रियल लाइफ़ स्टोरीः एक शिक्षिका ने परिवार में हुए कोरोना संक्रमण को मात देने के लिए क्या किया?

दुनिया समेत भारत के विभिन्न राज्यों में कोरोना वायरस की मौजूदगी और इसके संक्रमण का बना हुआ ख़तरा एक ऐसी सच्चाई है, जिसे एक व्यक्ति और समाज के रूप स्वीकार करना ही होगा। इसके बाद इससे बचाव के उपाय अपनाने होंगे। कोरोना वायरस के संक्रमण से बुजुर्गों समेत हर आयु वर्ग के लोग ठीक हो रहे हैं, जिनको समय से इलाज और उपचार मिल रहा है।

इस वास्तविकता और मनोवैज्ञानिक तथ्य को अपनी आँखों के सामने रखने की जरूरत है ताकि हम इसके डर का सामना करने के लिए खुद को शारीरिक और मानसिक तौर पर तैयार कर सकें। सोशल मीडिया पर तैर रही डराने वाली ख़बरों से बचने की जरूरत है ताकि आप अपनी पूरी क्षमता के साथ इस मुश्किल स्थिति का सामना कर सकें।

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इन सब उपायों के बावजूद भी अगर आपके परिवार में किसी को कोरोना का संक्रमण हो जाए तो आप क्या करेंगे? इसी सवाल से सामना करती है दिल्ली के सरकारी स्कूल में गणित विषय पढ़ाने वाली शिक्षिका नीता बत्रा जी की रियल लाइफ़ स्टोरी। आगे विस्तार से पढ़िए पूरी स्थिति का बयान नीता बत्रा जी के शब्दों में।

नीता बत्रा बताती हैं कि कैसे एक दिन उनकी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल गई और लॉकडाउन के दौरान जिन शैक्षिक चीज़ों को वे सीख रही थीं, वे उनके किसी काम की नहीं थी। उन्होंने खुद का ध्यान मेडिकल साइंस और मनोविज्ञान की उन बारीकियों को सीखने और समाज की उन कड़वी सच्चाइयों का सामना करने के लिए खुद को तैयार करने पर केंद्रित किया जो उनके सामने नये रूप में खड़ीं थी। इस स्टोरी को आप शुरू से आखिर तक पढ़िए और सोचिए कि वास्तविक स्थिति का सामना करने के लिए जिस तैयारी की जरूरत है, उससे जुड़ी चर्चा और ख़बरें मीडिया, सोशल मीडिया और वेबिनार से क्यों गायब हैं, जबकि एक नेशनल हेल्थ इमरजेंसी वाली स्थिति हम सबके सामने हैं।

दिसंबर 2019 में हम सब लोग आपस में बातचीत कर रहे थे कि चीन के लोग कोरोना नाम के एक वायरस के आतंक से बहुत परेशान हैं। हम सब इस बात से अनजान थे कि यह नया मेहमान एक दिन हम सबकी जिंदगी में भी प्रवेश करेगा और भयंकर आतंक मचा देगा। हमारे प्रधानमंत्री जी ने जब लॉक डाउन की घोषणा की, तभी से हम सब घरों में खुद को बंद करके बैठ गए। हम सब इस तसल्ली के साथ बंद हो गए कि सोशल डिस्टेंसिंग को फॉलो करेंगे तो कोरोना काल से हमारा क्या मतलब और हम सब कोरोना के प्रभाव से बचे रहेंगे।

वेबिनार, ऑनलाइन क्लास और बच्चों के साथ संवाद

लॉकडाउन के दौरान घर में रहते हुए विभिन्न प्रकार के शैक्षणिक मुद्दों पर चर्चा के प्रतिभागी बनते रहे वेबीनार के माध्यम से। इन सभी वेबिनार में शिक्षा जगत के बेहतरीन मुद्दों पर बातचीत होने लगी। गणित अध्यापिका होते हुए मैंने भी लॉकडाउन पीरियड में गणित पढ़ने पढ़ाने को लेकर विभिन्न परिचर्चाओं में प्रस्तुति की तथा प्रतिभागी भी बनी रही। गणित शिक्षण के सभी मुद्दों पर चिंतन जारी रहा। साथ ही साथ बच्चो को भी छोटी-छोटी गतिविधियां भेजी जा रही थी। इनको बहुत ही रुचिकर बनाने का प्रयास किया जाता था। बच्चों से हर तरीके से जुड़े रहने की भावना से पी टी एम का भी आयोजन किया था। व्हाट्सएप ग्रुप पर भी निरंतर बच्चों का हालचाल पूछा जा रहा था। अनिश्चितता के इस दौर में बच्चे कम संसाधनों के बावजूद भी बहुत अच्छा रिस्पांस दे रहे थे।

