परीक्षा केवल ‘मेमोरी टेस्ट’, दबाव पूरे समाज पर

12वीं पास करने वाले छात्र कॉलेज की पढ़ाई के लिए जाएंगे।
बहुत से छात्रों की परीक्षाएं खत्म हो चुकी हैं। बाकी अगले पर्चे की तैयारी कर रहे हैं। परीक्षा और सफलता के बीच के रिश्ते को एक शिक्षक साथी अजय कान्याल एक शिक्षक के नज़रिए से परीक्षा को समझने की कोशिश कर रहे हैं। इस विषय पर वे बड़ी सारगर्भित बात कहते हैं कि केवल शिक्षकों को दोष देना ठीक नहीं है। इस नज़रिए में बदलाव की जरूरत है। आगे पढ़िए, उन्हीं के शब्दों में उनके मन की बात।
एक शिक्षक के रूप में –
बारहवीं की परीक्षा खत्म होने को है
किसी ने पूछा तुम्हारा प्रोडक्ट कैसा बन रहा है
मैंने अपने पढ़ाये डॉक्टर-इंजीनियर बने बच्चों का जिक्र किया
वो मेरे जवाब से सन्तुष्ट थे
क्या केवल शिक्षक ही बच्चों की सफलता के लिए उत्तरदायी हैं !
क्या अभिवावक , साथी , समाज और परिस्थितयां प्रभाव नहीं डालती ?
खुद बच्चे का कोई योगदान नहीं ?
किसका कितना योगदान है सबके अपने पैमानों में अलग हो सकता है
और असफलता हेतु भी केवल शिक्षक को दोष नहीं जाना चाहिए ।
वैसे उस बच्चे का भी जिक्र होना चाहिए
जो समाज की नजर में असफल था
पर उसने कोशिशें पूरी की थी।
परीक्षा खत्म हो चुकी थी जो ये तय करती कि बच्चे कितना याद कर सकते हैं
और उसके बाद समाज उसे सफलता की अपनी तस्वीर में फिट करके बताता है
कि वो कितना सफल है ।
वो जो बनना चाहता था वो कभी न बन पाया क्योंकि परीक्षा केवल याददाश्त की थी
और दवाब पूरे समाज का था ।
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