शिक्षक इंटरव्यू सिरीज़ः ‘दिन-प्रतिदिन बच्चों के साथ-साथ मैं भी कुछ न कुछ नया सीख रही होती हूँ’
एजुकेशन मिरर की ‘शिक्षक इंटरव्यु सिरीज़’ का उद्देश्य शिक्षकों के संघर्ष, जिजीविषा, नेतृत्व, जूझने और सीखने की ऐसी कहानियों को सामने लाना है जो सच में प्रेरित करने वाली हैं। शिक्षक के पेशे के प्रति नई उम्मीद जगाती हैं। शिक्षकों को वास्तविक नेतृत्वकर्ता के रूप में देखती हैं, जो नेपथ्य में भी नेतृत्व की असीम संभावनाओं का निर्माण करते हैं।
शिक्षक इंटरव्यु सिरीज़ की चौथी कड़ी में पढ़िए एजुकेशन मिरर की मैनेजिंग एडिटर डॉ. नीलम वर्मा और दिल्ली के एक विद्यालय में शिक्षिका स्वाति की बातचीत। स्वाति बतौर शिक्षिका बेहद संवेदनशील और बच्चों के प्रति प्रतिबद्धता के साथ काम करने वाली शिक्षिका हैं। अपने प्रयासों को नवीनता से भरना और नई कोशिशों को बेहतर करने का सिलसिला उन्हें एक शानदार शिक्षक बनाता है। विस्तार से पढ़िए यह साक्षात्कार और लिखिए अपनी टिप्पणी।
डॉ. नीलम: स्वाति जी, आपका बचपन कहाँ बीता और उन दिनों को आप कैसे याद करती हैं?
स्वातिः मैं वर्तमान में दिल्ली के ही विद्यालय में टी.जी.टी के पद पर कार्यरत हूँ. मेरा जन्म दिल्ली में हुआ और पढ़ाई भी दिल्ली से ही हुई. बचपन के दिनों को याद करती हूँ तो बहुत आनंद महसूस होता है. बचपन से ही पढ़ने का बहुत शौक रहा. घर में पापा कई तरह कि बच्चों की कहानियों की किताबें लाते थे जैसे नन्दन, चंदा मामा. मुझे हमेशा विद्यालय के नए सत्र का भी इंतज़ार रहता था क्योंकि तब नई-नई किताबें मिलती थीं जिन्हें एक ही दिन में पढ़ने का मन करता था. किताबें शुरुआत से ही मुझे बहुत आकर्षित करती रही हैं और आज मेरी अपनी एक छोटी लाइब्रेरी भी है. जब कभी हम नानाजी के घर उनसे मिलने जाते थे तो वहां भी मामाजी अलग अलग कहानियों कि किताबें और कॉमिक्स पढ़ने को दे दिया करते थे. बचपन बहुत ही स्वछन्द होता है. तब अपने दोस्तों के साथ घंटों कई तरह के खेल खेला करते थे और घर में आते ही मम्मी पापा पढ़ाते थे. जैसे जैसे बड़े होते गए ये यादें बन गईं और बहुत सुनहरी यादें जिन्हें सोच कर सुकून मिलता है.
डॉ. नीलम: जब आपको पहली बार किसी स्कूल में पढ़ाने का मौका मिला तो आपके कैसे अनुभव रहे?
स्वातिः मुझे जब स्कूल में पढ़ाने का जब मौका मिला तो ऐसा लगा कि जिस दिन का इंतज़ार था वह ख्वाहिश अब पूरी होने वाली है. जो भी टीचर ट्रेनिंग के दौरान पढ़ा और सीखा अब उसे कार्यान्वित करने का एक सु-अवसर प्राप्त हो गया था. इसके साथ ही साथ एक ज़िम्मेदारी का अहसास भी था कि छोटे बच्चों के रूप में भविष्य हाथ में है. पहले दिन से ही बच्चों के साथ साथ मेरा भी सीखने का क्रम शुरू हो गया था क्योंकि मेरा मानना है कि जब तक हमारे अन्दर सीखने कि लगन नहीं होगी हम कुछ सिखा भी नहीं पाएंगे.
