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पढ़ने की आदत: मोबाइल लाइब्रेरी, बिग बुक्स और पढ़ने का स्वतंत्र समय

कर्नाटक के सरकारी विद्यालय की लाइब्रेरी का एक दृश्य।

बच्चों में पढ़ने की आदत कैसे विकसित करें? अगर यह सवाल आपसे कोई पूछे तो इसका जवाब हो सकता है कि अगर हम बच्चों को किताबों का एक्सपोज़र बार-बार दें, उनको किताबों के साथ एक जुड़ाव विकसित करने दें, किताबों के चित्रों को देखने, उसके ऊपर चर्चा करने और कहानियों व कविताओं को सुनने का आनंद मिले। एक ऐसा माहौल हो जहाँ बच्चे अपनी पसंद को ध्यान में रखते हुए किताबों का चुनाव कर सकें, अपनी पसंद और नापसंद विकसित कर सकें।

  1. गाँव में मोबाइल लाइब्रेरी चलाने के दौरान एक अभिभावक अपने बच्चे को साथ लेकर आए। उन्होंने कहा, “ यह बच्चा घर में बैठकर टेलीविजन देख रहा है, इससे बेहतर है कि यह कहानी की कुछ किताबें पढ़ें या फिर कहानी सुनने और उसपर होने वाली चर्चा में हिस्सेदारी करे।” आमतौर पर अभिभावकों की पहली पसंद में पाठ्यपुस्तके तो शामिल हैं, लेकिन पुस्तकालय की किताबों को वह महत्व हासिल नहीं है। इस महत्व को स्थापित करने के लिए हमें अभिभावकों के साथ संवाद करने और उनको ऐसे अनुभवों से रूबरू करने की जरूरत है।
  2. पढ़ने की आदत विकसित करना एक सांस्कृतिक बदलाव भी है। ऐसा करने के लिए शिक्षकों और अभिभावकों के माध्यम से उदाहरण प्रस्तुत करने की जरूरत है। शिक्षक भी पुस्तकालय की किताबें पढ़ते नज़र आएं। स्कूल में रीडिंग टाइम के दौरान शिक्षक भी बच्चों के साथ बैठकर किताबें पढ़ें तो बच्चों में पढ़ने की स्थायी आदत बनाने वाला माहौल विकसित करने में बड़ी मदद मिलेगी। शिक्षक कहानियों की किताबों के बारे में बातचीत करते हुए दिखाई देंगे तो उसका बड़ा सकारात्मक असर बच्चों के ऊपर पड़ेगा।
  3. पढ़ने की आदत विकसित करने के लिए जरूरी है कि किताबें बच्चों की पहुंच में हों और उनको पढ़ने का स्वतंत्र माहौल मिले। यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है कि किताब तक पहुंचने के लिए बच्चे को किसी से मदद लेने की बजाय खुद से खोजने व पसंद की किताब का चुनाव करने का अवसर मिलना जरूरी है।
  4. बिग बुक, कहानियों व कविताओं के पोस्टर, चित्रों वाली किताबें बच्चों को किताबों से जोड़ना पढ़ने की आदत विकसित करने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, बशर्ते कि इन संसाधनों का सक्रियता के साथ उपयोग किया जाये और वे महज सजावट की विषयवस्तु न बनकर रह जाएं।
  5. पढ़ने का निर्धारित समय विद्यालय के टाइम टेबल में होना जरूरी है और इसके साथ ही साथ इस समय का पुस्तकालय हेतु इस्तेमाल होना भी अत्यंत आवश्यक है। इस दिशा में उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग ने एक बड़ी मंज़िल तय की है। आवश्यकता है कि इसको विद्यालय स्तर पर जीवंतता मिले।  
  6. पढ़ने को करें प्रोत्साहित – रीडर ऑफ द मंथ/ सबसे ज्यादा किताबें पढ़ने को करें रेखांकित। यह विद्यालय स्तर के साथ-साथ हर शैक्षिक संस्थान में ऐसे प्रयासों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
  7. लाइब्रेरी से समुदाय को जोड़ें और पुस्तकालय को लेकर उनकी सोच में करें बदलाव। समुदाय में पढ़ने वाले स्पेश का बनाना इस दिशा में एक बेहद महत्वपूर्ण पहल हो सकती है। समझ के साथ पढ़ने का लक्ष्य पाने की दृष्टि से बेहद अहम हैं पुस्तकालय क्योंकि इसके माध्यम से बच्चों को विविध तरह के बाल साहित्य से परिचित होने और उसका आनंद उठाने का अवसर मिलता है।  

(आप एजुकेशन मिरर को फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो कर सकते हैं। अपने आलेख और सुझाव भेजने के लिए ई-मेल करें mystory@educationmirror.org पर और ह्वाट्सऐप पर जुड़ें 9076578600 )

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