आरव की डायरीः मेरी नज़र में दिल्ली का अक्षरधाम मंदिर
डायरी के यह पन्ने इस मायने में बेहद ख़ास हैं क्योंकि इसे चौथी कक्षा में पढ़ने वाले आरव गजेंद्र राउत ने लिखा है। वे एजुकेशन मिरर के सबसे नन्हे लेखक हैं। उनकी दो डायरी जब प्रकाशित हुई थीं, तब वे दूसरी कक्षा में ही पढ़ रहे थे। आरव हिन्दी के साथ-साथ मराठी भाषा में भी लिखते हैं। आरव को किताबें पढ़ने और नये-नये विचारों पर काम करने में काफी आनंद आता है।
26 अगस्त 2018 को सुबह मैं जल्दी उठा तब तक मेरे पापा, दादी और मम्मी उठ गए थे। मैंने ब्रश किया फिर सीधे कार्टून देखने लगा। मेरे पापा ने दादी को बोला की तुमने अक्षरधाम मंदिर देखा है क्या? मेरी दादी ने नहीं बोला। तो ऐसे हुई अक्षरधाम मंदिर जाने की शुरुवात। सबने फटाफट नहा लिया, पर मैंने थोड़ा सा लेट नहाया क्योंकि मैं कार्टून देख रहा था। मेरे पापा ने जल्दी से कैब बुक की और पांच मिनट में कैब आ गयी। क्योंकि सबने पहले से तैयारियाँ कर ली थी तो हम कैब आते ही अक्षरधाम जाने के लिए निकल पड़े। सभी कैब में बैठ गए। मेरे पापा, मैं और ड्राइवर आगे बैठे थे बाकी सब पीछे। कैब चलने लगी।
ड्राइवर की सीट के दाईं तरफ पल्स की चॉकलेट रखी हुई थी और मेरा वो चॉकलेट खाने का बहुत मन कर रहा था। पर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी क्योंकि वह ड्राइवर थे बड़े गुस्से वाले। यह सोचते-सोचते मेरा ध्यान भटक गया और मैं दूसरी तरफ देखने लगा चॉकलेट की तरफ नहीं। जब मै सोच रहा था तो मेरा ध्यान खिड़की पर था, जब मेरा ध्यान वहाँ से हटा और मैंने चॉकलेट की तरफ देखा तब वहाँ पर चॉकलेट नहीं थी। मैंने सोचा ड्राइवर ने ही वह चॉकलेट खुद ही खा ली होगी।
वहाँ पर ही कौवे क्यों बैठते हैं?
मेरा ध्यान अब खिड़की की तरफ था तब मुझे याद आया कि जब मै नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) की लाइब्रेरी में गया था हम उसी रास्ते से गुजरे थे। सड़क के किनारे पर बहुत सारे कौए एक साथ बैठे थे तब मेरे पापा ने पूछा कि वहाँ पर ही कौवे क्यों बैठे है? तुरंत जवाब नही मिलने के कारन मेरे पापा बोले, याद है मैंने एनबीटी में जाते वक्त तुम्हें बताया था की वहाँ पर ही कौवे क्यों बैठते हैं? लगता है तुम भूल भी गए हो ! मैंने बताया मैं भुला नहीं हूँ, बल्कि याद कर रहा हूँ। मैंने कहा की वहाँ पर शमशान भूमि है इसलिए वहाँ पर कौवे बैठते है, क्योंकि कौए ओमनीवर्स होते है, ओमनीवर्स का मतलब जो प्राणी शाकाहारी और मांसाहारी दोनों होते है और शमशान भूमि का मतलब होता है की जो मर जाता है उन्हें वहा पर जलाया या दफ़न किया जाता है और जो उनकी हड्डियाँ बचती है कौए उनको चाटते है। रास्ते में हम आगे बढ़ गए और मुझे अक्षरधाम का एंट्रेंस गेट नजर आने लगा, कुछ ही देर में हम वहाँ पर पहुँच गए।
मुझे कुछ बदला-बदला सा लग रहा था मुझे शक हुआ की ये अंदर जाने का रास्ता नहीं है। और मेरा शक सही भी रहा क्योंकि वह वापस जाने का रास्ता था। मुझे उन ईंटो की डिज़ाइन से पता चला जो लाल और पीली दिखती हैं इसलिए मुझे याद रहा की वह एक्ज़िट गेट है। बाद में हम एंट्री गेट के पास पहुँच गए। एंट्री गेट पर सबसे पहले उन्होंने हमारी बैग ली और एक मशीन से उसे चेक किया मुझे उस मशीन का नाम नहीं पता था, पता नहीं वो कौन सी मशीन है। अच्छा हुआ हमारे पास ज्यादा सामान नहीं था, बस मेरे मम्मी की बैग और पापा की बैग ही थी। नहीं तो हमें एंट्री गेट पे ही बहुत देर होती।
मुझे नहीं पता था कि अक्षरधाम में इतनी चेकिंग होती है
आगे जाकर एकबार फिरसे चेकिंग हुई ,अब इस बार तो बैग ही लेली, वो भी फोन और वालेट के साथ साथ। मुझे तो पता ही नहीं था की अक्षरधाम में इतनी चेकिंग होती है!

