‘बच्चों ने एक-दूसरे को उनके बिगड़े नामों से बुलाना छोड़ दिया’ – शिरीष खरे

शिक्षिका सोनाली बच्चों के साथ क्राफ्ट पर काम करते हुए।
स्कूलों में कई बार कुछ बच्चे एक-दूसरे को उनके असली नामों से बुलाने की बजाय बिगड़े नामों से बुलाते हैं. कई बार कुछ बच्चे दूसरे बच्चों को गलत नामों से चिढ़ाते भी हैं. धीरे-धीरे बिगड़े या गलत नाम ही कुछ बच्चों की पहचान बन जाते हैं. फिर अक्सर लोग उन्हें उनके बिगड़े या गलत नामों से ही जानते हैं. इस स्थिति को बदलने के लिए एक स्कूल की शिक्षिका मूल्यवर्धन को औजार की तरह इस्तेमाल कर रही हैं. सुखद बात यह है कि बीते डेढ़ वर्ष में वे अपने उद्देश्य में सफल भी हो रही हैं.
यह शिक्षिका हैं सोनाली तरोळे. यह जिला मुख्यालय बुलढ़ाणा से लगभग ढेड़ सौ किलोमीटर दूर संग्रामपुर तहसील के अंतर्गत जिला परिषद मराठी प्राथमिक स्कूल बलोदा में पदस्थ हैं. लगभग ढाई हजार की जनसंख्या वाले बलोदा गांव में अधिकतर छोटे किसान और मजदूर परिवार हैं. यहां के स्कूल में कुल पांच शिक्षक-शिक्षिकाओं सहित 145 बच्चे हैं. सितंबर 2018 से यहां नियमित रूप से मूल्यवर्धन के सत्र आयोजित किए जा रहे हैं.
मूल्यवर्धन से क्या हासिल
सोनाली तरोळे बताती हैं कि मूल्यवर्धन सत्रों के पहले इस स्कूल के कुछ बच्चे मजे-मजे में एक-दूसरे को गलत नामों से पुकारते थे. जैसे प्रकाश ओम को ओम्या तो ओम प्रकाश को पदया बुलाते थे.
पर, मूल्यवर्धन की कुछ गतिविधियों के माध्यम से बताया गया है कि आपस में एक-दूसरों को चिढ़ाने के क्या बुरे नतीजे हासिल होते हैं.
ऐसे ही मूल्यवर्धन की कुछ गतिविधियों के कारण बच्चे अब एक-दूसरे का आदर कर रहे हैं. इसके अलावा, वे अपने से छोटी उम्र के बच्चों को भी आदर दे रहे हैं.
बच्चों ने बनाया यह नियम
मूल्यवर्धन बच्चों को परस्पर एक-दूसरे की सहभागिता से उनकी अपनी कक्षा और स्कूल के लिए नियम बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है. सोनाली तरोळे बताती हैं कि जुलाई 2018 में बच्चों ने मूल्यवर्धन के सत्रों के दौरान पहले अपनी-अपनी कक्षा के लिए यह नियम बनाया कि वे हर एक बच्चे को असली नाम से बुलाएंगे.
इस नियम का परिणाम यह हुआ कि धीरे-धीरे बच्चे आपस में एक-दूसरे के प्रति सम्मान जताने लगे. फिर, अगस्त 2018 में आयोजित मूल्यवर्धन के संयुक्त सत्र में सभी कक्षाओं के बच्चों ने मिलकर स्कूल के लिए भी यही नियम बनाया.
नियम का पालन कराना थी चुनौती
सोनाली तरोळे बताती हैं कि सिर्फ नियम बनाना ही काफी नहीं था. असली चुनौती थी कि सभी बच्चे उनके द्वारा बनाए गए नियम का अच्छी तरह पालन भी करें. वे कहती हैं, “कुछ बच्चे कहने भर से नहीं मान रहे थे. शायद उनके अपने सामाजिक परिवेश का प्रभाव उनके व्यवहार को बदलने में सबसे बड़ी बाधा बन रहा था. तब हमने मूल्यवर्धन के सत्रों के दौरान आयोजित लगभग सभी गतिविधियों में बच्चों को इस बात के लिए बढ़ावा दिया कि वे एक-दूसरे को बार-बार उनके सही नाम से ही बुलाएं.”
मूल्यवर्धन की कुछ गतिविधियों के कारण बच्चे एक-दूसरे को अच्छी तरह समझने लगे हैं. इसी दौरान शिक्षिका सोनाली तरोळे ने एक और प्रयोग किया. उन्होंने मूल्यवर्धन के सत्रों में सहयोगी खेलों के दौरान बच्चों से पांच-पांच मिनट के कुछ खेल कराए. इनमें हर बच्चे के नाम का अर्थ बताने जैसी पहल शामिल थी.
बच्चे बताते हैं कि मूल्यवर्धन की कुछ गतिविधियों में उन्होंने जाना कि कोई उन्हें गलत तरह से संबोधित करें तो उन्हें बुरा लगेगा. कक्षा चौथी की वेदिका थिरोडकर बताती है, “हमने जाना कि किसी को मोटू या लंबू नहीं बोलना चाहिए.”
(लेखक परिचयः शिरीष खरे ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से वर्ष 2002 में जनसंचार में अध्ययन किया। उन्होंने ‘उम्मीद की पाठशाला’ नामक एक किताब का लेखन भी किया है। अबतक 18 वर्ष की पत्रकारिता का लंबा अनुभव और इस दौरान पूरी तरह गांवों पर केंद्रित प्रिंट मीडिया की मुख्यधारा के भीतर-बाहर रहते हुए ग्रासरुट की एक हजार से अधिक स्टोरी-रिपोर्ट लिखी हैं। विभिन्न वेबसाइटों पर डेढ़ सौ अधिक वेब स्टोरी-रिपोर्ट और प्रतिष्ठित साहित्यकि पत्र-पत्रिकाओं में सात राज्यों से दुर्गम स्थानों के यात्रा अनुभव प्रकाशित। आप मूलतः मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मदनपुर के रहने वाले हैं।)
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Mjak me to ye naam nikalna Accha lgta h kintu bachcho ki psychology pr Isla Bura asr pdta h kyunki prarambhik avastha me Jo sanskar BN jate h jiwan k aakhiri hisso tk inka parinam dekhne KO milta h…shonali jaisi shikshikaon ki kotishah dhanybad…Jo bachcho me acchi aadto Ka sanchar Keri h
बहुत ही प्रेरणादायी लेख हम भी इस तरह की मूल्यवर्धनगतिविधियाँ अपने स्कूल में संचालित कर सकते हैं। 👍🏻
बहुत खूब , प्रेरणा दायक लेख सर ।
🙏🙏🙏
बच्चों को विद्यालय में शिक्षकों की ऐसी गतिविधियों की हमारे सभी विद्यालयों में आयोजित करवाना चाहिए । जिससे बच्चों में बचपन मे पनपने वाली हीन भावनाओं को खत्म किया जा सके। नाम उनमें से एक हैं । बिगड़े नाम से सम्बोधित करना या मजाकिया नाम रखे जाने पर बच्चे के व्यवहार में बहुत बदलाव आता हैं ।