कहानी की समीक्षाः नाबिया
‘नाबिया’ जैसी सजीव लड़की पर सविता मिस का ध्यान जाना स्वाभाविक ही था। जो लड़की बिना पलक झपकाए क्लास में सुने, उस पर ध्यान कैसे न जाता? देखते-देखते, वह कहानी को परखना, उसको शब्दों, तस्वीरों और हास्य किस्सों में खुशी ढूंढना सीखने लगी थी। इस कहानी को लिखा है चतुरा राव ने। इस कहानी के लिए चित्र बनाने का काम स्वतंत्र चित्रकार रुचि म्हसाणे ने किया है। उन्होंने चित्रकला का अध्ययन कैंब्रिज इंग्लैंड से किया है। मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी इस कहानी का हिन्दी में अनुवाद किया है लवलीन मिश्रा ने। तूलिका प्रकाशन से छपी इस किताब की कीमत 150 रुपये है।
इस किताब की कहानी की पृष्ठभूमि में मुंबई शहर की एक झुग्गी बस्ती है। लेकिन इसके मुख्यपृष्ठ को देखकर बच्चों को अहसास होता है कि यह कहानी किसी गाँव की है क्योंकि तस्वीरों में बने घर की दीवारों की फर्श उधड़ी हुई है और उसके पीछे से लाल ईंटे झांकर रही हैं। जिस तरीके से रस्सी पर कपड़े फैलाए हुए हैं, ऐसा दृश्य भी बच्चों को आमतौर पर गाँव में दिखाई देता है, शायद इसलिए भी उनको लगता है कि यह कहानी किसी गाँव में रहने वाली किसी लड़की की है, जिसका नाम नाबिया है और जो फुटबाल खेलती है।
कहानी की रोचक शुरुआत
इस किताब की कहानी की शुरूआत जिस तरीके से खेल के मैदान में नाबिया और गंजू के आपसी नोंकझोंक से होती है, बच्चे तुरंत एक जुड़ाव कहानी के किरदार नाबिया और गंजू से बना लेते हैं। आगे की कहानी में आसपास के परिवेश का जो दृश्य खींचा गया है, उसको अभिव्यक्त करने का तरीका ऐसा है कि कहानी सुनने या पढ़ने वाले बच्चों को लगता है कि इतनी संकरी गली कि उसमें एक भैंस और एक आदमी साथ-साथ नहीं जा सकते। किसी संकरे रास्ते का परिचय इस तरीके से देने का अंदाज बच्चों को बहुत भाता है। वे कल्पना की दुनिया में झांक लेते हैं और बाकी की मदद किताब में बने आकर्षक चित्र से हो जाती है, जिसमें एक गली का दृश्य उनके सामने किताब के पन्ने पलटते हुए मौजूद होता है।
इसके बाद की कहानी में अपनी शिक्षिका जो कहानी सुनाती हैं, उनके साथ बच्चों के जुड़ाव और विभिन्न गतिविधियों में भागीदारी के सक्रिय अवसर जैसी बात बच्चों को अपने उन शिक्षकों की याद सहज ही दिलाती है जो उनके साथ सहजता से पेश आते हैं। उनके साथ आत्मीय जुड़ाव रखते हैं। उनको कहानियां सुनाते हैं। उनके ऊपर गुस्सा नहीं करते। उनके साथ विनम्रता व सम्मान तथा समानता वाला व्यवहार करते हैं। बच्चों के अभिभावक व शिक्षक के संवाद का वह लम्हा बच्चों के दिल में उतर जाता है, जब नाबिया की माँ उनकी शिक्षिका सविता को नाबिया के गुस्सा करने वाली राज की बात बताती हैं और उनके साथ बातचीत करती हैं। जबकि इस दौरान सविता का पूरा ध्यान सिंवइयां खाने पर होता है। बच्चों को इस दृश्य की कल्पना करके जो खुशी मिलती है, वह इस कहानी को पढ़कर सुनाते समय क्लासरूम में महसूस किया जा सकता है।
भाषा और अनुवाद
इस कहानी में नाबिया को उसकी शिक्षक सविता की तरफ से ईदी या गिफ्ट के रूप में ‘द बियर’ किताब मिलती है। हालांकि इस किताब के अनुवाद में ईदी जैसे शब्द का जिक्र नहीं किया गया है। अगर ऐसे शब्द का इस्तेमाल किया जाता तो बच्चों को कहानी से जुड़ने में ज्यादा मदद मिलती। यह बात बच्चों से चर्चा करते हुए साफ-साफ महसूस होती है। अनुवाद पर अंग्रेजी की छाया साफ-साफ दिखाई देती है। ईद के त्योहार की पृष्ठभूमि पर बच्चों के साथ अच्छी चर्चा इस किताब के माध्यम से संभव है। भाषा में एक प्रवाह है, लेकिन अंग्रेजी के शब्दों के इस्तेमाल की अधिकता के कारण कुछ जगहों पर अर्थ के निर्माण में बाधा पैदा होती है। यह किताब अनुवाद के बाद भी अंग्रेजी किताब के मूल पर संदर्भ के लिए फिर से लौटने की जरूरत पैदा करती है। अनुवाद पक्ष को थोड़ा और बेहतर और सहज किया जा सकता है।
चित्रांकन
चित्रांकन इस किताब का एक सशक्त पहलू है। रुचि म्हसाणे ने अपनी चित्रकला के माध्यम से कहानी को जीवंत बना दिया है। जो बात लिखित सामग्री के रूप में बच्चों के मन में निर्मित हो रही होती है, उसका एक संकेत इस किताब के चित्रों से मिल जाता है। चित्र और लिखित सामग्री का तालमेल कल्पनाशीलता को रेखांकित करता है। चित्रों में एक गति, लय और हाव-भाव की मौजूदगी बड़ी प्रभावशाली है। कोई भी चित्र ऐसा नहीं है, जो जीवंत न हो। हर चित्र में किसी न किसी तरह की गति, संवाद या किसी गतिविधि या काम की तल्लीनता साफ-साफ झलकती है। इसके चित्रों के कारण किताब और पठनीय हो जाती है।
निष्कर्ष
इस किताब को प्राथमिक कक्षा की चौथी व पांचवीं कक्षा के साथ-साथ उच्च प्राथमिक व हाईस्कूल तक के बच्चों के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है। इस किताब को मदरसे के बच्चों द्वारा भी खूब पंसद किया जा रहा है। उनका कहना है कि हमारी लाइब्रेरी में ऐसी किताबें और होनी चाहिए। यह किताब अपनी कहानी, भाषा शैली, अनुवाद व चित्रों की कल्पनाशीलता के समग्र आयामों में एक जीवंत पुस्तक है, जिसे बच्चे पढ़ना पसंद करेंगे। यह किताब उनको कल्पना करने, सोचने और कहानियों को नये नजरिये से देखने को प्रोत्साहित करेगी, ऐसी उम्मीद है।
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