तो यह सीखने सिखाने का सिलसिला शुरू होते ही बहुत सी नयी चीज़ों का पता चला जो व्यक्तित्व में जुड़ती चली गईं. बच्चों को समझना बहुत ज़रूरी है क्योंकि हर एक बच्चा अपने अलग अलग रंग कक्षा में ले कर आता है जिसे हमे कैनवास पर उतारना होता है. प्रतिभाशाली वे पहले से होते हैं , हमारा काम केवल उन्हें निखारना है. बच्चों को जब हम समझ जाते हैं तो हमारा काम आसान हों जाता है, बच्चे खुद-ब-खुद क्रियाकलाप में भाग लेना शुरू कर देते हैं और विषयों में रूचि दिखाते हैं.
डॉ. नीलम: आप अपने विषय पर बच्चों का ध्यान 30- 40 मिनट तक बनायें रखने के लिए क्या करती हैं?
स्वातिः कक्षा में कई तरह के बच्चे होते हैं और सभी अलग अलग व्यक्तित्व के होते हैं यानि individual differences. एक शिक्षक के रूप में मुझे लगता है कि कक्षा में इन्हीं भिन्नताओं का इस्तेमाल मैं शिक्षण में कर सकती हूँ. मेरा मानना है कि acceptance और flexibility कक्षा में बहुत ज़रूरी है. कक्षा में जितनी सहजता होगी उतना ही किसी भी विषय को आसानी से समझाया जा सकता है. हर एक बच्चे का सोचने का नजरिया अलग होता है जिसे हम कक्षा में विषय वस्तु के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. एक ही चीज़ को करने के बहुत से तरीकों का पता चलता है. इससे सभी बच्चे कक्षा में ध्यान देते हैं और उनकी रूचि विषय में बनी रहती है. बच्चों को बस कार्य में शामिल करना होता है.
डॉ. नीलम: हम सब जीवन भर परीक्षाएं देते हैं/ परीक्षाओं में पास और फेल को किस तरीके से देखती हैं?
स्वातिः सिखाई गई विषय वस्तु का assessment होना चाहिए लेकिन बच्चों कि प्रतिभा और रूचि के अनुसार/ परीक्षाएं सोचने की शक्ति व् तार्किक शक्ति के लिए हों तो बेहतर है न की याद रखने की शक्ति जानने के लिए/ हम सभी एक चीज़ को अलग तरीकों से देखते व समझते हैं/ परीक्षाओं द्वारा यही जानने की कोशिश करनी चाहिए/आज के परिवेश जब हम इंक्लूसिव एजुकेशन कि बात करते हैं तो हमे यह कदम परीक्षाओं में भी उठाना होगा. सभी की क्षमताएं अलग हैं. जहाँ तक पास व फेल की बात है मेरे लिए यह केवल अंकों का हेर फेर है. ज़रूरत है तो बस यह क्षमता उत्पन्न करने की जिससे बच्चे अपनी रूचि व स्ट्रेंथ को पहचान पायें और उस पर काम कर सकें/ साथ ही साथ परीक्षाएं शिक्षकों के लिए ऐसे माध्यम बनें जिससे वे भी बच्चे की क्षमताएं पहचान पायें और बच्चों को उसके अनुसार अवसर प्रदान करें/ परीक्षाएं सिलेबस कवर नहीं बल्कि अनकवर करने का ज़रिया बनें/
डॉ. नीलम: आपने पढ़ाने को ज़्यादा रोचक बनाने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कैसे किया?
स्वातिः मुझे याद है जब मैंने बतौर शिक्षिका जॉइन किया था तब टेक्नोलॉजी धीरे धीरे अपने क़दम शिक्षा क्षेत्र में बढ़ा रही थी. मैंने अपने शिक्षण कार्य में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन से की थी. तब मैं प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका थी और मुझे सभी विषय पढ़ाने होते थे, तो 3-D फिगर्स, डायग्राम और डिजिटल चार्ट पढ़ाने कि विषय वस्तु को और रोचक बनाने व आसानी से समझाने के लिए बहुत उपयोगी रहे. भाषा शिक्षण कि शुरुआत के लिए मैंने कहानियों को वीडियो द्वारा बच्चों को दिखाया फिर धीरे धीरे मुख्य विषय वस्तु की और मोड़ दिया. मैंने कुछ motivational वीडियोस भी बनाई हैं. इन वीडियोस में मैं एक कहानी को अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड करती हूँ और एनीमेशन के द्वारा पूरी विडियो बनाती हूँ. इस तरह से मैं टेक्नोलॉजी को अलग अलग रूप में इर्तेमाल कर इसका दायरा बढ़ा कर बच्चों के लिए शिक्षण अधिगम प्रक्रिया रोचक और सरल बनाने कि कोशिश करती हूँ.
