Trending

बोर्ड परीक्षा में ‘कम नंबर’ पर ताने क्यों?

education-system-in-india

भारत की शिक्षा व्यवस्था पर एक कॉर्टून

आठ जून को राजस्थान बोर्ड के परीक्षा परिणाम के बाद 9 जून तारीख को उत्तर प्रदेश की बोर्ड परीक्षा के नतीजे घोषित हुए। इसके बाद से फ़ेसबुक पर बधाइयों का सिलसिला जारी है तो रियल लाइफ़ में छात्रों को हतोत्साहित करने और उलाहना देने का खेल भी जारी है।

इस बारे में एजुकेशन मिरर के एक नियमित पाठक ऋषिकेश लिखते हैं, ” आज दोपहर से ही मेरा भतीजा काफ़ी मायूस और उदास था, जिसकी उदासी को बढ़ाने में परिवार एवं पड़ोसी की अहम भूमिका था। जब मैंने फ़ोन किया तो उसी उदासी वाले भाव मे एक ही सवाल किया -“चाचा! इण्टर में मुझे सिर्फ 57% मिला है , अब मैं क्या कर सकता हूँ?” मैंने कहा कि बेटा तुम अब ग्रेजुएशन की पढ़ाई में जुट जाओ, तुम मजिस्ट्रेट , तहसीलदार, शिक्षक, डीएम, एवम सीबीआई जैसे कई महत्वपूर्ण पद पा सकते हो। इतना सब सुनते ही उसका चेहरा ख़ुशियों से चमक उठा।”

आलोचना न करें, छात्रों का हौसला बढ़ाएं

यह हर साल दोहराई जाने वाली घटना है। जो समाज के ख़ास तरह की सोच की परिचायक है। बोर्ड परीक्षाओं का परिणाम आते ही छात्रों पर टीका-टिप्पणी शुरू हो जाती है। साल भर का लेखा-जोखा रखा जाने लगता है। जो पहली बार में खुद हाईस्कूल पास नहीं हुए, वे भी मजा लेने का मौका चूकना नहीं चाहते।

girls-education-in-india

दसवीं और बारहवीं के परीक्षा परिणाम पर काफी चर्चा होती है।

समाज के लोगों के लिए कोई स्कूल होता तो उनको भी पढ़ाया जाता कि भैया बच्चे की इतनी आलोचना न करो कि उसे महसूस हो कि दुनिया में अब कुछ करने के लिए बचा ही नहीं। मुझे खुद कभी 10वीं और 12वीं में फर्स्ट डिवीज़न नहीं मिला। परीक्षा परिणाम के समय मायूसी हुई। थोड़ी परेशानी हुई। लोगों की आत्मविश्वास खा जाने वाली टिप्पणियों से सामना भी हुआ।

ख़ुद के हौसले को कमज़ोर नहीं होने दिया

मगर मैंने कभी खुद के हौसले को कमज़ोर नहीं होने दिया। शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के बाद लगा कि हम लोगों का आत्मविश्वास और हौसला खा जाने वाले समाज के रूप में विकसित हो रहे हैं। जहाँ तारीफ़ करने की संस्कृति का घोर अभाव है। ऐसे माहौल में हमारा अच्छा योगदान हो सकता है कि हम किसी छात्र को कम नंबर के लिए कोसे नहीं। उसे आगे और मेहनत करने के लिए प्रेरित करें।

आख़िर में दो बातें

बोर्ड की परीक्षा में कम नंबर मिलने या फेल हो जाने से ज़िंदगी के सारे रास्ते बंद नहीं हो जाते। बहुत ज्यादा नंबर मिल जाने से ज़िंदगी आसान भी नहीं हो जाती। सबको अपने-अपने हिस्से का संघर्ष करना होता है। अपनी-अपनी राह चुनने और बनाने के लिए।इसलिए छात्रों को मेहनत करने के लिए प्रेरित करें। लोगों की नकारात्मक टीका-टिप्पणी के बीच भरोसे का अहसास दें। नंबरों के महत्व के आगे उनके महत्व को बौना न करें।

4 Comments on बोर्ड परीक्षा में ‘कम नंबर’ पर ताने क्यों?

  1. ऋषिकेश // June 10, 2017 at 12:53 am //

    इसीलिए आपके पोस्ट में खुद की कहानी तलाशता हूँ।

  2. ऋषिकेश // June 9, 2017 at 11:44 pm //

    BHU में नामांकन मेरे लिए स्वस्प्न सरीखा था। जब BA का एंट्रेंस देने गया था तब जिंदगी में पहली बार उतना विशाल स्कूल(विश्वविद्यालय) देखा था। उससे पहले अखबार में सिर्फ BHU का गेट ही देखा था। वहाँ पहुंचने पर मुँह से यही शब्द निकला-” बाप रे इतना बड़ियार स्कूल? यहाँ तो एक क्लास से दूसरे क्लास में जाने के लिए बस करना पड़ता है। ” नामांकन होगा भी की नहीं एक डर बना हुआ था। क्योंकि तब लोगों के बीच इसकी भी चर्चा होती थी कि जो BHU का टेस्ट निकाल लिया समझो वो एयर फोर्स का भी निकाल लेगा। लेकिन इधर किसी तरह घर परिवार से लड़ झगड़ एवं मार खा कर 12वीं तक पढ़ाई कर पाया था। अखबार पढ़ने दूसरे गाँव जाता था। खैर नामांकन हुआ और सेंट्रल लाइब्रेरी का खूब उपयोग किया।

  3. ऋषिकेश // June 9, 2017 at 11:10 pm //

    मेरी टिप्पणी को अपने बेहतरीन पोस्ट में शामिल करने के लिए शुक्रिया। दरअसल मुझे भी कदम कदम पर लोगों के व्यंग्य बाण सुनने और सहने पड़े हैं। जब मैंने दसवीं की परीक्षा सेकण्ड डिवीज़न से पास हुआ तो जबरदस्त आलोचनाओं से सामना हुआ। फिर भी मैं अपने खानदान का पहला लड़का था जो प्रथम प्रयास में दसवीं की परीक्षा पास किया था। और फिर एक दिन वो भी पल आया जब मैं गाँव का पहला लड़का बना BHU में पढ़ने वाला। तब से मैं अपने आस पास के लड़के लड़कियों को शिक्षा एवं जीवन की चुनौतियों से निपटने हेतु तैयार रखता हूँ। जिसके सकारात्मक परिणाम भी दिखता है। अब गाँव की दर्जनों लड़के लड़कियाँ सुबह सुबह स्कूल ड्रेस में सायकिल चलाते हुए गाँव से दूर कस्बा में पढ़ने जाते हैं। जिन्हें देख कर मुझे खुशी होती है।

  4. ऋषिकेश, आपकी बात वाकई एक उम्मीद की रौशनी की तरह से है। हमारी-आपकी सच्चाई एक सी है। मेरी भी यात्रा का अगला पड़ाव बीएचयू बना, 12वीं के बाद।

इस लेख के बारे में अपनी टिप्पणी लिखें

%d bloggers like this: