अनुवाद की कक्षा के नोट्सः भाषा, बोली और व्याकरण
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अंग्रेजी-हिन्दी अनुवाद का एक कोर्स संचालित होता है। इस कोर्स में प्रत्येक वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय समेत अन्य कॉलेजों के विद्यार्थी को राज्यसभा और लोकसभा के साथ निजी क्षेत्रों में बतौर अनुवादक अपना करियर बनाना चाहते हैं, कोर्स में प्रवेश परीक्षा पास करके दाख़िला लेते हैं। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि इस कोर्स के दौरान बहुत से प्रतिभाशाली शिक्षकों से संवाद करने और उनके सानिध्य में सीखने का अवसर मिला। उनके सुझावों ने भाषा के क्षेत्र में काम करने को सुगम और आनंददायी बनाने की राह दी।
हमारे ऐसे ही एक प्रोफ़ेसर की कक्षा के नोट्स आप इस अंश में पढ़ेंगे। प्रोफ़ेसर कृष्ण कुमार गोस्वारी सर की कक्षा में सदैव कुछ न कुछ व्यावहारिक सीखने को मिलता था। जब वे हमें पढ़ा रहे थे उस समय वे एक बड़ी टेक-कंपनी के लिए मशीनी अनुवाद के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे और उन्होंने इस बात की संभावना जताई थी कि आने वाले दिनों में हमें काफी सरल तरीके से किसी भी सामग्री का एक ऐसा अनुवाद उपलब्ध हो सकेगा, जिसे हम पढ़कर आसानी से अर्थ का अनुमान लगा लेंगे।
‘बोली के साथ बदलता है व्याकरण’
भाषा, बोली और व्याकरण के अनुभवों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “जनता बोलती रहती है। व्याकरणविद भी कुछ न कुछ कहता रहता है, लेकिन उसकी कोई नहीं सुनता। इस तरह से व्याकरण बोली के साथ बदलता रहता है। बोली सदैव प्रवाहित होती रहती है और प्रयोग के कारण व्याकरण बदलता है। लोकतांत्रिक भाषा लोगों के प्रयोग के अनुसार परिमार्जित होती रहती है।
उदाहरण के तौर पर फिल्मों में एक्टर का उल्टी टोपी लगाना भी एक फ़ैशन बनकर जनता के बीच स्वीकार्यता पा लेता है। लोग भाषा के साथ तरह-तरह के प्रयोग करते रहते हैं, इनमें से कुछ चल निकलते हैं उदाहरण के दौर पर एसएमस की भाषा। जहाँ You को u लिखकक, Okay को k लिखकर या Take Care को tkr लिखकर संप्रेषित कर दिया जाता है। आप NBT का उदाहरण ले सकते हैं जिसको अंग्रेजी समझ में नहीं आती वह हिन्दी का यह अख़बार नहीं पढ़ सकता है।”
‘सभी भाषाएं मूलतः बोलियां हैं’
कक्षा में होने वाली चर्चा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, “जितनी भाषाएं हैं मूलत: बोली जाने बोलियां हैं> बदलती भाषा के साथ व्याकरण खुद को समायोजित कर लेता है। सुधारी जाने वाली भाषा संस्कृत कहलाई, फिर संस्कृत बोलने वाली भाषा नहीं रह गई। बुद्ध ने अपने सारे उपदेश पाली भाषा में दिए, उस समय यह जनता की भाषा थी। फिर पाली भाषा का व्याकरण बना। रात और दिन के संधिकाल को उषा काल कहा जाता है। ठीक इसी तरीके से दिन और रात के संधिकाल को संध्या काल कहा जाता है। कई विद्वान उषा और संध्या काल का इस्तेमाल न करके संधिकाल कहते हैं।”
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