तस्वीरः अक्षरधाम मंदिर, दिल्ली (साभारः akshardham.com)
आगे जाकर फिर से चेकिंग! अब तो ट्रे में बेल्ट और घडी दोनों उतार कर देनी थी, वहाँ पर बहुत सारी ट्रे थी। वहाँ के गार्ड ट्रे को स्कैनिंग मशीन में डालकर चेक करते है की उसमे बन्दुक, बॉम्ब या गोली तो नहीं है , और कहीं लोग घड़ी में बारूद छिपाकर तो नहीं लाए है, पर इनमें से कोई भी चीज हमारे पास तो नहीं थी। मेरी मम्मी और दादी दूसरे लाइन से बाहर आ भी गई थी, बस हमें थोड़ी देर लगी। हम आगे आए और आगे आते ही एक शौचालाय दिखा तो मैं शौच करने चला गया अब मै अच्छा महसूस कर रहा था। हम आगे बढ़े, मुझे एक पानी का कुंड दिखा जिसमे स्वामी नारायण जी के पैरो के निशान थे जिसपर चारो सुराहियों में से पानी गिरता है वह ऐसा दिखता है। लोग उसमे सिक्के डाल रहे थे तो हमने भी एक दो रुपये डाल दिए। पहले मेरे दादी ने फिर पापा, फिर मम्मी और आखिर में मैंने।
आगे जाने के बाद मेरे पापा ने तीन टिकट ली एक पचास मिनट की एक पैतालीस मिनट की और एक पंद्रह मिनट की जिसमे संस्कृति दर्शन, नीलकंठ का शो एवं सहजानंद दर्शन शामिल है। सबसे पहले हम सहजानंद दर्शन वाला शो देखने चले गए। मैं वाशरूम गया जब मै बाहर आया तो देखा की सारे लोग अंदर जा चुके थे पहला गेट बंद हो चूका था। अब दूसरा गेट खुल गया तो हम टिकट देकर अंदर चले गए। हमें पहली सीट मिली। पहला सीन बहुत बोरिंग था उसमे एक मूर्ती थी वह अच्छी दिखती थी वह पीछे से पत्थर दिखती है और आगे से इंसान के आकर का शिल्प। फिर हम आगे बढ़े वहा पर एक सीन था जिसमे तीन रोबोट्स थे एक छोटा बच्चा और दो मछुआरे। पहला मछुआरा बोला कि अरे देखो मेरे जाल में कितनी मछलिया फंसी है। दूसरा बोला,हमारी तो टोकरी भर गयी है। उस छोटे बच्चे ने कहा की अगर आपको जीने का हक़ है तो उन मछलियों को भी है। उसके बाद की बातें मुझे याद नहीं हैं क्योंकि वह बहुत बड़ा था।
सबसे आकर्षक लगा ‘वाटर शो’
यह शो ख़त्म होने के बाद हमने ऐसी मुर्तिया देखीं कि बहुत सारे लोग एक सूटकेस के गठ्ठे को खींच रहे थे। आगे हमने देखा की एक बच्चा पढ़ाई कर रहा था उसके पापा अखबार पढ़ रहे थे और उसकी मम्मी अपने बच्चे को दूध पीला रही थी फिर वह रास्ता ख़तम हो गया। आगे ही बोटिंग का एंट्री गेट दिखा पर हम थोड़ा सा लेट हो गए। वहाँ पर लाइन बहुत कम थी क्योंकि वहाँ के गार्ड ने पहले ही बहुत सारे लोग भेज दिए थे। हम लोग बेंच पर बैठ गए। वहाँ के गार्ड हमें छोटे-छोटे समूह में करके भेज रहे थे, तो हम अंदर गए फिर वहाँ भी लाइन थी। हम जब बाहर के लाइन में थे तब मैंने सैंडविच और एक पेस्ट्री का पीस खाया , फिर हम अंदर गए वहाँ पर नाव आ रही थीं, वहाँ के गार्ड ने पूछा कि आप लोग कितने हो? तो हमने बोला की चार। हमने चार बोला तो उन्होंने हमारी बात सुनकर हमें नाव मे बैठा दिया।