ऑनलाइन पीटीएम के दौरान जब बच्चों से पूछा गया कि कोरोना काल में आप कैसा अनुभव कर रहे हैं? क्या ऑनलाइन कक्षाएं बंद कर दी जाएं? यहां एक आठवीं कक्षा की छात्रा का जवाब था, “कोरोना काल में, मैं अपने दोस्तों को बहुत मिस कर रही हूं उनकी बहुत याद आ रही है। पर इस कोरोना काल में एक बात जो अच्छी हो रही है वह यह है कि मई जैसे गर्म महीने में जब मुझे पंखे में अपना दिन काटना मुश्किल हो जाता था और आसपास के घरों में कूलर,ए.सी. देखती थी तो मायूसी होती थी पर अब मुझसे आसानी से पंखे में बैठा जा रहा है।

इस बार गर्मी अभी तक इतनी नहीं पड़ी। बस मम्मी दूसरे घरों में काम करने नहीं जा पा रही हैं, तो थोड़ी पैसे की तंगी हो रही है। पापा हंगर रिलीफ सेंटर से खाना तो ले आते हैं पर मकान के किराए का टेंशन है मैडम जी। ऑनलाइन क्लास चलते रहने देना क्योंकि इनसे टाइम कट जाता है। हम कुछ-कुछ नया भी सीखते रहते हैं पर फोन की परेशानी आती है क्योंकि घर में एक ही फोन है और हम तीन भाई-बहन हैं।” इस तरह के जवाब ऑनलाइन बातचीत के दौरान बच्चों से सुनने को मिलते थेI मन भी विचलित होता था बहुत चिंता होती थी बच्चों की।

वह ‘फोन कॉल’ जिसने बढ़ा दी टेंशन

इन सबके बीच अचानक से 18 मई को मेरे घर से फोन आया और पता चला कि मेरे पिताजी को बुखार आ गया है। पहले तो बुखार शब्द सुनते ही सर चकरा गया। फिर मन को तसल्ली दी कि पापा को कोरोना नहीं हो सकता। साधारण बुखार होगा 2-4 दिन में ठीक हो जाएगा। 20 मई को मेरी छोटी बहन को बुखार की खबर आ गई अब मन घबराने लगा और फिर मन को समझाया कि वायरल बुखार होगा क्योंकि अगर कोरोना होता तो मम्मी को भी तो इंफेक्शन होताI पापा का बुखार 99 डिग्री से 101 डिग्री तक ही घूमता रहा पर बहन का बुखार 102 डिग्री पर पहुंच गया और सांस लेने में भी समस्या आने लगी अब हमारे हाथ पांव फूलना शुरू हो गए अब कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए?

इतने सारे वेबिनार जो मैंने इतनी शिद्दत से अटेंड किए थे जिसमें आईआईटी जैसे संस्थानों के वेबिनार भी शामिल थे निरर्थक नजर आ रहे थे। सब वेबीनार में जो भी कुछ सीखा, वह यह नहीं बता पा रहा था कि अब मैं कहां से क्या शुरू करूं? बहन को जल्दी से दिल्ली के एक प्राइवेट अस्पताल में बात करके भर्ती करा दियाI अस्पताल पहुँचने तक उसकी सांस की तकलीफ पूरा जोर पकड़ चुकी थी। उसे जल्दी से रेस्पिरेट्री वार्ड में भर्ती करवा दिया गया और अस्पताल वालों ने कोरोना टेस्ट करवा दिया। मेरे पापा की हालत भी बिगड़ने शुरू हो गई। पापा का कोरोना टेस्ट करवाने की कवायद हमने शुरू कर दी।

