ऐसी परीक्षा, जिसमें कोई बच्चा फेल नहीं होगा
अगर परीक्षाएं न हों तो क्या होगा? बच्चे पढ़ना छोड़ देंगे। शिक्षक पढ़ाना छोड़ देंगे। दोनों तरफ से पढ़ाई को लेकर परवाह अपने न्यून्तम स्तर पर पहुंच जायेगी। अगर राजस्थान में पढ़ाई के स्तर की बात करें, तो पिछले कुछ सालों में ऐसा ही हुआ है। आज के हालात के बारे में एक प्रधानाध्यापक ने कहा, “आलम यह है कि शिक्षक न तो पढ़ाना चाहते हैं और न बच्चे पढ़ना चाहते हैं। इसलिए पढ़ाई का स्तर बीते सालों में तेज़ी से गिरा है।”
स्कूल में शिक्षकों की संख्या के बारे में उन्होंने कहा कि किसी भी आठवीं तक के स्कूल में कम से कम छह शिक्षक तो होने ही चाहिए। शिक्षकों के अभाव वाली स्थिति में अगर परिवार जैसा माहौल बनाकर न रखें तो काम करना मुश्किल हो जाये। साथी शिक्षकों को समझा-बुझाकर काम करने के लिए प्रेरित करना होता है। इसी कारण से काम हो पाता है।
आठवीं में बोर्ड परीक्षा का असर
राजस्थान में शिक्षा के गिरते स्तर को सुधारने के लिए शिक्षकों की तरफ से बोर्ड परीक्षाएं फिर से शुरू करने की मांग पिछले कुछ सालों की हो रही थी। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने फिर से आठवीं कक्षा में बोर्ड परीक्षाएं शुरू करवाई। मगर शिक्षा के अधिकार क़ानून के तहत किसी भी बच्चे को फेल नहीं किया जाएगा। बस इसे ‘प्रारंभिक शिक्षा पूर्णता प्रमाण पत्र’ देने के एक जरिये के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि कुछ शिक्षकों को डर है कि अगर उनके स्कूल का परिणाम 40 फीसदी से कम रहता है तो उनकी वेतन वृद्धि रोक दी जाएगी। ऐसा होगा या नहीं, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा। मगर इस तरह की कोशिशों से पढ़ाई को लेकर निद्रा वाली हालत जरूर टूटी है। आठवीं के बच्चों को समय देकर पढ़ाया गया है। बहाना भले ही बोर्ड परीक्षा का रहा हो।
आठवीं क्लास के बच्चों का भी सेंटर जा रहा है। उनकी परीक्षा उनके स्कूल के अलावा किसी और स्कूल में हो रही है। जहाँ उन्हें बाकी बच्चों से मिलने और प्रतिस्पर्धा के माहौल को समझने का एक मौका मिलेगा। मगर असली सवाल यही है कि क्या सिर्फ ‘बोर्ड परीक्षाओं’ के डर से शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाया जा सकता है। वह भी ऐसे हाल में जब छठीं, सातवीं और आठवीं कक्षा के बहुत से बच्चों को पढ़ना-लिखना भी नहीं आ रहा है।
ऐसी स्थिति में जरूरत प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों के पठन कौशल व लेखन कौशल पर व्यवस्थिति ढंग से काम करने की जरूरत है ताकि बच्चा कम से कम ऐसे स्तर तक तो पहुंच सके, जहां वह गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, अंग्रेजी इत्यादि विषयों में अपेक्षित प्रदर्शन कर सके। अपनी बातों को लिखित व मौखिक रूप में आसानी से साझा कर सके। पढ़ने की एक अच्छी आदत का विकास कर सके, जिसकी जरूरत लंबे समय से शिक्षा के क्षेत्र में महसूस की जा रही है।
पढ़ाई का महत्व स्थापित करने की चुनौती
अगर बोर्ड परीक्षाएं समूचे स्कूल में पढ़ाई के महत्व को स्थापित नहीं कर पाती हैं तो क्या होगा? इसके डर का एक सीमित इस्तेमाल सातवीं क्लास को डराने और आठवीं क्लास को परीक्षा के डर से पढ़ने के लिए किया जायेगा। ऐसे में कोर्स की किताबों के सवाल रटने के लिए पासबुक के ऊपर बच्चों की निर्भरता बढ़ेगी। समझने की बजाय चीज़ों को रटने को ज्यादा महत्व मिलेगा। पढ़कर समझने की बजाय, रटकर जवाब देने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा।
कोर्स के इतर किताबों के अध्ययन को हतोत्साहित किया जायेगा, जिसका असर बच्चे के समझकर पढ़ पाने की योग्यता पर पड़ेगा। जबकि यह समय पठन कौशल को मजबूत बनाने की दृष्टि से बेहद अहम होता है। परीक्षा का डर बहुत कारगर नहीं है। हमें पढ़ाने का तरीका भी बदलना होगा। ताकि क्लास में बच्चों की रुचि बनी रहे। ऐसे में मूल्यांकन का कोई भी तरीका अपनाने पर बच्चा बिना डरे हुए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देगा। इसलिए बेहतर होगा कि हम पढ़ने का माहौल पूरे स्कूल में बनायें।
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