कविताः चार दोस्त

चार दोस्त निकल पड़े चौड़ा सीना तान के,
लोग कहे थे, हम सुने थे, थे ऊंचे खानदान से,
हाथ में बीड़ी,मुंह में गुटका फिर भी थी बड़ी शान रे

चलते-चलचे वह पहुंच गए एक चाय की दुकान में,
चाय पीते-पीते बात होने लगी बाकी आए मेहमान से,
सब गाने लगे खुद के ही वीरता के गुणगान रे,
जैसे वही हो पिछले जन्म में सिकंदर और अशोक महान रे।

कुछ देर बाद गुजरी वहां से 2 सुंदर युवतियाँ रे,
पता नहीं कैसे साद ली सब लोगों ने चुप्पियाँ रे,
तभी एक दोस्त बोला-” क्यों ना दिखाया जाए अपना ऊंचा खानदान रे”,
फिर जागा चारों के भीतर एक भयानक शैतान रे!

पीछा करके पहुंचे उन तक वह चारों शैतान रे,
लड़कियां डर गई, पीछे हट गई बोलकर हे भगवान रे,
जब तार-तार कर रहे थे,वे स्त्री के सम्मान को,
तब कोई शूरवीर न आया जो रोके इस अपमान को

होकर पितृसत्ता के नशे में चूर,भूल गए मर्यादाओं को,
लेकिन कौन बचाए आज इतनी सारी द्रौपदी और सीताओं को!

पता नहीं क्यों बैठे रह जाते हैं,
सारे शूरवीर चाय की दुकान में?

-दीपिका
-10th

(दीपिका नानकमत्ता पब्लिक स्कूल में दसवीं की छात्रा हैं। वह अपनी स्कूल की दीवार पत्रिका के सम्पादक मंडल से जुड़ी हैं। अपने विद्यालय के अन्य विद्यार्थियों के साथ मिलकर एक मासिक अखबार भी निकालती हैं। जश्न-ए-बचपन की कोशिश है बच्चों की सृजनात्मकता को अभिव्यक्ति होने का अवसर मिले।)

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