भविष्य के शिक्षा तंत्र की तस्वीर कैसी होगी?
भारत में प्राथमिक शिक्षा के बारे में एक भविष्यवाणी हो सकती है कि सरकारी स्कूलों का अस्तित्व भविष्य में भी बना रहेगा। आँगनबाड़ी केंद्रों को स्कूल-पूर्व तैयारी की दृष्टि से तैयार करने वाले प्रयासों में गति आएगी। ऐसा भी हो सकता है कि सरकारी स्कूलों में नर्सरी से पढ़ाई शुरू हो जाए ताकि ‘स्कूल रेडिनेस’ वाले मुद्दे पर अच्छा काम हो। इसका उद्देश्य बिल्कुल साफ होगा कि प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों के अधिगम स्तर में अपेक्षित सुधार हो सके।
तमाम बदलाओं के बावजूद बच्चों के पढ़ना-लिखना सीखने और गणितीय कौशलों पर काम करने की जरूर बनी रहेगी। क्योंकि सरकारी स्कूलों की संख्या बहुत ज्यादा है। ऐसे में बड़े स्तर पर काम के जरिए ज्यादा से ज्यादा स्कूलों के बच्चों तक पहुंचने की कोशिश होगी। अर्ली लिट्रेसी वाले मुद्दे पर ज्यादा फोकस होगा। इसके साथ ही लाइफ स्किल वाले काम को स्कूली शिक्षा में शामिल करने वाले प्रयासों को भी भविष्य के शिक्षा तंत्र में काफी महत्व दिया जाएगा।
शिक्षक की जगह
हम तकनीक का कितना भी शोर क्यों न मचा लें, कोई भी तकनीक शिक्षक की जगह नहीं ले सकती है। क्योंकि इंसान की संभवानाएं असीमित हैं। एक इंसान के काम को कोई मशीन रिप्लेस नहीं कर सकती।
यह सरकारी स्कूलों में काम करने वाले शिक्षकों के लिए राहत की बात हो सकती है, मगर भविष्य में नामांकन वाले लक्ष्य से आगे शिक्षा की गुणवत्ता और स्टूडेंट लर्निंग आउटकम (एसएलओ) पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा, ऐसे में शिक्षकों के ऊपर पढ़ाई करवाने और बेहतर परिणाम देने का सकारात्मक दबाव बनेगा। यह बात तो तय है।
योजना के अनुसार होगी पढ़ाई
सरकारी स्कूलों में ‘कुछ नहीं’ की जगह ‘कुछ’ ही सही जैसे विकल्पों का इस्तेमाल भविष्य में भी जारी रहेगा। मसलन सिंगल टीचर स्कूल वाली अवधारणा, शिक्षा मित्र, शिक्षा सहायक, पैरा-टीचर्स की व्यवस्था इत्यादि। मगर इससे बच्चों की पढ़ाई की गुणवत्ता प्रभावित होती। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के प्रशिक्षण पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होगी ताकि ज्यादा से ज्यादा शिक्षकों तक शिक्षण के अत्याधुनिक तरीकों व रिसर्च को आसान तरीके से पहुंचाया जा सके।
इसलिए भविष्य में योजनाबद्ध तरीके से पढ़ाने पर काफी जोर होगा। ताकि बच्चों का सीखना सुनिश्चित किया जा सके। भविष्य में क्लासरूम आब्जर्बेशन पर काफी जोर दिया जाएगा, क्योंकि पढ़ाई की असली गुणवत्ता का निर्धारण तो आकलन की बजाय वास्तविक क्लासरूम शिक्षण में होता है।
ई-लायब्रेरी जैसे नए कांसेप्ट आएंगे
अभी भारत के अधिकांश सरकारी स्कूलों में चीज़ें प्रबंधन और सूचनाओं के आदान-प्रदान के संदर्भ में बदल रही हैं। वहीं कुछ क्षेत्रों में कक्षा कक्ष में शिक्षण की प्रक्रिया, प्रधानाध्यापक नेतृत्व विकास, शिक्षक के व्यावसायिक विकास को लेकर प्रशिक्षणों में काफी नये तौर-तरीकों का उपयोग किया जा रहा है। भाषा, गणित और अंग्रेजी में प्राथमिक स्तर पर जरूरी दक्षता व कौशलों का विकास बच्चों में कैसे किया जाए, इसके लिए मॉड्यूल बनाने और उसके लिए शिक्षकों को प्रशिक्षण देने और स्कूल में सपोर्ट के माध्यम से उनके काम को क्लासरूम तक ले जाने के लिए भी सपोर्ट देने वाला सिस्टम बदल रहा है।
