Trending

जानना जरूरी है: रवीना मिड डे मील क्यों खाती है?

अपना ‘होमवर्क’ करते स्कूली बच्चे। यह होमवर्क करते बच्चों के चेहरे पर ख़ुशी ग़ौर से देखने लायक है।

शिक्षा में गुणवत्ता और लर्निंग आउटकम के सवालों से परे सरकार स्कूली बच्चों को मिड डे मील (एमडीएम) के बदले पैसे देने की संभावनाएं तलाश रही है

ऐसी तमाम अटकलों के बीच पढ़िये एक ऐसी लड़की की कहानी, जो आदिवासी अंचल में रहती है। उसके परिवार में दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ करना सर्वोच्च प्राथमिकता है।

ऐसे में पढ़ाई करने के लिए उस बच्ची का स्कूल आना भी एक बहुत बड़ी बात है। स्कूल न आने पर भी एमडीएम खाने के लिए आना तो ग़ौर करने लायक बात है।

एक शिक्षक बताते हैं, रवीना मिड डे मील क्यों खाती है? इस सवाल का जवाब मुझे जनगणना वाले काम के दौरान मिला। मुझे हाल ही में पता चला कि तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली इस लड़की के घर की आर्थिक स्थिति बहुत जर्जर है। अगर वह बकरियां चराने जाती है तो एमडीएम वाले टाइम स्कूल आ जाती है।”

‘पढ़ाई के लिए बच्चों को भेजना गर्व की बात’

रवीना के शिक्षक बताते हैं कि अगर इस क्षेत्र में बच्चे छठीं-सातवीं कक्षा में पढ़ते हैं तो उस परिवार के ऊपर हमें गर्व महसूस होता है। क्योंकि वे बहुत विपरीत परिस्थिति में अपने बच्चे को पढ़ने के लिए भेज रहे हैं।

सरकारी स्कूल, मिड डे मील खाते बच्चे, मध्याह्न भोजन योजना,
एक सरकारी स्कूल में मिड डे मील खाने की तैयारी करते हुए।

उन्होंने कहा,  “जनगणना के दौरान मेरी मुलाक़ात एक महिला से हुई जो अपने छह-सात महीने के बच्चे के साथ खेत में मजदूरी कर रही थी।

मैंने उनसे पूछा कि इस बच्चे की घर पर देखभाल करने वाला कोई नहीं है, तो उनका जवाब था कि एक बड़ा बच्चा है लेकिन वह स्कूल जाता है।”

यह इस बात का संकेत है कि आदिवासी अंचल में अभिभावक पढ़ाई का महत्व समझने लगे हैं।

खेती और घर के काम के लिए किसी बच्चे को स्कूल जाने से रोकना सही नहीं है, यह बात उनके व्यवहार में नज़र आती है।

इस लेख के बारे में अपनी टिप्पणी लिखें

%d bloggers like this: