शिक्षक प्रोत्साहन सिरीजः मेरे जीवन के तीन स्तम्भ
गुरु ज्ञान की ऐसी गंगा है जिसके पास जाने से जीवन निर्मल और शीतल हो जाता है. गुरु की महिमा पर कुछेक शब्दों में तो कुछ लिख पाना समुद्र को छोटे ग्लास में भरने जैसा है.
गुरु अनंत तक जानिए . गुरु की ओर ना छोर
गुरु प्रकाश का पुंज है, निशा बाद का भोर
एक छोटे से सरकारी गांव में अपनी पढाई की यात्रा आरम्भ कर नगर, महानगर तक के विद्यास्थलों तक पढाई की. कक्षा प्रथम से पीएचडी तक अनेक शिक्षकों से मिला और सबने जीवन में कुछ ना कुछ प्रभाव छोड़ा पर मेरे जीवन में तीन लोगों का विशेष स्थान है और इनमे एक के भी ना होने से मैं अपने को इतना भाग्यशाली नही समझता. यदि मैं ये कहूँ की आज मेरा जो भी कद है, बेशक वो ओस की बूंद जितना छोटा हो पर उस एक बूंद में इन तीनों का ऐसा तेज है जो ओस कण पर सूर्य की पहली किरण छटकने पर दिखती है.
मेरे पिता प्रारंभिक शिक्षक और प्रेरणा स्त्रोत
इनमे पहले हैं मेरे पिता – स्वर्गीय परमानंद ठाकुर. एक कड़क, अनुशासन प्रिय और शिक्षा को सबसे अधिक मूल्यवान समझनेवाले परोपकार की पराकाष्ठा मेरे पिता मेरे प्रारंभिक शिक्षक ही नही मेरे लिए मेरे प्रेरणा स्रोत रहे. उनके इस स्वाभाव से पहले मुझे चिढ़ थी पर आज महसूस होता है की अगर जीवन में अनुशासन ना हो तो जीवन मूल्यहीन है. सपने देखना तो उन्होंने ही सिखाया. उनके एक मित्र ने तीन विषय में स्नातकोत्तर की पढाई की थी और हर समय वो मुझे उनका उदाहरण देते और शायद मेरे 4 विषयों में एमए करने की पीछे उनकी प्रेरणा रही.

पटना पुस्तक मेलाः सबसे दाहिनी तरफ मेरे पिता – स्वर्गीय परमानंद ठाकुर
उन्हें किताबों का बड़ा शौक था हर माह मेरे लिए नई शिक्षाप्रद कहानी की पुस्तक लाकर देना वो कभी नही भूले. उन्होंने मेरे सामने तो कभी मेरी प्रशंसा नही की परन्तु जब भी पत्र-पत्रिकाओं में मेरे लेख छपते, मेरी पुस्तक छपी वो पुरे गांव में अपने परिचितों को दिखाना नही भूले.
पटना पुस्तक मेले में जब मेरी पुस्तक का विमोचन होना था उन्हें स्टेज पर मेरे साथ हजारों की भीड़ में आशीर्वाद देना मेरे जीवन का अविस्मरणीय पल रहा.
मेरे हिन्दी के अध्यापक
मेरे जीवन में दूसरा अमूल्य योगदान मेरे हिंदी के अध्यापक श्री परशुराम यादव जी का रहा. हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओँ पर इतना नियंत्रण और उनका मेरे ऊपर आशीर्वाद स्वरुप विद्यालय समाप्ति के उपरांत भी हिंदी और अंग्रेजी पढ़ाना, वाक्यों में शब्द की गहराई के तानाबाने द्वारा झंकृत करने की सारी कला सिखाकर उन्होंने जीवन को मानवीयता के गुणों को बनाये रखते हुए कैसे जीना है सिखाया.

अपने गुरू परशुराम यादव जी के साथ।
यूँ तो उन्होंने सिर्फ 3 साल (कक्षा 8 से 10) ही मुझे पढ़ाया पर उन जैसा शिक्षक मुझे आजतक नहीं मिला.
लगभग 25 वर्ष बाद जब मैं उनके घर इसी साल उनसे मिलने गया तो उनके आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गये.
उन्होंने बड़े प्यार से अपने घर खाना खिलाया और भाव-विभोर होकर ढेर सारा आशीर्वाद दिया.
मेरे शिक्षक जिन्होंने पिता जैसा प्यार दिया

तस्वीर में बाएं से राजेश ठाकुर, स्व. प्रोफेसर यशपाल और डॉ चंद्रमौली जोशी
तीसरा व्यक्ति जिन्होंने सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने और पुरे देश में सम्मान दिलाने में मेरी मदद की वो एक कोमल हृदय गुजरात से आते हैं उनका नाम डॉ चंद्रमौली जोशी है. एक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित रामानुजन क्लब के संस्थापक डॉ जोशी ने मुझे जीवन की ऊंचाईयों को पाने में एक पिता जैसा प्यार दिया. पुरे देश में सैकड़ों गणितज्ञ, वैज्ञानिक और वैज्ञानिक संस्थानों से मेरा परिचय कराकर उन्होंने मेरे जीवन को एक नई दिशा दी.
शिक्षक हमेशा अपने छात्रों की ऊंचाई में ही अपनी उडान भरता है, अपने सपने को छात्रों से पूरा कराने में अपना गौरव समझता है. एक सच्चा गुरु जिसे मिल जाये वो जीवन में कोई भी असंभव कार्य को गुरु कृपा से पूरा कर लेता है.
गुरु अमृत है जगत में, बांकी सब विषबेल
सतगुरु संत अनंत है, प्रभु से कर दे मेल
(लेखक परिचयः डॉ राजेश कुमार ठाकुर वर्तमान में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय , रोहिणी , सेक्टर 16 दिल्ली -110089 में बतौर शिक्षक काम कर रहे हैं। 60 पुस्तकें , 500 गणितीय लेख, 400 से अधिक ब्लॉग व 10 रिसर्च पेपर प्रकाशित। 300 से अधिक विद्यालयों में शिक्षक-प्रशिक्षण का अनुभव। इस लेख के संदर्भ में आपके विचार और अनुभव क्या है, टिप्पणी लिखकर बताएं)
🙏🙏सर आपने इस टिप्पणी से ये दर्शा दिया की जीवन में गुरु का क्या महत्व है और जीवन में शिक्षा कितना जरुरी है।
Very nice
शिक्षा कितनी जरूरी है ये समझ आया, और एक गुरु का क्या कर्तव्य है वो समझ आया, में आपसे बहुत प्रभावित हूँ सर,
आपका कोटि कोटि धन्यवाद🙏