जब करोना टेस्ट के लिए लैब में फोन करना शुरू किया तो पता चला इसमें तो बहुत सारी कागजी कार्यवाही करनी होगी। सबसे पहले उन्होंने हमें बताया कि आपको डॉक्टर की प्रिसक्रिप्शन लानी होगी। मैंने उन्हें बताया कि मेरे पापा को 18 मई से बुखार है और आज 23 तारीख आते-आते बुखार कम होने की जगह बढ़ रहा है तो हमारी घबराहट भी बढ़ रही है। अब पापा को भी सांस लेने में परेशानी होने लगी है तो आप टेस्ट कर दें जल्दी से प्लीजI पर उन्होंने कहा कि नहीं डॉक्टर का प्रिसक्रिप्शन तो लाना ही होगा।

कोरोना के टेस्ट से पहले की कागजी क़वायद

हम पापा को अपने निजी वाहन में पूरी सावधानी के साथ अस्पताल लेकर गएI अस्पताल वालों ने उनकी हालत देखकर कैजुअल्टी वार्ड में भेज दिया। हमने उनसे कहा कि आप इनको अस्पताल में भर्ती कर लो पर उन्होंने कहा कि हमारा नॉन कोविड अस्पताल है, तो आपको पहले कोरोनावायरस टेस्ट करवाना होगा। अस्पताल वालों ने टेस्ट लिखकर दे दिया। हमने घर आकर संक्रमण से बचने के सारे उपाय करते हुए, आते ही नहा कर कपड़े गर्म पानी में सर्फ डालकर प्लास्टिक की बाल्टी में डाल दिए, जो मास्क लगाया हुआ था उसे भी फेंक दिया, हाथों के ग्लव्स भी फेंक दिए।

अब लैब में फोन करके कहा कि हमारे पास कोरोना टेस्ट करवाने के लिए जरूरी डॉक्टर की प्रिस्क्रिप्शन आ गई है तो उनके कहने पर डॉक्टर का पर्चा और आधार कार्ड दोनों कागज व्हाट्सएप कर दिए। झटका हमें तब लगा जब लैब वालों ने कहा कि यह प्रिस्क्रिप्शन नहीं माना जाएगा क्योंकि इस पर डॉक्टर की स्टाम्प नही है, इस पर अस्पताल की स्टाम्प लगी हुई है। उनके पर्चे पर डॉक्टर की स्टांप का होना जरूरी था जिसमें डॉक्टर का एमआरसी नंबर होता है। हमें 23 तारीख का पूरा दिन इस एमआरसी नंबर वाली इस स्टाम्प को लगवाने में लग गयाI पापा की बिगडती हालत और स्टाम्प का चक्कर कुछ समझ नहीं आ रहा था, कि यदि कोई अकेला रहता हो तो वह तो टेस्ट भी नहीं करवा पाएगा।

लैब में फिर से फोन लगाया कि हमारे पास डॉक्टर की स्टाम्प वाला परचा आ गया है तो उन्होंने कहा कि ठीक है आधार कार्ड के साथ व्हाट्सएप कर दें सब कागज। 24 घंटे बाद आते हैं हम लोग, लैब वालों ने कहा। मैंने कहा कि पापा की सांस की दिक्कत भी बढ़ रही है तो आप परंतु आ जाएँ पर वे लोग 24 तारीख को ही आए और टेस्ट के लिए सैंपल ले गए।

निजी अस्पतालों की मनमानी और सरकारी अस्पताल से उम्मीद

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कोविड-19 के कारण भारत के विभिन्न हिस्सों में मार्च के तीसरे सप्ताह से स्कूल और कॉलेज बंद हैं।

अब पता चला की रिपोर्ट आने में 24-48 घंटे का समय लगता है। बहुत गिड़गिड़ाने के बाद हमें 25 मई 2020 की सुबह रिपोर्ट मिली। जैसी कि हमें आशंका थी रिपोर्ट में कोरोना संक्रमण की पुष्टि की गई। टेस्ट कराने की जंग जीतने के बाद अब अगली जंग थी अस्पताल में भर्ती करवाना। पापा एक सेमी गवर्नमेंट संस्थान से रिटायर्ड कर्मचारी हैं। प्राइवेट अस्पतालों ने पैनल पर इलाज करने से इंकार कर दिया। कोई अस्पताल पांच लाख। कोई आठ लाख तथा कोई दस लाख की मांग कर रहा था। इसके साथ ही कतार में भी लगने को कह रहे थे।