तस्वीरः अक्षरधाम मंदिर, दिल्ली, वाटर शो (साभारः akshardham.com)
पर मुझे पता नहीं था की वह नाव पानी में नहीं चलेगी बल्कि मशीन पर चलेगी जो ऐसी दिखती है पर यह तो बहुत-बहुत गलत किया है इन्होंने पहले बता तो देते की वह नाव मशीन पर चलेगी हमने बहुत बड़ा धोखा लिया। फिर हम नाव में बैठ गए तो मैंने देखा की वहाँ बहुत सारे प्राचीन काल के शस्त्र और कई आविष्कार थे जो पुराने समय के लोगों ने बनाये थे। वहाँ पर एक सबमरिन भी थी और एक हवाई जहाज भी। हमने नाव पर से पानी को और मशीन को हाथ लगाया बहुत अच्छा लग रहा था फिर कुछ सफ़ेद-सफ़ेद सा महल दिखा वह महाराष्ट्र में है। फिर मैंने देखा की वहा पर द्रोणाचार्य, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव थे। द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से पूछा कि तुम्हे क्या दिख रहा है? युधिष्ठिर बोले की मुझे आप दिख रहे हो। फिर भीम से भी वही प्रश्न पूछा, तो भीम से बोले कि मुझे पेड़ दिख रहा है, अर्जुन से भी उन्होंने वही सवाल पूछा, अर्जुन बोला मुझे उस पेड़ की डाल पर पक्षी की आँख दिख रही है, तो द्रोणचार्य ने अर्जुन को तीर चलाने की इजाज़त दी। वह तीर सीधे पक्षी के आँख पर लगी। फिर हमने देखा की छोटे बच्चे हमारे पृथ्वी को हार चढ़ा रहे हैं। हमारा नाव का सफर ख़तम हो गया और हम एग्जिट गेट से बाहर निकल गए।
फिर हम तीसरे शो के लिए चले गए अच्छा हुआ कि वहाँ पर भीड़ नहीं थी और जाते-जाते मैंने दो सैंडविच एक पेस्ट्री एक वेजीटेरियन पिज़्ज़ा खाया। हमने दूसरे फ्लोर पर एक बड़ा मस्त शो देखा वह शो नीलकंठ का था। नीलकंठ, अयोध्या के पास के एक छोटे से गांव में रहते थे। जब उन्होंने घर छोड़ने का फैसला किया तब वे सिर्फ 11 वर्ष के थे। फिर वह सरयू नदी में कूद गए। नदी के पानी में ऊपर-नीचे ऊपर-नीचे ऐसे करते-करते एक दिन हो गया और वह एक टापू पर पहुंच गए। आगे का मैं नहीं लिख सकता क्योंकि वह बहुत किस्सा बड़ा है। उसके बाद हमने मुख्य मंदिर में प्रवेश किया ओर चप्पल उतारने के जगह पर चप्पल उतारे और उन्होंने तो एक चाबी दे दी। फिर हम स्वामी नारायण जी के दर्शन करके नीचे उतर गए।
मयूर गार्डन में दिखे नेशनल लीडर्स

तस्वीरः अक्षरधाम मंदिर, भारत उपवन (साभारः akshardham.com)
मंदिर के अंदर जाने के पहले मैंने और मेरी मम्मी ने वॉटर शो की टिकिट निकाल ली थी। मंदिर के बाद हम मयूर गार्डन में गए। वहाँ पर मैंने बहुत सारे नेशनल लीडर के पुतले देखे जैसे की झाँसी की रानी, महात्मा गाँधी, लोकमान्य तिलक, जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस थे और दूसरे भी लीडर थे जिनका मुझे अभी याद नहीं। मुझे वहा पर डॉ बाबासाहेब आंबेडकर का पुतला नहीं दिखा, पता नहीं मुझे कि अक्षरधाम में उनका पुतला क्यों नहीं रखा? लेकिन मुझे यह पता है की वो भी एक नेशनल लीडर हैं।
