कहानीः सदमा
इस कहानी की लेखिका दसवीं कक्षा की छात्रा डौली भट्ट हैं।
बारिश का मौसम था। बहुत तेज बारिश हो रही थी। शाम का समय था। चारो ओर कोहरा छाया हुआ था। बबीता एक नौ साल की लड़की थी। उसके पापा किसी काम से बाजार जा रहे थे। वह भी साथ चलने के लिये जिद्द करने लगी। उसे कॉपी लेनी थी। पापा के मना करने पर भी वह नहीं मानी। उसके पापा ने कहा कि ठीक है फिर चलो। बबीता अपने पापा के साथ हँसते-हँसते और बातें करते-करते चली। वह कब बाजार पहुंची उसे पता ही नहीं चला। उसके पिताजी ने उसके लिए कॉपी ली और उसे घर जाने को कहा। बीता खुशी-खुशी घर की तरफ लौट चली।
अभी वह कुछ ही दूर पहुंची थी कि किसी ने उसे पीछे से कसकर पकड़ लिया। बबीता को चिल्लाने या भागने का मौका भी नहीं मिला। उस इंसान ने उसका मुंह रुमाल से दबा रखा था। डर के मारे उसकी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा। वो इंसान फिर बबीता को नीचे की ओर ले गया। वहां एक खाली घर था, जिसका निर्माण कार्य चल रहा था। उस समय वहां पर कोई नहीं था । नीचे ले जाने के बाद वह बबीता को धमकी देने लगा कि अगर हल्ला किया तो मैं तुम्हें बिच्छू घास (सिन्ना) लगाऊंगा। और फिर काट कर फेंक दूंगा। बबीता डर गई। फिर थोड़ी देर में जब वो इंसान बबीता को एक कमरे की तरफ ले जाकर उस कमरे की कुण्डी खोलने लगा तो उसकी पकड़ थोड़ी सी ढीली हुई।
बबीता ने मौका पाकर उसका हाथ जोर से झटकाया। उसे धक्का देकर भाग गई। कुछ दूर तक तो उसने बबीता का पीछा किया । पर वह बबीता को पकड़ नहीं पाया।वहीं पास में बबीता का ननिहाल था। वह बदहवास उसी ओर भागी।जब वहां पहुंची तो वह बहुत ही डरी-सहमी हुई थी। उसकी हालत बहुत ही खराब थी। वह अच्छे से सांस भी नहीं ले पा रही थी । वह बहुत ही ज्यादा सिसक-सिसक कर रो रही थी। उसका पूरा शरीर कांप रहा था। उसकी यह हालत देखकर उसकी मामी घबरा गई। उसे बैठाकर पानी पिलाया। जब वह थोड़ा सामान्य हुई तो उससे उसकी इस हालत का कारण पूछा। बबीता ने सब कुछ बता दिया। थोड़ी देर तक तो उसकी मामी असमंजस में पड़ गई। फिर उसकी मामी ने बबीता से उसी स्थान पर ले जाने को कहा, जहाँ ये घटना घटी थी। बबीता अपनी मामी को लेकर वहां पहुंच गई। पर उस समय वहां पर कोई नहीं था।
थोड़ी ही देर में यह बात सारे गांव में आग की तरह फैल गई। सभी लोग और बबीता के मम्मी पापा घटना स्थल पर पहुंच गए। बबीता से उस इंसान का हुलिया पूछा गया। बबीता ने सारा का सारा हुलिया बता दिया। सभी लोगों को एक ही इंसान पर शक हुआ। बबीता से कहा गया कि अगर वो इंसान उसके सामने हो तो क्या वह उसे पहचान लेगी? बबीता ने सुबकते हुए हां में सिर हिलाया। लोग उसी समय उसके घर पहुंच गए। उसको बाहर निकाला गया। बबीता से पूछा कि यही है वह? बबीता को उसे पहचानने में थोड़ी कठिनाई हुई ,क्योंकि उसने अपना पूरा हुलिया ही बदल लिया था। जैसे सेविंग कर ली ( दाढ़ी – मूंछ बना ली थी) और कपड़े बदल लिए थे लेकिन बबीता ने उसे पहचान लिया। फिर क्या था गुस्साए लोगों ने उसे मारना-पीटना शुरू कर दिया।
तब तक पुलिस भी वहां पहुंच गई। बबीता को पूछताछ के लिए अपने पास बुलाया पर बबीता कुछ भी उत्तर नहीं दे रही थी वो बहुत ही डरी और सहमी हुई थी। पुलिस ने बबीता को यह भरोसा दिलाया कि उसे कोई कुछ नहीं कर पाएगा। तुम सब कुछ हमें बता दो। सभी तुम्हारी मदद करेंगे। बबीता ने कुछ ही देर बाद सब कुछ बता दिया। पुलिस उस आदमी के पास गई और बोली क्या बात है? इस पर वह बोला- साहब छोटी बच्ची है। शायद इसे कोई ग़लतफहमी हुई है। पुलिस को इस बात पर गुस्सा आया और बोली जब इसको दो चार डंडे पड़ेंगे तब समझ आएगा। ऐसा ही हुआ थोड़े डंडे पड़ते ही वह सब कुछ उगल गया। बबीता को उसके सामने लाया गया। बबीता से उसे थप्पड़ मारने को कहा गया। पर बबीता अभी भी उससे डर रही थी।
बबीता रोते -रोते घर को भाग गयी। रात भी बहुत हो रही थी तो सभी अपने-अपने घरों को चले गए। आज बबीता के घर में मातम सा माहौल था। सबके चहरों पर मायूसी छाई हुई थी। सभी परेशान थे। बबीता को गहरा सदमा लगा था। न वह कुछ खा- पी रही थी। न ही कुछ बात कर रही थी। वह अपना मानसिक संतुलन भी धीरे-धीरे खो रही थी। बहुत दिनों तक इससे उबर नहीं पाई। जब भी वह अकेले होती तो अपने आप को कमरे में बंद करके रोने और चिल्लाने लगती। उसके परिवार वालों को यह डर लगे रहता था कि वह कुछ अपने साथ गलत ना कर बैठे। कभी- कभी तो बबीता नींद में ही चिल्लाती- कोई मुझे बचा लो वो मुझे मार देगा। उसकी मां जब वहां पहुंचती और उसे जगाती तो वह मां के गले लगकर बोलती- मम्मी वो अभी भी यहीं है। वो मुझे मार देगा। उसकी मम्मी उसे बहुत समझाती कि कोई नहीं है। फिर भी वह रोने लगती।
कुछ समय बाद जब उसकी हालत ठीक होने लगी तो उसने विद्यालय जाना प्रारंभ किया। पर अब उसे कहीं भी अकेले जाने में बहुत डर लगती है। आज भी जब वो उस जगह को देखती है तो सिहर उठती है। बबीता एक खुशमिजाज , हंसती, मुस्कुराती,खेलती हुई लड़की थी। इस घटना के बाद जैसे वह हंसना -खेलना ही भूल गई।
(यह मार्मिक कहानी डौली भट्ट ने लिखी है। डौली उत्तराखंड के राजकीय इण्टर कॉलेज देवलथल में दसवीं की छात्रा हैं। उन्होंने जीवन के यथार्थ किंतु कड़वे सत्य को अपनी कहानी में अभिव्यक्ति किया है। जो पाठक को सोचने के लिए मजबूर करता है।)
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