कुछ जगहों पर तकनीकी का उपयोग क्लासरूम में भी हो रहा है। ई-लायब्रेरी के रूप में। तो कहीं क्लासरूम आब्जर्बेशन और वीडियो फीडबैक के लिए टैब का उपयोग हो रहा। तकनीकी के आने के कारण कई तरह के मानक फॉर्मेट का उपयोग क्लासरूम आब्जर्बेशन के लिए हो रहा है, यह भारत के स्कूलों के संदर्भ में एक नई पहल है। क्योंकि इस तरह की तकनीक का उपयोग अगर वस्तुनिष्ठ तरीके से किया जाए तो शिक्षकों को ज्यादा सटीक फीडबैक मिलता है। बच्चों के सीखने और पढ़ाने के तरीके के बीच एक तालमेल बैठाने में मदद मिलती है।
क्लास में होगी हर बच्चे की भागीदारी
इसी तरह के प्रयोगों में क्लासरूम को सहभागी बनाने और हर बच्चे को सीखने का अवसर देने की भी बात हो रही है, जो एक सराहनीय प्रयास है। यानि हम भविष्य में एक ऐसे क्लासरूम की कल्पना कर सकते हैं जहां हर बच्चे की आवाज़ को क्लास में महत्व दिया जाएगा। जहाँ शिक्षक बच्चों के घर की भाषा को स्कूल में महत्व देंगे ताकि प्राथमिक स्तर पर बच्चों को खुलने और अपनी बात कहने का मौका मिले। यह बात कही जा सकती है कि भविष्य के स्कूलों के लिए बहुभाषिकता एक पहचाना सा शब्द होगा। क्योंकि स्थानीय भाषा में पाठ्यक्रम बनाने जैसे प्रयोग भी हो रहे हैं जो भविष्य में स्थानीय भाषा के उपयोग वाली संभावनाओं के अनेक रास्ते खोल सकते हैं।
निजी स्कूलों से सरकारी स्कूलों को टक्कर मिलनी तय है। दोनों में एक प्रतिस्पर्धा है। मगर कुछ क्षेत्र अभी भी ऐसे हैं जहां सरकारी स्कूलों ने निजी स्कूलों को पनपने का मौका नहीं दिया है। ऐसे क्षेत्रों में भविष्य की तस्वीर बाकी क्षेत्रों जैसी हो सकती है। क्योंकि बहुत से लोगों को लगता है सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती। वहां शिक्षक पढ़ाते नहीं है। वहां बच्चों को अंग्रेजी नहीं सिखायी जाती है। बच्चों को कंप्यूटर नहीं सिखाया जाता है जो आने वाले भविष्य के लिए बेहद जरूरी है। यानि शिक्षा को लोग भविष्य के रोजगार की संभावनाओं से जोड़कर देखते हैं अगर लोगों को लगता है कि बच्चों में ऐसे कौशलों के विकास पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है जो भविष्य में रोजगार दिला सकते हैं तो लोगों का रूझान निजी स्कूलों की तरफ निःसंदेह जाने वाला है।
भविष्य की चुनौतियों के कितने तैयार हैं शिक्षक?
मगर यह बात भी ग़ौर करने वाली है कि निजी स्कूलों में भी सारे बच्चों के ऊपर ध्यान दिया जा रहा है और सारे बच्चे ही सीख रहे हैं, ऐसी बात भी नहीं है। क्योंकि उनके यहां नामांकन की परेशानी नहीं है। अच्छी फीस ली जाती है। तो एक तरह का एकाधिकार उनको हासिल हो जाता है जहाँ अभिभावकों की बात नहीं सुनी जाती है। मगर स्थितियां भविष्य में ज्यादा लोकतांत्रिक होंगी और अभिभावकों की आवाज़ ज्यादा मुखर होगी, ऐसी उम्मीद जताई जा सकती है। छात्र-शिक्षक रिश्तों में भी बदलाव होंगे। इस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
शिक्षकों को आने वाले भविष्य के लिए खुद को तैयार करना होगा। ताकि शिक्षक भविष्य की चुनौतियों का मुकाबला कर सकें। खुद को भविष्य के सवालों के लिए तैयार कर सकें क्योंकि उनकी भूमिका ज्यादा चुनौतीपूर्ण होने वाली है। विभिन्न तरह के आँकड़ों की ऑनलाइन मौजूदगी ज्यादा व्यवस्थिति फैसले लेने की दिशा में क़दम बढ़ाने की जरूरत को रेखांकित कर रही होगी, ऐसे में संवाद व फैसलों में तकनीक की भूमिका निःसंदेह होगी।
जैसे अभी एमडीएम की सूचना मोबाइल व ऑनलाइन भेजने की बात हो रही है ताकि अच्छी मॉनिटरिंग की जा सके। शैक्षिक नेृतृत्व की भूमिका पर भविष्य में काफी जोर होगा मगर प्रशासनिक कुशलताओं का महत्व बरकरार रहेगा। आप इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं? हमें जरूर बताइए ताकि शिक्षा के भविष्य से जुड़े सवालों पर संवाद के इस सिलसिले को आगे बढ़ाया जा सके।
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