दूसरी तरफ वॉटर शो की लाइन लग गई पर हम उस लाइन में नहीं लगे क्योकि वह लाइन टिकिट खरीदने के लिए लगी थी, और हमारे पास पहले से ही टिकिट थी। आगे जाने के बाद हम राइट की तरफ मुड़े, पर वहा से अच्छा नहीं दिख रहा था इसलिए मैंने कहा हम लेफ्ट साइड को चलते है क्योंकि वहां से अच्छा दिखता है। तो हम लेफ्ट साइड में गए और हम नीलकंठ के मूर्ति के साइड में बैठ गए। वॉटर शो शुरू हो गया पहले हमें पानी के करतब दिखाए जैसे पानी को कमल के रूप में उछालना और उसमे लाइट डालना ऐसे।
कमल का फूल और बच्चे वाली कहानी
फिर छोटे छोटे बच्चे सामने आये उन्होंने वहाँ पर बोला, वाह! ये तो बहुत अच्छी जगह है। आज हम यही खेलेंगे फिर उन्होंने कमल के साथ खेलना शुरू कर दिया फिर इंद्र देव आए और बोले, ये मेरी जगह है पर वो बच्चे वहाँ से नहीं गए तो इंद्र देव बोले की , अगर तुम यहाँ से नहीं हटोगे तो मै इस फूल को पानी में बहा दूँगा तभी भी वह बच्चे नहीं हटे और बोलते रहे हमारा फूल नहीं बहेगा, हमारा फूल नहीं बहेगा फिर इंद्र देव ने ज़ोरदार बारिश की पर उनका फूल नहीं बहा। फिर इंद्र देव ने वह बात अग्नि देव को बतायी कि ये बच्चे हमारी जगह से नहीं हट रहे है तो अग्नि देव वहा पर आ गए और बोले की अगर तुम यहाँ से नहीं हटे तो मै इस फूल को जलाकर राख कर दूँगा पर वह बच्चे बोल रहे थे की हमारा फूल नहीं जलेगा, हमारा फूल नहीं जलेगा।

तस्वीरः अक्षरधाम मंदिर, वॉटर शो (साभारः akshardham.com)
तो उन्होंने आग की वर्षा कर दी पर उनका फूल नहीं जला। फिर अग्नि देव ने पवन देव को बताया की ये बच्चे हमारी जगह से नहीं हट रहे है। फिर पवन देव उस जगह पर आए और बोले की अगर तुम यहाँ से नहीं हटोगे तो मै इस फूल को हवा से उडा दूंगा पर वह बच्चे बोल रहे थे की हमारा फूल नहीं उड़ेगा, हमारा फूल नहीं उड़ेगा फिर पवन देव ने हवा का जोरदार झोंका दिया पर उनका फूल नहीं उड़ा। फिर वह तीनों विष्णु देव के पास गए और बोले की ये बच्चे हमारी जगह पर खेल रहे है इनका कुछ कीजिए , उन्होंने बोला की वह जगह सबके लिए है, ये बात सुनकर वे तीनों उन बच्चो से माफ़ी मांगने गए और शो ख़तम हो गया।
आपके मन में एक सवाल आ रहा होगा कि उन बच्चों और कमल की रक्षा किसने की? उनकी रक्षा विष्णु देव ने की। शो ख़तम होने के बाद मेरी दादी ने मुझे एक जूस दिलाया। फिर हम थोड़ा बैठ गए। उसके बाद हम सीधे गए जहाँ पर मेन मंदिर है। निकलते वक्त वहाँ पर मुझे एक फूल दिखा उस फूल के नीचे बहुत सारे झूले दिखे पर उसका गेट बंद था। वहाँ पर एक दुकान थी वहा नीलकंठ की सारी चीजें थी। पर हमने कुछ नहीं लिया फिर क्या करना था, बाहर ही तो जाना था ना तो मुझे बाहर जाते वक्त शौच आयी। फिर हम वहाँ गये जहाँ पर हमें बैग वापस देते है। फिर मेरे पापा ने कैब बुक करवायी और मै कैब में सो गया और जब हम घर के पास पहुंचे तब मेरे पापा ने मुझे उठाया और हम घर पहुँच गए।