प्राइवेट अस्पतालों की इस मनमर्जी के बाद दिल्ली के सरकारी अस्पताल की तरफ मुँह किया और खूब मेहनत करने के बाद अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। अब अस्पताल में यदि आप कोविड-19 की रिपोर्ट के साथ जा रहे हैं तो आपको लक्षणों के आधार पर दाखिला दिया जाता है यदि आपको ऑक्सीजन या वेंटीलेटर की आवश्यकता नहीं है तो आपको क्वॉरेंटाइन सेंटर भेजा जाता है और यदि लक्षण और भी हल्के हैं तो अस्पताल वाले आपको अपने घर पर ही क्वारंटाइन होने की सलाह देते हैं।

घर पर क्वारंटाइन होने के लिए बीमार व्यक्ति के लिए एक कमरा तथा एक अलग से टॉयलेट होना आवश्यक है। यदि आपके पास इन सुविधाओं का अभाव है तो अच्छा है कि आप क्वारंटाइन सेंटर की सुविधा का लाभ उठाएं, घर पर क्वारंटाइन होने का विचार छोड़ दें।

पापा के अस्पताल में भर्ती होने के बाद हर दिन मिली एक नई सीख

अब अस्पताल में मेरे पापा का दाखिला 25 मई को करवा दिया गया। अब एक अलग ही लर्निंग फेज़ की शुरुआत हुई। यदि आप की कंडीशन बहुत ज्यादा खराब है तो आप को आईसीयू या रेस्पिरेशन वार्ड में रखा जाता है। परंतु केवल ऑक्सीजन की ही आवश्यकता है तो सामान्य वार्ड में भी रखा जा सकता है।

मेरे पापा को सामान्य वार्ड में रखा गया। यहाँ उनके साथ 5 मरीज और भी थे। शुरु-शुरु में तो इन्हें बहुत अजीब लगा कि मुझे कहां ले आएI ऐसा लगना स्वाभाविक भी था क्योंकि कोई बहुत ऊंची-ऊंची आवाज़ में खांस रहा था, कोई ऑक्सीजन सप्लाई पर था, किसी को सांस लेने में कठिनाई होने के कारण बेचैनी हो रही थी। जब कोई व्यक्ति जिसे पता हो कि मैं कोरोना का मरीज हूं और उसके आसपास सारे कोरोना के मरीज हैं तो दिमागी तौर पर बहुत परेशानी होती है।

कोरोना का इतना डर सोशल मीडिया मैसेजेस के द्वारा, न्यूज़ चैनल के द्वारा बिठा दिया गया है कि कोरोना को मृत्यु का समानार्थक समझ लिया गया है। सबसे पहले कोरोना को यदि एक प्रकार के बुखार की तरह समझा जाता जिसमें कुछ परेशानियां भी साथ आ जाती हैं जैसे सांस लेने की दिक्कत तो यह ज्यादा सुकून भरा होता। ज्यादा परेशानी तब होती है जब सोशल मीडिया पर घूमते-घूमते कोई मैसेज जिसमें कोरोना को एक भयानक महामारी के रूप में दर्शाया जाता है किसी बीमार व्यक्ति के पास पहुंचते हैं तो वे और भी बीमार हो जाते हैं। तबीयत खराब होने के साथ साथ उनकी मनोस्थिति भी बिगड़ती है।

अस्पताल और समाज के लोगों से जुड़े ज़मीनी अनुभव

अब अस्पताल में जाने के बाद यह भी हमें समझना होगा कि डाक्टर तथा नर्सिंग स्टाफ बार-बार नहीं आ पाते हैं। अब जब भी मरीज को सांस लेने में समस्या होती है तो वे घुटा-घुटा सा महसूस करते हैं और चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी उन्हें इस स्थिति से कोई बाहर निकाले। ऐसे में यदि हमें यह पता हो कि शुरुआत से ही हमें दिन में तीन बार भाप लेनी है, तीन बार गले को साफ रखने के लिए गरारे करने होंगे, गहरी साँस (डीप ब्रीथिंग) बार-बार करनी होगी तो बहुत मदद मिलती है।

पापा को जब भी सांस लेने में दिक्कत होती तो हम उनको धेर्य के साथ इस वायरस से मुकाबला करने के लिए कहते थे। उन्हें बार-बार लगता था कि मेरी उम्र तो 70 वर्ष है तो मेरा बचना तो नामुमकिन है। यहाँ घर पर मम्मी अकेली थीं, वहां अकेलेपन से ज्यादा परेशान कर रहा था समाज वालों का व्यवहार। घर के बाहर लगे लाल रंग की पर्ची ने उस अकेली औरत की जिन्दगी को दूभर बना दिया था। कोई उनसे बात करने तक को तैयार नहीं था। उनको फल-सब्जी दूध आदि जरुरी सामान के लिए भी बहुत गिड़गिड़ाना पड़ता, ऐसा लग रहा था जैसे सब अचानक से दुश्मन बन गए थे।

