‘इंग्लिश मीडियम’ वाले माध्यमिक विद्यालय कैसे हैं?

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राजस्थान में वसुंधरा राजे सरकार द्वारा बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए बहुत से प्रयास किए जा रहे हैं।

सरकारी स्कूलों में घटते नामांकन को देखकर राजस्थान के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने समस्त सरकारी मशीनरी को नामांकन बढाने के लिए प्रयास करने के निर्देश दिए।

इसी के तहत सरकारी स्कूलों को नामांकन का लक्ष्य दिया गया। गिरीश जी एक सरकारी विद्यालय में आदर्श शिक्षक थे। सरकार के इस नामांकन बढाने की नीति से काफी प्रभावित थे। वे चाहते थे कि सरकारी विद्यालयों का गौरव लौटे और लोग सरकारी अध्यापकों का पहले की भाँति सम्मान करें। उनकी एक बेटी शहर के निजी प्रतिष्ठित विद्यालय के कक्षा बारहवीं में विज्ञान वर्ग से पढ़ाई कर रही थी।

इंग्लिश मीडियम वाला सरकारी स्कूल

शहर के सबसे बड़े सरकारी विद्यालय में कक्षा बारहवीं में विज्ञान वर्ग के लिए इंग्लिश मिडियम प्रारंभ किया गया है, यह जानकारी उनको समाचार पत्रों से मिली। उन्होंने इस स्कूल को कई बार देखा भी है। सूचना के आदान-प्रदान हेतु तथा शहर के महत्वपूर्ण कार्यक्रम भी इस विद्यालय में संपन्न हुआ करते हैं | शिक्षक, बाबुओं के सारे पद भरे हुए हैं तथा विद्यालय का भवन भी आकर्षक था। प्रयोगशाला के लिए उचित संसाधनों का होना, कंप्यूटर क्लास वाले स्मार्ट कक्ष भी बने हुए थे। गिरीश जी ने सोचा जब इतनी सारी सुविधाएँ सरकारी विद्यालय में है और अब तो इंग्लिश मीडियम भी प्रारम्भ हो चुका है तो क्यों ना बिटिया का नामंकन इसी विद्यालय में करा दिया जाए।

rajasthan-educationइन स्कूलों के बारे में राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के फेसबुक अकाउंट से साझा जानकारी साझा की गई है। इसके अनुसार, “प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ावा देने के लिए हमने कई ऐतिहासिक नवाचार किए हैं जिनकी राष्ट्रीय स्तर पर सराहना हुई है। शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ी पंचायत समितियों में स्वामी विवेकानन्द राजकीय मॉडल स्कूलों की स्थापना की गई है।”

इसी पोस्ट में आगे कहा गया, “सीबीएसई पैटर्न के इन विद्यालयों में अच्छी प्रयोगशालाएं, अच्छे क्लास रूम्स और खेल मैदान हैं। इससे विद्यार्थियों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई की शिक्षा सुविधा मिल रही है ताकि वह प्रतिस्पर्धा में किसी से पीछे नहीं रहें। बालिकाओं को आवासीय सुविधा के साथ स्कूलों में उच्च शिक्षा के लिए शारदे बालिका छात्रावासों का निर्माण किया गया है। लड़कियों को ट्रांसपोर्ट वाउचर एवं स्कूटी देने की योजना बनाई गई है ताकि वह पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित हों।”

बिटिया का ‘भविष्य’

राजस्थान सरकारी की इस नीति से प्रभावित होकर गिरीश जी ने अपने परिवार में इस बात कि चर्चा की और माहौल बनाया ताकि सरकारी स्कूल में इंग्लिश मीडियम की बात से से प्रभावित होकर परिवार वाले बिटिया को सरकारी स्कूल में एडमीशन दिलाने के लिए तैयार हो जायें। थोड़ी बहुत ना नुकुर के बात और फीस के पैसों की बचत को देखते हुए बिटिया का नामांकन सरकारी विद्यालय में करा दिया गया और यहीं से शुरु हुई गिरीश जी को बिटिया के भविष्य कि चिंता। उनके मित्रों ने तो यहाँ तक कहा दिया, “यार क्यों बिटिया का भविष्य बर्बाद करने पर तुले हो। स्कूल की फीस भरने के पैसे नहीं थे तो हमसे कह देते। हम दे देते।” गिरीश जी बस यही कहकर रह जाते कि सरकारी शिक्षक ज्यादा योग्य होते हैं देखना बिटिया यहाँ ज्यादा अच्छे से पढेगी।

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सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों को प्रायवेट ट्युशन करना पड़ रहा है।

परन्तु गिरीश जी कि यह ख़ुशी ज्यादा दिन तक नहीं टिकी। रोजाना बेटी घर आकर कहती, “पापा क्लास में टीचर आते ही नहीं हैं। यदि आ भी जातें हैं तो 15-20 मिनट से ज्यादा नहीं रुकते हैं और इधर उधर की बातों में समय जाया करते हैं। हिंदी, अंग्रेजी जैसे विषयों को यह कहकर नहीं पढ़ाते कि तुम तो साइंस के विद्यार्थी हो पास हो ही जाओगे

मध्यांतर में ज्यादा बच्चे घर आ जाते हैं | शिक्षक ट्युशन आने के लिए जोर डालते हैं और ट्युशन नहीं आने वाले बच्चों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रायोगिक परीक्षा में कम नंबर देने कि धमकी भी देते हैं |

सरकारी स्कूल में प्रवेश दिलाने के निर्णय पर सवालिया निशान क्यों?

