शिक्षा विमर्शः आख़िर गणित से इतना खौफ क्यों?

20190426_142349.jpgगणित का नाम आते ही अधिकांश बच्चों के चेहरे से हवाई उड़ते हुए देखना कोई अजीबोगरीब घटना नही जान पड़ती. सामाजिक मान्यता का एक पहलू यह स्वयंसिद्ध सा प्रतीत होता है जब छात्रो के मन में गणित के प्रति नकारात्मकता को स्वीकार कर लिया जाता है तो गणित का अँधेरा अवश्य ही बच्चों को डराने का काम ही करेगा. आज गणित का खौफ किसी आततायी दानव जैसा प्रतीत होता है जिसके आतंक से सब डरे हुए हैं. अब सवाल उठता है कि क्या गणित वास्तव में इतना भयभीत करने वाला विषय है या इसके अन्दर कुछ जीवंतता शेष है ?

गणित विषय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

गणित के सौन्दर्य की कल्पना वही कर सकता है जो इसमें रम गया हो. जिस तरह किसी क्रूर दानव को हराने के लिए देवताओं को भी तपस्या और सिद्धी के द्वारा अलग- अलग तरह के हथियार की आवश्यकता पड़ती थी उसी प्रकार गणित के आतंक को तभी परास्त किया जा सकता है जब आपके पास इसकी समझ और इससे लड़ने के लिए आपकी लगन के प्राप्त सुंदर हथियार मौजूद हो. भारतीयों की गणितीय प्रतिभा से विश्व सदा अचंभित रहा है. भारतीय वेदों, पुराणों में , पंडितों , कर्मकांडी ब्राह्मणों द्वारा भी आदि काल से इसकी महत्ता को समझा जाता रहा है, वेदों में गिनती की संख्या को 1012 जिसे परार्ध कहा गया का उल्लेख है, वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में रावण के द्वारा भेजे गये गुप्तचर शुक द्वारा राम की सेना बताने के लिए महौघ शब्द का प्रयोग किया गया जो 1060 के बराबर है. बौद्ध धर्म पर लिखी पुस्तक ललितविस्तार में महात्मा बुद्ध के शादी के समय गुरु अर्जुनदेव द्वारा उनकी गणित कौशल की प्रतिभा परखने का उल्लेख मिलता है जिसमे तल्लक्ष्णा (1053)का मिलना बुद्ध के गणितीय ज्ञान को बताने के लिए काफी है.

दाशमिक प्रणाली , दशमलव , शून्य , ऋणात्मक संख्या जैसी गणितीय ज्ञान से विश्वपटल में अपने ज्ञान का पताका फहराने वाले भारतीयों के मन में आज गणित के प्रति ऐसा अविश्वास क्यों ?

वर्तमान स्थिति

भारत में गणित की स्थिति कितनी डर पैदा करने वाली है इसका ज्ञान हमें “असर” या एनसीईआरटी के द्वारा हाल में किये शोधों से पता चलता है जो यह बताती है कि 60% से अधिक छात्र जिन्होंने कक्षा 5 तक की पढाई की है उन्हें हासिल वाले घटा, एक अंक द्वारा भाग , संख्या निरूपण में परिपक्वता नही है. सीबीएसई के अनुसार कक्षा 10 पास करने वाले 21% छात्र ही 11कक्षा में गणित को एक विषय के रूप में लेते हैं.

आख़िर गणित विषय से इतनी नफरत छात्रों में क्यों व्याप्त है ? पिछले 15 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े होने के कारण , विगत 5 वर्षों में देश के कई हिस्सों में गणित शिक्षकों के प्रशिक्षण और देश की कई विद्यालयों, विश्वविधालय में छात्रों के साथ अपने अनुभव साझा करने और उन्हें सुनने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पंहुचा हूँ की इसके पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं.

1.सिस्टम सबसे बड़ा जिम्मेदार :- यदि आप किसी छात्र को किसी कार्टून करैक्टर – छोटा भीम, डोरीमोन, मोटू पतलू दिखाकर उनसे पहचानने को कहें तो वो झट से पहचान जायेंगे , यही हाल किसी अभिनेता, राजनेता के लिए भी सही बैठेगी पर अगर किसी गणितग्य के चित्र दिखा उनसे परिचय लेना चाहे तो परिणाम इसके विपरीत होगा. मतलब साफ़ है जबतक आप गणित को ऐसे विषय के रूप में पेश नही करेंगे जहाँ बच्चे गणित के किसी करैक्टर के साथ खुद को जोड़ पायें उनके बीच अपनत्व का भाव नही पनपेगा. सरकार का यह प्रयास कभी नही रहा की किताबें ऐसी हो जिसमे छात्र आनंद का अनुभव कर सके या ऐसी रोचकता के साथ खुद को जोड़ वैसा बनने की प्रेरणा ले सके. अगर पुस्तक में किसी गणितग्य से सम्बंधित कहानी हो जो रोचकता से भरपूर हो , कविताये हो जो गणित के महत्व को समझाएं, पहेली हो जिससे जीवन्तता का अनुभव हो , कार्टून करैक्टर में गणितज्ञों को पेश करने की परंपरा डाली जाये तो गणित एक जीवंत विषय बन जायेगा. आज गणित की पाठ्यक्रम को सवालों का पुलिंदा बनाकर पेश किया जाता है जिसमे कोई रोचकता नही रहती है. पुराने समय में गणित के जितने ग्रन्थ लिखे गये चाहे वो आर्यभट्टीय हो या लीलावती सब पद्यात्मक शैली में लिखी गयी जिससे रोचकता बनी रहे. आज सरकारी सिस्टम में गणित को एक बोझिल विषय बना दिया गया है जिसमे गणित की वास्तविक उपयोगिता का स्थान गौण है.

