सिर्फ ‘क’
यह कहानी है उन बच्चों की जो वर्ण सीखने के लिए भी संघर्ष करते हैं। सीखने में पीछे रहने के कई कारण हो सकते हैं। हो सकता है कि बच्चा अनियमित हो। क्लास में पढ़ाई के दौरान उसके ऊपर पर्याप्त ध्यान न दिया जाता हो।
असेसमेंट के माध्यम से यह जानने की कोशिश न हुई हो कि उसने सीखा या नहीं सीखा। बहुत से सरकारी स्कूलों में आपको इस कहानी के पात्र मिल जाएंगे, जिन्होंने कई महीनों की मशक्कत के बाद सिर्फ ‘क’ या सिर्फ ‘आ’ सीखा होगा।
ऐसी स्थिति में क्या करें?
‘क’ सीखने में किस फैक्टर का सबसे ज्यादा योगदान था, यह तो उस दिन की क्लास से ही पता लग सकता है जिस दिन शिक्षक ने यह वर्ण पढ़ाया होगा। इसके अलावा भी कई अन्य कारण बच्चे के सीखने के लिए मददगार हो सकते हैं। जैसे पुनरावृत्ति या बार-बार दोहराव। दूसरे बच्चों को देखकर भी बच्चा सीख सकता है। यहां सबसे ग़ौर करने वाली बात है कि केवल वर्ण सीखने से हम कोई निष्कर्ष नहीं निकाल सकते।
अगर बच्चे वर्ण भी नहीं सीख पा रहा है तो जरूर भाषा के कालांश में बदलाव की जरूरत है। यह बदलाव बच्चों की बैठक व्यवस्था से जुड़ा हो सकता है ताकि हर बच्चे पर बराबर ध्यान दिया जा सके। या फिर क्लास में बच्चे की प्रगति के अनुसार सपोर्ट करने वाली रणनीति के ऊपर काम करने का बेहतर विकल्प भी अपनाया जा सकता है। मगर इसके लिए हमारे पास हर बच्चे का रिकॉर्ड होना चाहिए ताकि हम बच्चों के सीखने में होने वाली प्रगति को ट्रैक कर सकें।
बच्चों की व्यक्तिगत विभिन्नता का रखें ध्यान
हर क्लास में कुछ बच्चे ऐसे होते हैं तो निर्देशों के माध्यम से सीख लेते हैं। शेष बच्चों को व्यक्तिगत सपोर्ट की जरूरत होती है। अन्य बच्चों में से कुछ बच्चे पियर लर्निंग के माध्यम से अपने दोस्तों से भी सीखते हैं। भाषा के एक कालांश में हर तरह की रणनीति का इस्तेमाल करना चाहिए।
पूरे क्लास में अगर एक अच्छा माहौल बने जिसमें बच्चों को पढ़ते हुए प्रोत्साहित किया जाये। उनको बोलने के लिए मौका दिया जाये। क्लास में जो पढ़ाया गया है, उसे बताने का अवसर दिया जाये। बच्चे को कहां दिक्कत हो रही है, सतत रूप से यह समझने और वहां सपोर्ट करना जारी रखा जाये तो बच्चा सिर्फ ‘क’ ही नहीं सीखेगा। उसके अधिगम का स्तर ज्यादा और दायरा निःसंदेह इससे बड़ा होगा।
हम कैसे सीखते हैं?
बच्चों को उदाहरणों के माध्यम से यह भी बताना चाहिए कि हम सीखते कैसे हैं? अगर एक बच्चा अपने सीखने की प्रक्रिया को मजबूत बना लेता है तो फिर वह तेज़ी से बहुत सी चीज़ें सीख लेगा। वह कालांश चाहें भाषा का हो या फिर गणित का। बच्चों में स्वाभाविक रूप से चीज़ों को याद करने की क्षमता होती है। मगर हमें चीज़ों को समझने पर ध्यान देना चाहिए ताकि वह चीज़ों को समझने का प्रयास करे। जो चीज़ें बच्चे को समझ में आ जाएंगी, वे उसके भावी जीवन में लंबे समय तक काम आएंगी।
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