्त शोर से अनर्गल दबाव बनता है, जिसकी जरूरत वास्तव में नहीं है। मगर छात्र-छात्राओं की चिंता को संवेदनशीलता के साथ शेष योजनाओं का हिस्सा नहीं बनाया जाता है, क्योंकि परीक्षा में सारा ध्यान नकल माफियाओं, परीक्षा में नकल रोकने पर लगा हुआ है।
‘बोर्ड परीक्षा में चप्पल पहनकर आएं छात्र’
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष आनंद किशोर ने मैट्रिक परीक्षा के बारे में मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि बिहार बोर्ड की परीक्षाओं का आयोजन 21 फरवरी से 28 फरवरी तक दोनों पालियों में होगी। परीक्षा के लिए जारी दिशा निर्देशों में जूता-मोजा न पहनकर आने की हिदायत दी गई है। उनके चप्पल पहनकर परीक्षा देने के लिए आने हेतु कहा गया है। इसके साथ ही परीक्षा केंद्रों पर तैनात शिक्षकों व अधिकारियों को सामान्य फ़ोन के लिए 1200 रूपये बोर्ड की तरफ से उपलब्ध कराने की बात कही गई है।
इस ख़बर से सार्वजनिक होने के बाद से चर्चा शुरू हो गई है कि बोर्ड परीक्षाओं के नाम पर ऐसे फरमान कितने सही हैं। नकल के आरोप के बहाने सारे छात्रों पर किसी फ़ैसले को थोपना कितना सही है। अभी कुछ दिन पहले लखनऊ में एक छात्र से होने वाली चर्चा में सामने आया कि उसके 10वीं बोर्ड की परीक्षा के दौरान छात्रों के कपड़े उतरवा लिये गये थे और उनको कच्छे बनियान में बोर्ड की परीक्षा देनी पड़ी थी। इस छात्र का कहना था कि ऐसे व्यवहार से छात्रों को बड़ी दिक्कत होती है। वे परीक्षा के दौरान सवालों को हल करने पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते हैं।
बिहार बोर्ड में भी परीक्षा के दौरान नलक रोकने के लिए सीसीटीवी कैमरों के इस्तेमाल और शिक्षकों द्वारा सख़्ती बरतने के प्रयास हो रहे हैं। मगर जितनी चर्चा नकल रोकने को लेकर है, उतनी फिक्र छात्रों को अच्छा माहौल उपलब्ध कराने को लेकर नहीं है। छात्र विद्यालय में चप्पल पहनकर आएं या जूते पहनकर आएं, इसका फ़ैसला करने का हक़ छात्रों का होना चाहिए। राज्य सरकारों को ऐसे फरमान और फ़ैसलों से बचना चाहिए। बोर्ड को तो अंत में परीक्षा में लिखे सवालों के जवाबों से ही मतलब है, इसलिए जरूरी है कि परीक्षाओं के नाम पर सीसीटीवी, जूता-मोजा पहनकर न आने जैसे प्रयासों की बजाय पूरे साल अच्छी पढ़ाई। पर्याप्त शिक्षकों की उपलब्धता और छात्रों की अच्छी तैयारी पर फोकस किया जाना चाहिए।
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