एक कक्षा में पढ़ने वाले सभी बच्चों के सीखने में बहुत ज्यादा अंतर क्यों होता है?

primary-school-up-1एक स्कूल विज़िट के दौरान एक शिक्षक साथी ने सवाल किया, “मेरी कक्षा में 25 बच्चे पढ़ रहे हैं। मैं बहुत मन से पढ़ा रहा हूँ। मगर सिर्फ़ 5-6 बच्चे ही सीख पा रहे हैं। बाकी बच्चे नहीं सीख पा रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है?” उनके इस सवाल ने मेरी नींद उड़ा दी। मेरी बेचैनी बढ़ा दी कि अगर इतनी कोशिश के बाद भी बच्चे सीख नहीं पा रहे हैं तो हो सकता है कि शिक्षक अपने प्रयासों में कटौती कर दें, और जो बच्चे अभी सीख रहे हैं उनकी भी रफ़्तार पर भी लगाम लग जाये।

पूरी कक्षा के बच्चों पर ध्यान देना है जरूरी

ऐसी स्थिति में मैंने शिक्षक साथी के साथ बैठकर बात की और अनौपचारिक आकलन की उस शीट की तरफ देखा जिसमें 5-6 बच्चों को छोड़कर बाकी बच्चों के सीखने की स्थिति लगभग शून्य से थोड़ी ज्यादा थी। शिक्षक साथी के प्रयास के लिए मैंने प्रोत्साहित किया कि आपके पढ़ाने के तरीके में सुधार हुआ है। आप निश्चित समय में योजना के अनुसार पढ़ा पा रहे हैं, लेकिन एक क्षेत्र की तरफ हमारा ध्यान नहीं गया।

वह है बच्चों की भागीदारी वाला क्षेत्र। अगर हम सभी बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास करें और जो बच्चे कक्षा में भाषा शिक्षण के दौरान नहीं बोलते हैं, उनको भी स्थानीय भाषा के लोकगीत, कहानी और कविता के माध्यम से शामिल करने का प्रयास किया जाये ताकि कक्षा में उनको आनंद आये तो बात बन सकती है।

जो पढ़ाएं, उसका नियमित दोहरान का मौका दें

इसके साथ ही भाषा शिक्षण की नियमित कक्षा को भी जारी रखिए और बच्चों के साथ फिर से दोहरान करते हुए आगे बढ़िए। जो बच्चे सीख रहे हैं, उनको प्रोत्साहित करिए। जो बच्चे सीखने की परिधि से बाहर हैं, उनके भीतर सीखने की ललक पैदा करिए।

इस चर्चा और सुझाव के बाद कुछ महीनों तक काम करने का परिणाम उत्साहजनक रहा। 6 बच्चों वाली संख्या 10-12 के आसपास पहुंच रही थी। बाकी बच्चे भी सीखने में रुचि ले रहे थे। ऐसी ही लम्हे में लगा कि हमें कक्षा में पढ़ने वाले सभी बच्चों के बारे में यह भरोसा करने की जरूरत है कि वे सीख सकते हैं। इस भरोसे से काफी फर्क पड़ता है।

बच्चों की क्षमता पर भरोसे का जादू

इस भरोसे के कारण शिक्षक साथी की अपनी क्षमता पर भी भरोसा बढ़ा कि मेरे प्रयास से बच्चे सीख सकते हैं। उन्होंने रोज़ाना कक्षा-कक्ष के अनुभवों पर विचार करना भी शुरू किया। इससे उनको अपने शिक्षण अभ्यास को छात्रों की जरूरत के अनुकूल बनाने में मदद मिली। बच्चों के साथ उनकी बातचीत होने लगी। बच्चे उनसे गीत और कविता गाने के लिए भी कहते कि आज हमें यह कविता कहनी है।

इस माहौल में सभी बच्चे सीख रहे थे, जो उम्र में छोटे थे, वे भी कक्षा में बैठते थे। अपने साथियों को देखकर मन मुताबिक चीज़ों में हिस्सा लेते थे। अब उस कक्षा में उदासीनता के लिए कोई जगह नहीं थी, क्योंकि पूरी कक्षा सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में शामिल थी।

1 Comment

  1. क्योंकि इसमें बच्चों की वैयक्तिक भिन्नताओं के साथ साथ पारिवारिक, सामाजिक तथा आर्थिक कारक भी बहुत हद तक प्रभावित करते हैं

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