2. प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी :– मेरा आशय सिर्फ बीएड या एमएससी जैसी डिग्री प्राप्त शिक्षकों से नही है. आज ऐसे शिक्षकों की जो गणित को रोचक बना सके, बच्चों को गणित के अथाह सागर में छुपे मोती दिखा सके, उन्हें आत्म-साक्षात्कार करा सके का सर्वदा अभाव है. रिजल्ट लाने की आपाधापी में आज सवाल हल करने के जो तरीके बताये जाते है वो समस्या को गहराई से समझने और उसे हल करने के नए तरीके खोजने के लिए प्रेरित नहीं करते बल्कि उनका ज्ञान संकुचित कर सिर्फ अंक लाने पर केन्द्रित कर देंते हैं. आज हमें हार्डी जैसे शिक्षकों की जरूरत है जो रामानुजन को खोज उसकी प्रतिभा निखारने में खुद को गौरवान्वित महसूस करे ना की सिलेबस ख़त्म करने के उलझनों में गणित की रोचकता से समझौता कर ले.

3.सवालों की आजादी नही :– वर्तमान परिदृश्य में शिक्षकों ने अपने ज्ञान में कोई बढ़ोतरी नही की और की भी तो सिर्फ अपने लिए इसका फायदा छात्रों तक ठीक तरह पहुचे ऐसा हुआ नही. छात्रों को कक्षा में सोचने के लिए प्रेरित नही किया जाता और ना ही उन्हें सवालों की आजादी है. शून्य के बारे में बताते तो हैं पर शून्य किसने खोजा नही बताते, दो ऋणात्मक संख्या का गुणा धनात्मक होता है पर क्यों नही पता. गणित की एतिहासिक पृष्ठभूमि से दर्शन कराने का कोई प्रयास या ऐसा सवाल जिसमे शिक्षक उलझ जाये पसंद नही किया जाता. अपनी ज्ञान को थोपने का सिलसिला भी गणित की दुर्गति का एक कारण है.

4.गणित के कैरिएर पर प्रश्नचिन्ह:- गणित पढकर क्या एक शिक्षक बनना है या इसके और कई आयाम है यह बताने का काम नही किया जाता. गणित के क्षेत्र से सम्बंधित बैंकिंग, इंजीनियरिंग या शिक्षण को छोड़ अन्य करियर की जानकारी 90% से अधिक छात्रों को नही है और जब भविष्य का प्रश्न हो और यह अधर में लटका हो तो ऐसे विषय से कोई क्यों प्यार करेगा

  1. शोध की कमी :- 2014 में गणित के फील्ड मेडल पाने वाले मंजुल भार्गव ने लिखा की भारत में टीआईएफआर, ISI, IISc जैसे संस्थानों को छोड़ किसी विश्वविधालय में गणित में शोध की जगह नही दिखती. आज गणित का क्षेत्र कितना व्यापक है. अन्तरिक्ष विज्ञान, जीव विज्ञान , सांख्यिकी , मेडिकल , सडक निर्माण से लेकर हर तरह के अनुसन्धान में इसका उपयोग हो रहा है जिसके बारे में हमारे यहाँ कोई ध्यान नही दिया जाता. यदि कोई छात्र पढाई में अच्छा है तो वह इंजिनियर बन सिर्फ अच्छे नौकरी के तलाश में है क्योंकि एक तो शोध की कमी है और एक शोधार्थी का सामाजिक सम्मान एक व्यापारी या इंजिनियर छात्र से कम है.

सिर्फ शिक्षा नीति में गणित पर बड़ी बड़ी बातकर हम गणित का भला नही कर सकते. इसके लिए हमें प्रयोगशील और शोधपरक शिक्षा पर जोर देने की जरूरत है. सामाजिक सोच को बदलने की जरूरत है की गणित का क्षेत्र कितना व्यापक है और इसकी उपयोगिता का आत्म अवलोकन करने के लिए शिक्षकों को एक प्रशिक्षण की आवश्यकता है जो छात्रों को गणित की व्यापकता से साक्षात्कार कराये , सरकारी एजेंसी को सिर्फ 100% परिणाम लाकर पीठ थपथपाने या बच्चों के लिए गणित का आसान पाठ्यक्रम लाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेने की सोच से बाहर निकलकर गणित के प्रति इमानदार होने की जरूरत है जिससे छात्र इसकी गहनता, रोचकता और उपयोगिता को समझे और गणित का भला हो तभी डर निकलेगा.

(लेखक परिचयः डॉ राजेश कुमार ठाकुर वर्तमान में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय , रोहिणी , सेक्टर 16 दिल्ली -110089 में अध्यापक हैं। 60 पुस्तकें , 500 गणितीय लेख, 400 से अधिक ब्लॉग , 10 रिसर्च पेपर प्रकाशित। 300 से अधिक विद्यालयों में शिक्षक प्रशिक्षण का अनुभव।)

2 Comments

  1. sahi kaha aapne! ganit me shodh karne walon ki kami isiliye he kyonki unhe wo samman nhi hoti joki ik engineer ya IAS ko hota he khasker ganit teaching se jude logon ko to bilkul bhi nhi.
    nice article.

  2. बहुत खूब.. ऐसा लगा जैसे आपने हर गणित के अध्यापक का दर्द बयान कर दिया. उम्मीद करती हूं इस लेख को संबंधित अधिकारी पढेगे और शायद स्तिथि में कुछ सुधार हो

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