उत्तर प्रदेश के जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान बनेंगे ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’: 10 प्रमुख सुझाव
जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) में शिक्षक-शिक्षा के अंतर्गत सेवापूर्व एवं सेवारत प्रशिक्षण की प्रभावकारिता का अध्ययन टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ मुंबई के द्वारा यूनिसेफ के सहयोग से किया गया। इसी संदर्भ में तैयार की गई रिपोर्ट को बेसिक शिक्षा विभाग और यूनिसेफ के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित एक कार्यशाला में उप-शिक्षा निदेशक/डायट प्राचार्य व डायट प्रवक्ताओं की उपस्थिति में साझा किया गया। यह प्रस्तुतिकरण टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन टीचर एजुकेशन की प्रोफ़ेसर डॉ. बिन्दु व डॉ. रुचि कुमार के द्वारा किया गया और इस प्रस्तुतिकरण पर विभिन्न डायट्स से आए प्रतिनिधियों ने अपने सवाल पूछे और जिज्ञासा का समाधान किया।
‘जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (DIETs) बनेंगे सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’
इस कार्यशाला के रूपरेखा साझा करते हुए यूनिसेफ लखनऊ के एजुकेशन ऑफिसर रवि दयाल ने कहा कि जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान को शिक्षक शिक्षा के सर्वश्रेष्ठ केंद्र के रूप में विकसित करने की दिशा में यह अध्ययन एक यात्रा की शुरूआत भर है, भविष्य में इस रिपोर्ट की अनुशंसा को ध्यान में रखते हुए विभिन्न प्रयासों को जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के स्तर पर क्रियान्वित किया जायेगा और अन्य सुझावों को दृष्टिगत रखते हुए आगे की विस्तृत कार्य योजना बनाकर कार्य किया जायेगा।
कार्यशाला में प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश की सचिव बेसिक शिक्षा श्रीमती अपर्णा यू ने कहा कि प्रत्येक बच्चे के साथ कक्षा-कक्ष की शिक्षण प्रक्रिया में होने वाला संवाद हमारे लिए एक अवसर है, जिसका बच्चों की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से अधिकतम उपयोग करना चाहिए। इसके साथ ही साथ जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में नियुक्त होने वाले प्रवक्ताओं के लिए उन्मुखीकरण की प्रक्रिया को भी मजबूत बनाया जायेगा। डायट व विद्यालय के स्तर पर लोक कलाकारों व स्थानीय प्रतिभाओं को भी ‘करके सीखने’ वाली प्रक्रिया के तहत शामिल किया जा सकता है। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी), लखनऊ के निदेशक डॉ. पवन सचान ने कहा कि हम जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (DIETs) को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (COE) के रूप में विकसित करने के लिए तत्पर और प्रतिबद्ध हैं।
11 जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में किया गया अध्ययन
इस अध्ययन के अंतर्गत उत्तर प्रदेश के 70 डायट्स में से 11 डायट्स (लखनऊ, वाराणसी, अयोध्या, गोरखपुर, बलरामपुर, बरेली, चित्रकूट, अलीगढ़, आगरा, झांसी और मेरठ) में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ की टीम के द्वारा वर्तमान स्थितियों को अवलोकन, शिक्षा विभाग के अधिकारियों, खण्ड शिक्षा अधिकारियों, शिक्षक प्रशिक्षुओं और शिक्षकों के साथ साक्षात्कार व संवाद के माध्यम से समझने का प्रयास किया गया। इसके साथ ही साथ डायट्स से संबंधित विभिन्न ज्वाइंट रीव्यू मिशन की रिपोर्ट्स व सभी 70 डायट्स से प्राप्त सेकेंडरी डेटा के विश्लेषण को भी इस रिपोर्ट का आधार बनाया गया।
इस अध्ययन को रेखांकित करते हुए कहा गया कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जिला स्तर पर डायट्स का मजबूत होना सेवापूर्व और सेवाकालीन प्रशिक्षण को बेहतर बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए करिकुलम को 21वीं सदी के कौशलों व सिद्धांतों के व्यावहारिक अनुप्रयोग के अनुसार अपडेट करने की आवश्यकता, आईसीटी जैसे पाठ्यक्रम को व्यावहारिक अनुभवों व वर्तमान टेक्नोलॉजी के सर्वोत्तम उपयोग से जोड़ने की जरूरत है। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान की तरफ से होने वाले इंटर्नशिप को सिद्धांत को व्यवहार से जोड़ने वाली कड़ी और सबसे बेहतर अनुभवों में से एक बनाने की आवश्यकता है। ताकि शिक्षक प्रशिक्षुओं के लिए यह अध्ययन अवधि का सबसे रोचक और यादगार अनुभव वाली प्रक्रिया बन सके।
