पहली क्लास के बच्चे ने कहा, “पढ़ने से डर लगता है”
18 दिनों की लंबी छुट्टी के बाद स्कूल फिर से खुला। स्कूल में पहली क्लास के बच्चों से बात हो रही थी कि उनकी छुट्टियां कैसी थी? छुट्टियों में उन्होंने क्या-क्या किया? बातचीत के दौरान एक बच्चे ने कहा, “मुझे पढ़ने से डर लगता है। क्योंकि पढ़ना नहीं आता।”
यह बच्चा बारहखड़ी के सहारे अनुमान लगाकर पढ़ने की कोशिश कर रहा है। मगर मात्राओं को अच्छे से न समझ पाने के नाते उसे अपनी याददाश्त से काम चलाना पड़ रहा है।
आज किसी वर्ण के साथ उ की मात्रा लगी होने पर, उसे पढ़ने में दिक्कत हो रही थी। थोड़ी देर बाद उसने इसे ठीक ढंग से पढ़ दिया। तो मैंने पूछा कि तुमने इसे कैसे पढ़ा। उसका जवाब था, “याद करके पढ़ा।”
जब पहली क्लास में पढ़ने वाले इस बच्चे ने कहा कि पढ़ने से डर लगता है, तो बगल में खड़ी पहली क्लास की एक बच्ची ने कहा, “खेलने से डर नहीं लगता?”शायद वह कहना चाहती थी कि जब खेलने से डर नहीं लगता तो भला पढ़ने से क्यों डर लगता है?
पढ़ाई और डर का रिश्ता कैसे टूटे?
पढ़ाई और डर के इस रिश्ते को तोड़ने के लिए मैंने बच्चे से बातचीत करते हुए कहा कि पढ़ना बहुत आसान है। धीरे-धीरे तुम सब भी बहुत अच्छे से पढ़ना सीख जाओगे। एक बच्चा जो अपने क्लास में सबसे अव्वल आता था, उसे इस तरह से अपने भीतर बैठे डर को साझा करते देखकर अच्छा लगा कि वह चीज़ों को बहुत गहराई से समझने की कोशिश कर रहा है। इसका समाधान यही है कि क्लास के सभी बच्चों पढ़ने के लिए सकारात्मक प्रोत्साहन मिले। इसके साथ ही सारे बच्चे समझकर पढ़ने की कोशिश करें। ताकि आगे चलकर उनको पढ़ने में किसी तरह की परेशानी न हो।
वे अटक-अटक कर पढ़ने की बजाया धाराप्रवाह ढंग से किसी पाठ को समझते हुए पढ़ सके। नए साल की नई चुनौतियों का समाधान निकालने की कोशिश जारी रहेगी। पहली चुनौती बच्चों का डर दूर करना है ताकि पढ़ना उनके लिए एक आनंददायक गतिविधि बन सके। इसके लिए आज बच्चों के साथ लायब्रेरी में कुछ समय बिताना हुआ। वहां उन्होंने अपने पसंद की किताबें छांटी और पढ़ने के लिए घर ले गये। यह एक पहल थी। एक क़दम था बच्चों का डर दूर करने की दिशा में ताकि वे किताबों से दोस्ती कर सकें और पढ़ने के वास्तविक आनंद से ख़ुद परिचित हो सकें।
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