जे. सुशीलः अमेरिका की तरह भारत में शिक्षा का निजीकरण क्यों नहीं होना चाहिए?
सुशील जे लिखते हैं, “मैंने पिछले कुछ समय में नोटिस किया है कि एक पूरा का पूरा तर्क गढ़ा जा रहा है कि भारत में शिक्षा का निजीकरण किया जाना चाहिए। इसके पीछे तर्क है कि अमेरिका में ऐसा है। लोगों को लोन लेकर पढ़ना चाहिए। यहां की यूनिवर्सिटियां ग्लोबल रैंकिंग में हैं।”
जरूर पढ़ेंः पढ़ना एक अच्छी आदत है
ये तर्क देने वाले खास तौर पर वो लोग हैं जो किसी स्कालरशिप पर कभी अमेरिका आ गए या किसी फेलोशिप पर आ गए या फिर बड़ी नौकरियों में हैं भारत में। वो लगातार यूनिवर्सिटियों का हवाला देते हैं कि वहां पढ़ाई नहीं होती और टैक्सपेयर का पैसा बर्बाद होता है। इस तर्क में बहुत भयानक झोल हैं। इसके लिए वो जेएनयू का नाम लेते हैं यदा कदा।
झोल नंबर वन
सिर्फ जेएनयू ही नहीं है जो टैक्सपेयर के पैसे पर चलता है। भारत की हर यूनिवर्सिटी टैक्सपेयर के पैसे पर चलती है इसलिए ये तर्क देने वाले भूल जाएं कि वो टैक्सपेयर के पैसे पर नहीं पढ़ रहे हैं। तो समझ लीजिए कि टैक्स के पैसे का मौज हम सब उड़ा रहे हैं इसमें जेएनयू को गाली दे रहे हैं आप सिर्फ तो आप दोगले हैं। जेएनयू वाले नहीं। (इसमें अब ये तर्क मत लाइए कि जेएनयू में देशद्रोह सिखाया जाता है आदि आदि। वो एक अलग मुद्दा है। उस पर मैं बहुत बहस कर चुका हूं। ये पोस्ट शिक्षा पर केंद्रित है)
झोल नंबर दो
लोन लेकर पढ़ लो। जैसे अमेरिका में पढ़ते हैं। अमेरिका में लोग क्या कुएं में कूद जाएंगे तो आप भी कूद जाएंगे ये देखे बिना कि लोन लेना एक ऐसा कुचक्र है जिससे कॉरपोरेट चाहता नहीं कि आप निकल पाएं। बराक ओबामा राष्ट्रपति बनने से आठ साल पहले तक लोन चुका रहे थे पढ़ाई का। ट्रंप को आप भले ही नापसंद करें। ट्रंप ने एक बात सही बोली कोरोना के समय कि हार्वर्ड जैसे प्राइवेट संस्थान जिनके पास करोड़ों का फंड है वो सरकारी अनुदान के लिए आवेदन क्यों कर रहे हैं।
झोल नंबर तीन
अमेरिका का उदाहरण देने से पहले लोग भूल जाते हैं कि जो नामी गिरामी यूनिवर्सिटियां हैं (कुछ अपवाद को छोड़कर) सब प्राइवेट यूनिवर्सिटियां हैं। प्राइवेट में यही रहेगा हमेशा। शिक्षा का निजीकरण ताकि गरीब आदमी पढ़ ही न पाए। शिक्षा से सरकारी मदद हटाने की पैरवी करने वाले असल में ये चाहते हैं कि उन्होंने सस्ती शिक्षा ले ली और ये सस्ती शिक्षा बाकी गरीब लोग न ले पाएं। वो उनकी तरह आगे न बढ़ पाएं। वो चाहते हैं कि उनके बच्चे ही पढ़ें क्योंकि वो लोन ले सकते हैं। बाकी गरीब लोग न पढ़ें। वो उनके घरों में काम करें। उनके ड्राइवर बनें और उनके बैग ढोते रहें। दोगलापन ये है।
झोल नंबर चार
प्राइवेटाइजेशन की दिक्कत क्या है। ये जाकर देखिए भारत की तीन बड़ी यूनिवर्सिटियों में शिव नादर, जिंदल और अशोका। ये तीनों यूनिवर्सियां बड़े बड़े बिजनेसमैन चलाते हैं। जहां ग्रैजुएशन की फीस है सोलह सत्रह लाख रूपए। बदले में वो कहेंगे कि हम आपको छह महीने अमेरिका में मौका देंगे टैलेंटेड लड़के को। मतलब क्लास से एक बंदे को। क्लास में बीस लोगों से सोलह सोलह लाख रूपए लेकर एक बंदे को छह महीने के लिए अमेरिका भेजना और उसके आधार पर और बीस लोगों को आकर्षित कर लेना। आम भाषा में इसे कारपोरेट द्वारा मूर्ख बनाना कहा जाता है।