(डायरी के यह पन्ने इस मायने में बेहद ख़ास हैं क्योंकि इसे चौथी कक्षा में पढ़ने वाले आरव गजेंद्र राउत ने लिखा है। वे एजुकेशन मिरर के सबसे नन्हे लेखक हैं। आपको यह डायरी कैसी लगी टिप्पणी लिखकर जरूर बताएं। एजुकेशन मिरर के लिए अपनी स्टोरी भेजें Whatsapp: 9076578600 पर, Email: educationmirrors@gmail.com पर।)
Nice to read your experience of akshardham temple. You wrote every thing in detail. Keep it up and all the best for future writing’s
Farch chan aarav. Khup chan vatale vachun.
khup chan lihil asach lihit ja likhan vachn krne sodu nko keep it up and best of luck my little cute bro
Well Done Aarav👍🏻Keep it up.
Bahot bdhiya aarav…aise hi apne anubhav share krte raho…all the best….
Dear aarav, good to read your detailed experience of अक्षरधाम temple. Keep it up
दिल्ली में स्थित स्वामीनारायण अक्षरधाम जो 10,000 वर्ष पुरानी भारतीय संस्कृति के प्रतीक को बहुत विस्मयकारी, सुंदर, बुद्धिमत्तापूर्ण और सुखद रूप से प्रस्तुत करता है। यह भारतीय शिल्पकला, परंपराओं और प्राचीन आध्यात्मिक संदेशों के तत्वों को शानदार ढंग से दिखाता है ।
आरव वैसे ही आपने अपने अनुभव को बढें ही विस्तार से वर्णन किया है। ऐसे ही अपने अनुभव लिखते रहो। all the best…
Bahut umda Aarav. Keep writing.
Bahut umda Aarav…
एवढ्या साऱ्या बारीक प्रसंग लक्षात ठेवणे जरा अवघडच आहे पण थोडा डोक्याला ताण दिल्यावर आठवू शकते प्रयत्न करीत राहा असेच लिहिण्याची सवय असू दे शुभेच्छा आरव
Pratyek veli kshe tumhi exit gate jvlch pohchta…jha tak muze yad hai jab tumne prani sangrahalay k bare me likha tha tb bhi tum exit gate pr hi pohche the…let it be pn chan varnan kely..keep going..all the best
Aarav tumhare anubhav padhake meri akshardham visit ki Yade taja hui hai.Good keep it up..
कलम के इस नन्हे सिपाही को वन्दन , अभिनन्दन ,,बधाई ।
Nice arava keep it up
Aarav beta bohot badhiya…aap bohot accha likhate ho .ho na ho aap ek din apki kitab prakashit karoge yehi shubhkamnaye…
Khup chan lihil tuza anubhv chan aahe akshrdham cha asach lihit raha best of luck for your future 😄😄😉
Very Good 👌👌👌
Keep writing like this
कलम के नन्हें जादूगर
Very good 👌👌👌
Keep writing like this
कलम के नन्हें जादूगर
Aarav you are so intelligent and I pray to God you achieve the pinacle of success in your life.
Good to read your 7th diary in series. It’s wonderful in the sense that whole picture come in front of the eyes. Keep writing.. Looking forward to see another beautiful write up.