घर में अकेली माँ, घर का वायरल होता वीडियो और मदद का अभाव

एक दिन तो उनका मोबाइल फ़ोन नीचे गिरने की वजह से बिखर गया और मैं उनसे संपर्क नहीं रख पा रही थीI पड़ोसियों को बहुत फ़ोन लगाया कि कोई तो उनकी मदद कर दे परन्तु किसी ने मदद नहीं की। किसी तरह भगवान ने चमत्कार किया और उन्होंने खुद ही प्रयास करके फ़ोन को ठीक किया। इस लाल पर्ची का विडियो बनकर पूरे एरिया में घूम गया और हमें दिन रात सबके फ़ोन आने लगे, तो इस तरह महसूस हो रहा था की पता नहीं मम्मी-पापा से कितना बड़ा देश द्रोह हो गया है जिसके लिए पूरा समाज उनको ताने मार रहा है। उस दिन मुझे तकनीक के नुकसान ज्यादा गहराई से महसूस हो रहे थे।

मेरे लिए स्थिति ज्यादा कठिन होती जा रही थी क्योंकि यहाँ पापा को बीमारी से लड़ने की हिम्मत देना, मम्मी को समाज से लड़ने की हिम्मत देना और खुद को भी बेहद मजबूत बनाकर रखना था ताकि पूरी स्थिति को संभाल पाऊं। यहाँ अस्पताल में पापा, डॉक्टर की सलाह से बहुत असहाय महसूस करने पर ऑक्सीजन लेने लगे। यहां डॉक्टर आपके पास बार-बार नहीं आ सकते और दूरी से ही आपसे बात करते हैं और सिर्फ आपके द्वारा बताए गए लक्षणों के आधार पर ही आपका इलाज करते हैं। तो ऐसे में हमें खुद बहुत सी जानकारी और धैर्य की आवश्यकता है।

पर बहुत सी जानकारी का मतलब इससे यह कदापि नहीं है कि डॉक्टर से सलाह किए बिना कुछ भी करना शुरू कर दें जैसे पापा ने ऑक्सीजन सप्लाई ज्यादा ले ली उन्हें लगा कि घबराहट दूर करने के लिए ऑक्सीजन लेने पर आराम मिलेगा और तो ऐसे में उनकी खांसी में बहुत बढ़ोतरी होती जा रही थी। तो यहां डॉक्टर ने उन्हें तुरंत ऑक्सीजन हटाने के लिए कहा क्योंकि ज्यादा ऑक्सीजन से गला सूख रहा था।

डॉक्टर की सलाह पर किया पूरा भरोसा

यहां पापा को यह भी लग रहा था कि मुझे मल्टीविटामिन ज्यादा नहीं दिए जा रहे, ग्लूकोज नहीं चढ़ाया जा रहा जबकि डॉक्टर्स के अनुसार इन चीजों की आवश्यकता नहीं थी। यहाँ हमें डॉक्टर के इलाज पर पूरा भरोसा रखना होगा और इधर-उधर से किसी से पूछकर ज्यादा पैनिक ना हों कि आपका इलाज अच्छा नहीं हो रहा इसलिए आप ठीक नहीं हो रहे।

डॉक्टर ने बताया कि ग्लूकोज हम ज्यादा नहीं दे सकते जितना खाना मुंह से खाएंगे उतना फायदा जल्दी होगा। दिन में तीन बार भाप लेना, गरारे करना विटामिन सी रेगुलर लेना हमें खुद से सीखना होगा। पापा को 25 मई से 30 मई तक काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा जिनका हम हल ढूंढने गए और रोज एक नई सीख मिलती थी। बुखार आने तक उन्हें पैरासित्मोल दिया गया। 3 जून से बुखार आना बंद हो गया, ऑक्सीजन सपोर्ट को भी बहुत कम कर दिया और 4 जून से बिल्कुल बंद

‘ध्यान रखें कि हमे बीमारी से लड़ना है, बीमार व परिजनों से नहीं’