तो करें क्या
करें कुछ नहीं। करें ये कि सरकारी यूनिवर्सिटियों में पढ़ाई हो। इसके प्रयास किए जाएं। वहां रिसर्च अच्छी हो इसके लिए दबाव बनाया जाए। पढ़ाई अच्छी हो विश्व स्तरीय इसके प्रयास किए जाएं। यूनिवर्सिटियों को राइट और लेफ्ट की बाइनरी से निकाला जाए और नई सोच की तरफ ले जाया जाए।
(जे. सुशील एक स्वतंत्र शोधार्थी हैं। जेएनयू से पढ़ाई और फिर पत्रकारिता में एक लंबा अनुभव बीबीसी हिन्दी के साथ। वर्तमान में ऑर्टोलाग की मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं। आप ‘मी’ के साथ कला को लेकर कई सारी सीरीज़ कर चुके हैं। ऑर्टोलाग के यूट्यूब चैनल पर कला की इस यात्रा से रूबरू हो सकते हैं। एजुकेशन मिरर के लिए अपनी स्टोरी भेजें Whatsapp: 9076578600 पर, Email: educationmirrors@gmail.com पर।)
सरकार शिक्षा के निजीकरण की तैयारी तो लगता है पहले से ही कर रही है तभी तो इतने निजी स्कूल खोल दिए है ।अब बोलते है कि सरकारी स्कूल में बच्चे कम हुए तो निजी हाथो में सौंप देगे ।छोटे-छोटे गाँव में 1-1किलोमीटर पर निजी स्कूल खुल गए है ।इन निजी स्कूल वालो को भी अपने अस्तित्व बचाने के लिए 3-3 साल बिना फीस लिए पढ़ा रहे है लेकिन उन फीस ना भर सकने वाले बच्ची की दशा उन स्कूलों में शायद ही किसी से छुपी होगी ।लोन लेकर पढ़ो ,जो इंसान दो वक़्त का खाना ठीक से जुटा पा रहा वो लोन लेगा ।मान लो अपने बच्चे के लिए वो जैसे-तैसे इसकी व्यवस्था करने का विचार बनाता है तो लोन की प्रक्रिया सुनकर ही भाग खड़ा होता है ।सुनीलजी की बात कही ना कहीं सही प्रतीत होती है कि शिक्षा के निजीकरण का उद्देश्य मजदूर वर्ग तैयार करना है ,गरीब गरीब ही रहे वर्ना हमारे यहाँ काम कौन करेगा ? शिक्षा जैसी जरुरी चीज के लिए ऐसे विचार है जो किसी देश के विकास का आधार होती है तो प्रणाम है उन सभी शिक्षाविदों को जो ऐसा करने की सोच रहे है 😜😜 शायद ऐसी सोच के कारण हमारा देश कहीं ना कहीं पिछड़ जाता है ।
भारत में शिक्षा का निजीकरण होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा क्योंकि भारत की आर्थिक असमानता के कारण कमजोर वर्ग शिक्षा से वंचित रह जाएगा जो कि न्यायोचित नहीं होगा भारत में आर्थिक असमानता होने के कारण शिक्षा का निजीकरण कभी भी नहीं होना चाहिए
भारत जैसे देश मे ये संभव नही है।।
इसमें समस्याएं बहुत है।।
Jaha education me privatisation aa jayega sirf bade varg ke bacche hi shiksha grahan karne yogya rahege.. yahi sarkar ki planning hai…
कटु सत्य लिखा आपने ।
👌🙏🙏
शिक्षा का निजीकरण मतलब हमारे ज्ञान ,विज्ञान ,समाज का निजीकरण करना होगा । उसके साथ ही गरीबों के साथ ये अन्याय हैं । सरकार की नीतियों में प्राथमिकता में शिक्षा और स्वास्थ्य की होनी चाहिए । इनका निजीकरण देश के सर्वागींण विकास में बहुत बड़ा मूर्खतापूर्ण कदम हैं । निजीकरण से मोटे पूंजीपतियों का ही भला होगा । आम जनता इसमें दम तोड़ती रहेगी।