सक्सेस स्टोरीः उत्तर प्रदेश के इस विद्यालय में नामांकन 287 से बढ़कर 390 हो गया

IMG_20190727_003209.jpgआपने उत्तर प्रदेश के सरकारी विद्यालयों की बदहाली की कहानी बहुत सी पढ़ी होंगी। लेकिन एक ऐसी सक्केस स्टोरी भी है जो बताती है कि शिक्षक जब अपने प्रयासों व जुनून से ज़मीनी परिस्थितियों से जूझते हुए उनको बदलने की कोशिश करते हैं तो उनको कितना संघर्ष करना होता है। लेकिन सूकून की बात है कि संघर्ष की इस कहानी में सफलता की मंज़िल भी आती है।

आज हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के फरीदपुर ब्लॉक में स्थित प्राथमिक विद्यालय फतेहगंज पूर्वी प्रथम की। वर्तमान में यहाँ की प्रधानाध्यापिका दीप्ती सक्सेना हैं। उनकी यह स्टोरी एजुकेश मिरर के साथ रुपेन्द्र सिंह ने साझा की है। पढ़िए आगे की कहानी प्रधानाध्यापिका दीप्ती सक्सेना के शब्दों में।

मेरे हौसले के आगे चुनौतियों ने हार मान ली

मेरी प्रथम नियुक्ति प्राथमिक विद्यालय औरंगाबाद में सन 2009 में सहायक अध्यापक पद पर हुई। वर्तमान में प्राथमिक विद्यालय फतेहगंज पूर्वी इंग्लिश मीडियम में प्रधान अध्यापिका पद पर कार्यरत हूं। जुलाई 2018 में मैंने प्राथमिक विद्यालय फतेहगंज पूर्वी ज्वाइन किया। यहां मैंने देखा कि विद्यालय में पानी भरा रहता था। छत टपक रही थी। यह विद्यालय मेरे लिए बहुत चुनौतीपूर्ण साबित हुआ क्योंकि विद्यालय का माहौल बहुत राजनीतिपूर्ण था।

एक अभिभावक से मुझे पता चला कि विद्यालय शाम को भी खोला जाता था और यहां पार्टियां तथा अन्य कार्य होते थे, जो विद्यालय के परिसर में होना शर्मनाक एवं निंदनीय है। यह सब जानकर मुझे रात भर नींद नहीं आई और सुबह जाते ही मैंने बरसों से निजी तौर पर लगाए चपरासी से विद्यालय चाबियां ले ली और उस चपरासी को हटा दिया। इसको लेकर मेरा काफी विरोध हुआ। मेरी झूठी शिकायतें डीएम ऑफिस में की गई जिससे मैं डर जाऊं और स्कूल छोड़ दूं। लेकिन स्कूल को बदल कर रख देने का संकल्प और बच्चों के प्रति प्रेम ने मुझे लक्ष्य पर अडिग रखा।

विद्यालय में बदलाव के लिए प्रयास

कुछ विद्यालय प्रबंध समिति और कुछ अपने पास से पैसा लगाकर स्कूल रिपेयर और रिनोवेशन का काम किया। स्कूल के बाहर की जमीन पर वर्षों से अवैध दुकानें थी उनको हटवाया, जिसके लिए मुझे थाने बुलवाया गया। स्थानीय विधायक से भी शिकायत हुई। लेकिन बिना डरे सारी दुकाने मैंने हटवा दी और वहां बाउंड्री वॉल करवाकर बच्चों के लिए झूले लगवा दिए। स्कूल में पढ़ाई का माहौल बनाया। संगीतमय प्रार्थना करवाने हेतु एक हारमोनियम और ड्रम खरीद कर लाई। बच्चों को विद्यालय आने के लिए प्रेरित किया।

IMG_20190727_003158.jpgघर से कंप्यूटर लेकर गई और बच्चों को कंप्यूटर सिखाया। अपने विद्यालय में लाइब्रेरी बनाई जिससे बच्चों में एक जगह साइलेंट स्टडी की आदत बने। आज मेरा विद्यालय फरीदपुर ब्लॉक का उत्कृष्ट विद्यालय है। प्राइवेट स्कूल से नाम कटवा-कटवा कर मेरे स्कूल में बच्चे आ रहे हैं। इस विद्यालय के लिए मुझे दो बार बीएसए मैडम और डीएम सर से प्रशस्ति पत्र मिल चुका है।

बच्चों का नामांकन 400 के करीब कैसे पहुंचा?

इस बारे में बताते हुए प्रधानाध्यापिका दीप्ती सक्सेना कहती हैं, “जब मैंने जुलाई 2018 मई स्कूल जॉइन किया था तब 226 बच्चे थे। सितंबर 2018 में 287 बच्चे हो गए मई 2019 में 315 बच्चे हो गए। आज 15 जुलाई 2019 को 365 बच्चे हो गए हैं। वर्तमान में यह संख्या 390 के आसपास पहुंच गई है।”

IMG_20190727_003203.jpgवे आगे कहती हैं, “आज मेरे स्कूल के बच्चे 15 अगस्त और 26 जनवरी के प्रोग्राम बहुत अच्छे करते हैं उनके माता-पिता भी देख कर हैरान होते हैं। विद्यालय में स्टाफ के नाम पर तीन ही शिक्षा मित्रों के साथ में अकेली टीचर हूं और प्रधान अध्यापिका भी हूं। क्लास में नियमित पढ़ाती भी हूं। स्कूल के अन्य कार्य भी करवाती हूं और विद्यालय विकास के लिए सारी लड़ाई भी अकेले लड़ रही हूं और विद्यालय को उत्कृष्ट श्रेणी में भी लाकर खड़ा कर दिया है।”

दे शिवा वर मोहे एही शुभ कर्मन ते कबहुं ना टरु ,
न डरू अरि से जब जाए लड़ूं, निश्चय कर अपनी जीत करूं

अपने बदलाव की कहानी को संक्षेप में बताते हुए प्रधानाध्यापिका दीप्ती सक्सेना कहती हैं, “अगर हम ठान ले तो कोई कार्य ऐसा नहीं जो एक शिक्षक समाज के उत्थान के लिए नहीं कर सकता।  विद्यालय तो एक ऐसी जगह है जहां से समाज की नींव पड़ती है इसलिए विद्यालय का माहौल हमेशा सकारात्मक होना चाहिए। ताकि हमारे बच्चों के बेहतर भविष्य की राह आसान बने और वे सफलता के रास्ते पर आगे बढ़ सकें।”

 

1 Comment

  1. Bahut hi sarahniy kary kiya aap mehnat or lagan ko Naman h

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