टीचर मोटिवेशन: बदलाव की राह बनाती ‘आंतरिक प्रेरणा’
नया दौर शिक्षा में टेक्नोलॉजी के बढ़ते उपयोग का है। ऐसे में देश के विभिन्न प्रदेशों के साथ-साथ विकसित देशों में संचालित हो रहे विभिन्न कार्यक्रमों के सीखने की संभावना कई गुना बढ़ गई है। उदाहरण के तौर पर कई यूरोपीय देशों में शिक्षकों के बीच में ‘नेटवर्क मीटिंग’ का कॉन्सेप्ट काफी लोकप्रिय हैं। इसमें हिस्सा लेने से उनके ज्ञान और कौशल में वृद्धि होती है, यह बात वे भली-भांति जानते हैं।
नेटवर्क मीटिंग की संस्कृति
विभिन्न विषयों की थीम पर होने वाली ‘नेटवर्क मीटिंग’ के लिए शिक्षक 230 यूरो (भारतीय मुद्रा में लगभग 17,600 रूपये) मात्र तीन दिनों के लिए भुगतान करते हैं और नेटवर्क मीटिंग्स में हिस्सा लेते हैं।
नेटवर्क मीटिंग के बारे में ऑनलाइन सर्च करते समय आप ख़ुद भी ऐसे विज्ञापनों और सूचनाओं से रूबरू हो सकते हैं। हमारे देश में ऐसे ही अवसर मुफ्त में उपलब्ध हैं, बस इसका लाभ उठाने की जरूरत है।
देश में संचालित विभिन्न ‘शिक्षक नेटवर्क‘ से जुड़े शिक्षक अपने-अपने स्कूलों में बदलाव की ऐसी कहानियां लिख रहे हैं जो आने वाले समय में बाकी शिक्षकों को ऐसे अवसरों का लाभ उठाने और आपसी विचार-विमर्श से समस्याओं को पहचानने और उनका समाधान करने को एक जरूरी प्रक्रिया के रूप में स्थापित करने की राह खोलेंगी।
टेक्नोलॉजी से दोस्ती करते शिक्षक
विभिन्न प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और इंटर कॉलेज के शिक्षकों ने यू-ट्यूब जैसे माध्यमों का रचनात्मक इस्तेमाल करके भाषा, गणित और विज्ञान के शिक्षण को रोचक बनाने की राह खोजी है।
दिल्ली में कुछ शिक्षक अपना यू-ट्यूब चैनल चला रहे हैं। वहीं उत्तर प्रदेश के कुछ शिक्षक अपने अनुभवों को विभिन्न एजुकेशन वेबसाइट्स पर लिखकर अपने अनुभवों और विचारों को साझा कर रहे हैं।
इससे अन्य शिक्षकों को प्रेरणा मिल रही है कि वे जो कुछ अच्छा कर रहे हैं उसे साझा करने की जरूरत है। ताकि आलोचनाओं की निरंतरता में एक सकारात्मक हस्तक्षेप किया जा सके और विश्वास के साथ कहा जा सके कि बहुत कुछ अच्छा भी हो रहा है।
इसी आत्म-विश्वास की जरूरत शिक्षा क्षेत्र में है ताकि सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक अपनी चुनौतियों के साथ-साथ उपलब्धियों को भी रेखांकित करने की राह पर आगे बढ़ सकें।
बदलाव की राह बनाती ‘आंतरिक प्रेरणा’
ऐसे शिक्षकों को आसानी से पहचाना जा सकता है जो ‘आंतरिक प्रेरणा’ (intrinsic motivation) से अपना काम कर रहे हैं। ऐसे शिक्षक अपने लक्ष्य को साफ-साफ पहचानते हैं कि वे स्कूल में बच्चों के बेहतर भविष्य निर्माण के लिए काम कर रहे हैं। उनकी प्राथमिकता में शैक्षिक लक्ष्य और बच्चों की शैक्षिक प्रगति सर्वोपरि होती है।
ग़ैर-शैक्षणिक गतिविधियों में हिस्सा लेने के बाद भी, वे अपने हौसले को कम नहीं होने देते। बच्चों को पढ़ाते हुए और उनको सीखता हुआ देखकर वे अपने काम को जारी रखने के लिए ऊर्जा पाते हैं। ऐसे शिक्षक बाहरी प्रोत्साहन के लिए शुक्रगुजार होते हैं। मगर अपने काम के ‘सकारात्मक परिणाम’ को खुद के लिए पुरस्कार मानकर निरंतर प्रयत्नशील बने रहते हैं।

अपनी उपलब्धि के बारे में बताने के अवसर की खुशी को शिक्षकों के चेहरे पर साफ-साफ पढ़ा जा सकता है।
शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले शोधकर्ताओं के अनुसार ‘आंतरिक प्रेरणा’ की सबसे ख़ास बात है कि यह इंसान को स्वतंत्रता और स्वायत्ता के साथ काम करने का अवसर देती है। छोटे-छोटे निर्णयों की जिम्मेदारी और जवाबदेही के लिए मानसिक तौर पर तैयार करती है।
ऐसे आंतरिक रूप से प्रेरित लोग चुनौतियों को अवसर में तब्दील कर देते हैं। टीम भावना के साथ काम करते हुए अपनी टीम के अन्य सदस्यों से भी सहयोग लेते हैं। काम की सफलता का श्रेय टीम के अन्य सदस्यों के साथ साझा करते हैं। ऐसे शिक्षक काम की प्रक्रिया में प्रोत्साहन के अवसरों को महत्व देते हैं ताकि हर सदस्य को उसके प्रयास के लिए सही समय पर सराहा जा सके।
प्रोत्साहन की संस्कृति से बनने वाले ऐसे माहौल में सतत काम करने की ‘आंतरिक प्रेरणा’ बनी रहती है, जो अच्छे भौतिक वातावरण के साथ-साथ बच्चों के ‘अपेक्षित शैक्षिक अधिगम’ को भी हासिल करने योग्य लक्ष्य में तब्दील कर देती है।
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