‘पेडागॉजिल कंटेंट नॉलेज’ है जरूरी
शिक्षकों के लिए कंटेंट की जानकारी के साथ-साथ बाल मनोविज्ञान और उस विषय की पेडागॉजी यानि बच्चों तक उस विषय की समझ को संप्रेषित करने की जानकारी (पेडागॉजिकल कंटेंट नॉलेज) अत्यंत आवश्यक है।
उदाहरण के तौर पर गणित विषय के लिए गणित विषय की अवधारणात्मक समझ के साथ-साथ गणित विषय में बच्चों की मुश्किलों को कैसे आसान बनाना है यह तरीका भी आना चाहिए, इस कार्य की प्रभावशीलता के लिए बाल मनोविज्ञान की समझ अत्यंत आवश्यक है। कक्षा-कक्ष में शिक्षण की प्रक्रिया में ‘सक्रिय पेडागॉजी’ का उपयोग हो यानि बच्चों को मानसिक रूप से सक्रिय होने, सवाल पूछने, अपनी जिज्ञासा का समाधान करने और विचारों को अभिव्यक्त करने का अवसर मिल रहा हो
इस अध्ययन के प्रमुख 10 सुझाव इस प्रकार हैं –
- सेवा-पूर्व प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम को शिक्षक-शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले वर्तमान शोध और नीतिगत सुझावों के अनुरूप बनाना और डायट प्रवक्ताओं की क्षमता को एक एजुकेशन लीडर के रूप में विकसित करना।
- सभी डायट्स को शिक्षक-शिक्षा और स्कूली सुधार के क्षेत्र में होने वाले शोध (ख़ासतौर पर एक्शन रिसर्च या क्रियात्मक शोध) का प्रमुख केंद्र बनाना और इस संदर्भ में शोध से जुड़े क्षमतावर्धन को एक योजना के तहत क्रियान्वित करना।
- सेवा-कालीन प्रशिक्षण को बेहतर बनाने के लिए टीचर प्रोफेशनल डेवेलपमेंट का वार्षिक कैलेंडर बनाना। इस हेतु विश्वविद्यालयों और ग़ैर-सरकारी संस्थाओं के साथ आपसी सहयोग को प्रोत्साहित करना।
- डायट के द्वारा शिक्षकों के सतत पेशेवर विकास (प्रोफेशनल डेवेलपमेंट) के लिए ऑनलाइन व ब्लेंडेड मोड में उपयोग किये जाने वाले कोर्सेज़ का विकास करना और विभिन्न विषय आधारित प्रोफेशनल लर्निंग कम्युनिटी (जैसे एफएलएन के संदर्भ में भाषा व गणित) का विकास करना और ऑनलाइन/ऑउलाइन मीटिंग के माध्यम से इसे निरंतरता प्रदान करना।
- सपोर्टिव सुपरविज़न की प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिए डायट मेंटर्स/एसआरजी/एआरपी को क्षमतावर्धन के अवसर मेंटरिंग व पेडागॉजी के क्षेत्र में प्रदान करना।
- सभी जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में बुनियादी आधारभूत संरचना और मानवीय संसाधनों को चरणबद्ध तरीके से बेहतर बनाना।
- शिक्षण-अधिगम से जुड़े संसाधनों जैसे नई किताबें, टीएलएम इत्यादि के लिए बजट का प्रावधान करना, स्थानीय विशेषज्ञता का उपयोद करके ऐसे टीएलएम विकसित करना जो स्थानीय सामग्री व परिवेश से जुड़े हुए हों।
- सभी डायट्स के लिए डिजिटल रूप से मौजूद ओपेन एजुकेशन रिसोर्सेज (ओईआर) का एक ऐसा संग्रह बनाना जिसे एक पोर्टल के माध्यम से आसानी से उपयोग किया जा सके।
- सभी डायट्स में कम से कम 50 कंप्यूटर्स वाली लैब इंटरनेट की सुविधा के मौजूद हो और इस डिजिटल सुविधा के रख-रखाव की भी उपयुक्त व्यवस्था की जाये। डायट के क्लासरूम को क्रमिक रूप से स्मार्ट बोर्ड्स से युक्त करना।
- सेवा-पूर्व प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम को शिक्षक-शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले वर्तमान शोध और नीतिगत सुझावों के अनुरूप बनाना और डायट प्रवक्ताओं की क्षमता को एक एजुकेशन लीडर के रूप में विकसित करना।
(आप एजुकेशन मिरर को फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो कर सकते हैं। अपने आलेख और सुझाव भेजने के लिए ई-मेल करें educationmirrors@gmail.com पर और ह्वाट्सऐप पर जुड़ें 9076578600 )
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