गिरीश जी सोचा कि एक दिन प्रिसिपल से बात करके इन हालातों से अवगत कराता हूँ परन्तु बच्ची ने यह कहकर रोक दिया कि पापा टीचर स्कूल में परेशान करेंगे और प्रैक्टिकल में नंबर कम देंगे रहने दो आप मत जाओ। मगर चिंता इस बात कि थी कि गिरीश जी और उनकी पत्नी कला के विद्यार्थी रहे थे, इंग्लिश मीडियम में पढ़ने वाली बेटी को साइंस नहीं पढ़ा सकते थे। अंत में उन्होंने निर्णय लिया कि तीनो प्रमुखों विषयों – फिजिक्स, कमेस्ट्री और मैथ की ट्युशन लगा दी जाए।
इसी दौरान प्रथम, द्वितीय टैस्ट भी हो गए बच्चों ने खूब सारी तैयारी की परन्तु ना तो टैस्टों की कापी जाँची गई और ना ही बच्चों को नंबर सुनाए गये | बच्चे काफी दिनों तक इंतजार करते रहे इतने में दुसरे टेस्ट आ गए गिरीश जी ने बार-बार बिटिया को पढ़ने को कहा परन्तु उसका कहना था कि इन परीक्षाओं का कोई मतलब नहीं है ना तो यह बतातें है कि कितना कोर्स आएगा, ना हीं परीक्षा की कापियां जाँची जाती है। धीरे धीरे बिटिया सरकारी स्कूल में प्रवेश कराने के गिरीश जी के निर्णय पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाने लगी और कई बार यह उलाहना भी देती कि पापा आप के पास क्या काम है पढ़ाना तो पड़ता नहीं आप को सरकारी विद्यालय में ।

कैसे बदलेगा शिक्षकों का नजरिया?

इसी कसमकश में अर्धवार्षिक परीक्षाएँ आ गई। बिटिया ने खूब तैयारी कि क्योंकि उसको पता था कि इसका नंबर सत्रांक में जुड़ता है | शाम को गिरीश जी घर आये तो बिटिया को उदास देखा और पूछा कि क्या बात है बेटा उदास क्यों हो क्या पेपर अच्छा नहीं गया क्या ? बिटिया ने जो बताया गिरीश जी सुन कर सन्न रह गए।
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बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए जरूरी है कि स्कूलों में पढ़ाई का वास्तविक माहौल बने।

बिटिया ने बताया, “आज राजस्थान अध्ययन का पेपर था इसके नंबर नहीं जुड़ते हैं मगर पेपर बहुत अच्छा आया था। मैं पेपर हल कर रही थी पेपर समाप्त होने में अभी एक घंटा बाकी था तभी मैडम जो पेपर ले रही थी ने मुझे कॉपी देने को कहा मैंने कहा कि मैडम मेरे बीस नंबर के चार प्रश्न बाकी बाकी है और समय भी है और मुझे चारों प्रश्न आते भी हैं मुझे पेपर हल करना है अभी। मगर मैडम ने चिल्ला कर कहा कि मैं तुम्हारे लिए बैठी रहूंगी क्या और कॉपी छिन कर ले गई।

गिरीश जी ने समझाया कि कोई बात नहीं इसके कौन से नंबर जुड़ते हैं। इसके बाद जो बिटिया ने कहा, “हाँ आप तो कहेंगें हीं क्योंकि आप भी तो सरकारी मास्टर हीं हो ना। इसे सुनकर गिरीश जी उस दिन के बारे में सोंचने लगे कि क्या मेरा निर्णय सही था या नहीं और बिटिया का भविष्य स्वयं के रूप में सरकारी शिक्षक के ऊपर प्रश्न चिन्ह दोनों ने एक बड़ा प्रश्न खड़ा कर दिया।
(एजुकेशन मिरर के लिए यह रियल स्टोरी सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले एक शिक्षक साथी ने भेजी है।)

4 Comments

  1. बहुत-बहुत शुक्रिया कौशलेन्द्र जी। आपका कहना बिल्कुल ठीक है। यह स्टोरी शिक्षक साथी ने ख़ुद लिखी है। इसलिए यह सच्चाई है। आपको यह सच्चाई के करीब लगी। इसके लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। ऐसे ही अपने अनुभव और विचार साझा करते रहिए।

  2. बहुत-बहुत शुक्रिया शिवाली।

  3. pita aur putri ke beech tanav ki vajah sarkari school bana jiska sabse bda karan hai ‘garibi ‘ agr pita ki arthik stithi thik ho to vo sarkari school me hi kyu padhai karaye. sarkari school me bachho par dhyan nahin diya jata hai. aur fir pita umeed karte hai ki unke bachche kuch bdiya marks laye .par jb private english medium school ke bachcho ke marks 98-99% ate hai to vo hi pita dusre bachcho se apne bachcho ko compare karta hai . phir kaha jata hai dusre ka bachcha to doctor engineer ban gaya. aur hamara???????? sarkari school ke bachcho ki english bhi sahi nai hoti tabhi putri aur pita ke rishto me tanav aa jata hai ki kash humme bhi badiya english medium school me dala hota to aaj hum bhi kuch khas hi hote ye ek sachchai hai

  4. True and near to reality.

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