बच्चा पढ़ना कैसे सीखता है?
समझ के साथ पढ़ना एक कला है जिसे संवेदनशील शिक्षक ही समझ सकता है। नन्हा बच्चा अनुभवों के भंडार के साथ कक्षा में पढ़ने की शुरुआत करता है। शिक्षक को चाहिए कि इस अनुभव के भंडार को व्यर्थ न जाने दें। बच्चे को पढ़ने की आज़ादी दें, पढ़ते समय अपने अनुभवों का इस्तेमाल करने दें, अनुमान लगाने दें, ताकि बच्चे के लिए पढ़ने की प्रक्रिया सरल हो जाए और नन्हा पाठक आत्मविश्वास से भर उठे।
पढ़ना बगैर गलती के नहीं होता
शिक्षक के लिए स्वयं यह जानना जरूरी है कि दरअसल पढ़ना है क्या? बच्चा पढ़ना कैसे सीखता है? पढ़ना सीखने में सबसे बड़ी बाधा तब आती है जब कक्षा में किताब पढ़ते समय बच्चे से गलती हुई नहीं कि उसे तुंरत डांट दिया जाता है – इतना भी नहीं पढ़ सकते। इसका परिणाम यह होता है कि फिर गलती के डर से बच्चा पढ़ता ही नहीं है।
शिक्षक को यह समझ बनानी होगी कि बच्चा पढ़कर ही पढ़ना सीखता है। पढ़ना बग़ैर गलतियों के नहीं हो सकता। जो वयस्क गलत पढ़ने को बेवकूफी मानते हैं वे शायद पढ़ने की बुनियादी प्रक्रिया को नहीं समझते।
पढ़ने को आसान बनाने की जरूरत
शिक्षक यह बात सदैव ध्यान में रखें कि कोई भी निर्देश पद्धति जो पढ़ने में बाधा पहुंचाती है, वह पढ़ना सीखने में जरूर बाधा पहुंचाएगी।
पढ़ना सीखना आसान बनाने का एकमात्र तरीका पढ़ने को आसान बनाना है। पढ़ना सीखना आसान बनाने का मतलब है कि जब बच्चे को चाहिए तब संकेत मिले, जब जरूरी तो तब टिप्पणी मिले, जब जरूरत हो तो शाबाशी मिले।
एनसीईआरटी के रीडिंग डेवलपमेंट सैल द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘पढ़ना सिखाने की शुरुआत’ में यह लेख संकलित किया गया है। इसका शीर्षक है ‘पढ़ना सिखाने में शिक्षक की भूमिका’ और इसे लिखा है लता पाण्डे जी ने।
nice post sir…..