आज के समय की बात करें तो क्लासरूम कि पढ़ाई पूरी तरह से बदल कर अब डिजिटल हो गई है. क्लासेज, होमवर्क, असाइनमेंट्स, टेस्ट्स, प्रोजेक्ट्स सभी एक क्लिक पर मौजूद हैं. विषय वस्तु को सरल बना कर उसे बच्चों तक डिजिटल तकनीक के माध्यम से पहुँचाना आज की परिस्थिति की ज़रूरत है.
डॉ. नीलम: क्या आप क्या बच्चों को स्कूल की किताबों के अलावा किसी और किताब के बारे में बताते हैं? क्या बच्चों ने किसी किताब को लेकर आपस सवाल पूछा है जो उनके कोर्स में शामिल न हों?
स्वातिः कहा जाता है कि किताबें हमारी सबसे अच्छी दोस्त होती हैं क्योंकि ये हमें दुनिया से रूबरू करवाती हैं. ऐसे में यदि बच्चों को कोर्स कि किताबों के अलावा किसी और किताब को उपलब्ध कराया जाए व पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाए तो बच्चे का निश्चित रूप से सर्वांगींण विकास होना संभव है. बच्चों को पढ़ाते हुए मैं कुछ किताबों को पढने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ और यदि मेरे पास या लाइब्रेरी में उपलब्ध होती है तो उन्हें देती भी हूँ. ऐसा ही एक किस्सा याद आया जब मैंने बच्चों के साथ ‘विंग्स ऑफ़ फायर’ (लेखक – अब्दुल ) नमक किताब पर चर्चा कि और उन्हें उसका पी.डी.ऍफ़ version भी दिया था. तब कुछ बच्चों ने मुझे बताया कि वे इस किताब से बहुत इंस्पायर्ड हैं. एक बार एक बच्चे ने साइंस फिक्शन पर किताब पढ़ी और सवाल पूछा कि क्या एलियन वाकई में हैं, ऐसे ही कई सवाल और भी बच्चों ने किये कि अंक कहाँ से आये? कुछ बच्चे अंग्रेजी विषय की किताब, जो कि कोर्स में नहीं थी, पढ़ कर पूछने लगे कि पहले कि अंग्रेजी लिखने में और वर्तमान में लिखने में स्पेल्लिंग्स में अंतर क्यों है?
यह सब देख कर लगता है की हमें बच्चों के ज्ञानार्जन का दायरा भिन्न भिन्न किताबों से बढाने का प्रयास करते रहना चाहिए. इससे बच्चों की सोचने व समझने कि शक्ति को भी बढ़ावा मिलेगा.
डॉ. नीलम: आजकल आप क्या पढ़ रही हैं?
स्वातिः आजकल मैं social and emotional learning, mental health and resilience से सम्बंधित विषय वस्तु पढ़ रही हूँ.
डॉ. नीलम: आपकी इस प्रोफेशन में सबसे बड़ी चाहत क्या है? इस प्रोफेशन में होने की सार्थकता देने के लिए आप क्या कर रहे हैं या ऐसा क्या करना चाहते हैं ताकि आपको लगे की मेरा शिक्षक होना सार्थक हो गया?
स्वातिः शिक्षक बनने का मेरा उद्देश्य बच्चों में एक सकारात्मक सोच जगाना और अपने निर्णय सोच समझ कर लेने की क्षमता को उजागर करना है. उनमें यह क्षमता पैदा करना जिससे वे अपनी प्रतिभाओं को समझ सकें और उन पर काम कर सकें. दिन-प्रतिदिन बच्चों के साथ साथ मैं भी कुछ न कुछ सीख रही होती हूँ और जब हम साथ में सीखते हैं तो बहुत सारी चीज़ें सीख जाते हैं. इसलिए मेरे पास पढ़ाने के लिए कुछ नहीं है बल्कि बच्चों के साथ साथ ही मैं भी सीख्र रही होती हूँ.
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