यहाँ अपने अनुभव को इतने विस्तार और बारीकी से लिखने का मकसद सिर्फ यही था कि इस महामारी में जब अनिश्चितता का दौर है तो हम ज्यादा से ज्यादा इस बात पर मंथन करें कि इस महामारी से कैसे बचना है? अगर हो सके, तो कैसे धैर्य के साथ इसका सामना करना है। यहाँ हमे सिर्फ बीमारी से दूरी बनानी है बीमार से नहीं और ना ही उनके घरवालों से।

घरवालों को ऐसे लम्हे में अकेला न महसूस होने दें, उनकी हरसंभव मदद करें और उनको अहसास दिलाएं कि आप साथ खड़े हैं। बल्कि हम सब एकजुट होकर इस वायरस से लड़ सकते हैंI यहाँ मेरे इस पूरे सफ़र में मेरे कुछ दोस्तों ने भरपूर सहयोग दिया जो मैं आजीवन नहीं भुला सकती। हम बीमार व्यक्ति से मिलने तो अस्पताल नहीं जा सकते परन्तु उनसे संपर्क निरंतर बनाकर रखें, उनसे उनका हालचाल निरंतर लगातार पूछते रहेंI कोरोना महामारी की कोई दवा नहीं है, आपका शरीर ही आपकी सबसे बड़ी दवा है।

(लेखिका का परिचय: नीता बत्रा वर्तमान में दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में गणित की शिक्षिका हैं। आप जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से वर्तमान में ‘गणित शिक्षण’ में शोध भी कर रही हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण के दौरान हमें किस तरह की सावधानी व्यक्तिगत, सामाजिक, सोशल मीडिया और मेडिकल के संदर्भ में रखनी चाहिए, उन अनुभवों को आपने इस डायरी में तथ्यात्नमक रूप से दर्ज़ किया है। इस लेख को अपने दोस्तों और परिवार के लोगों के साथ विभिन्न माध्यमों ईमेल, फेसबुक, ह्वाट्सऐप और अन्य माध्यमों से जरूर शेयर करें ताकि किसी परिवार की परेशानी कम हो सके। किसी को कोरोना वायरस से लड़ने की हिम्मत और हौसला मिल सके।)

(आप एजुकेशन मिरर को फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर फ़ॉलो कर सकते हैं। वीडियो कंटेंट व स्टोरी के लिए एजुकेशन मिरर के यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। एजुकेशन मिरर के लिए अपनी स्टोरी/लेख भेजें Whatsapp: 9076578600 पर, Email: educationmirrors@gmail.com पर।)

8 Comments

  1. निता जी आपके लेख को मेरे घर के सभी मेंबर्स ने पढा. जाहीर है हम ईसे रीलेट कर पा रहे थे आज की परिस्थीती से . खाना खाते समय हम लोग चर्चा कर रहे थे किस तरीके से आपने परिसथिती का सामना किया ओर हिम्मत जुटा के इस से बाहर भी निकले. समाज के व्यवहार का वर्णन हमे ज्यादती लगा. मरणे के डर से लोग इंसानियात तक भुल जाते है. इस आलेख को पढकर कैसे घर मे बुजुर्ग लोगो की देखभाल कर सकते इस्कों बल मिला. ऐसी परिस्थीतीया बहुत कुछ सिखा जाती है जो वेबिनार या सेमिनार नही कर सकते जैसे की आपने कहा ही है.

  2. Bravo Neeta… You are the 🌞SUN of the family and the Nation

  3. Dr. Shalini Kaushik Love June 26, 2020 at 3:38 pm

    Learning experience

  4. बहुत ही वास्तविक लेख है। अनुभव साझा करने के लिए लेखिका को धन्यवाद। साथ में वृजेश जी को भी धन्यवाद जिन्होंने हमें अवगत कराने का प्रयास किया। काफ़ी लोगों को कोरोना से उबरने में बल मिलेगा। ऐसी अपेक्षा है।

  5. कहानी को पढ़ने के बाद लगा कि नीता बत्रा जी ने विषम परिस्थितियों में खुद को संभाल कर रखा ।मै आपके जज्बे को सलाम करता हुँ ।

  6. Very courageous

  7. Courage….. well done … we can learn form this.

  8. इस लेख को लिखकर आपने आँखे खोलने जैसा काम किया…बहुत-बहुत शुक्रिया। इस कोरोना काल में सभी को जमीनी हकीकत जानना बहुत ज़रूरी है।

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