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लंदनः ‘एजुकेशन वर्ल्ड फ़ोरम’ में किन मुद्दों पर हो रही है चर्चा?

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इस सम्मेलन में बोलते हुए डैमियन हिंड्स ने कहा कि तकनीक का इस्तेमाल शिक्षकों के काम का बोझ करने में होना चाहिए।

इस साल के ‘एजुकेशन वर्ल्ड फोरम’ का आयोजन 22 से 25 जनवरी तक लंदन में किया जा रहा है। इस सम्मेलन में उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा और दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी हिस्सा ले रहे हैं। इस साल के फोरम की शुरूआत ’21वीं सदी के लिए जरूरी वैश्विक क्षमताएं’ इस टॉपिक पर चर्चा के साथ हुई। इसके अन्य मुद्दों के बारे में विस्तार से पढ़िए इस पोस्ट में।

शिक्षकों के काम की पूरक बने तकनीक

wp-image-12085385पिछले कुछ सालों में शिक्षा के क्षेत्र में तकनीक के इस्तेमाल को लेकर बड़ी बहस छिड़ी हुई है। इस सम्मेल में इस मुद्दे पर भी चर्चा हुई। एक प्रतिभागी ने लिखा, “तकनीक को हमेशा शिक्षकों के काम का पूरक होना चाहिए। किसी भी तकनीकी समाधान के लिए हमें पहले शिक्षकों को डिजिटल तकनीक में दक्ष बनाना होगा और सहयोग प्रदान करना होगा।” 

इस सम्मेलन के बारे में जेमी सावेड्रा ट्वीट करते हैं, “किन न्यूनतम क्षमताओं का विकास करना बेहद महत्वपूर्ण है? एक छोटी सी सूची: पढ़ना, गणित, कला, प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञान, सामाजिक-भावनात्मक कौशल, नागरिकता और नैतिकता।”

इस सम्मेलन में बोलते हुए डैमियन हिंड्स ने कहा कि तकनीक का इस्तेमाल शिक्षकों के काम का बोझ करने में होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में तकनीक का इस्तेमाल छात्रों के लिए एक नई दुनिया के अनुभवों से गुजरने जैसा होगा।

‘सीखने के संकट’ का हल कैसे खोजा जाए?

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लंदन के वर्ल्ड एजुकेशन फोरम में वैश्विक स्तर पर सीखने के संकट का मुद्दा भी चर्चा में रहा।

लंदन में होने वाले वैश्विक शिक्षा विमर्श में ‘सीखने के संकट’ का मुद्दा भी सुर्खियों में छाया रहा। विश्व बैंक समूह की तरफ से अपनी बात रखते हुए जेमी सावेड्रा  ने सीखने के संकट को हल करने के लिए तीन कारकों का जिक्र किया;

  1. कक्षा-कक्ष में पाठ्यक्रम, निर्देश व आकलन के बीच समायोजन स्थापित करना
  2. शिक्षकों के करियर को सबके लिए सीखने को सुगम बनाने पर फोकस
  3. बड़े स्तर पर सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने की प्रबंधन क्षमता का विकास

प्राथमिकता में हो 21वीं सदी के कौशलों का विकास

इस फोरम में 21वीं सदी के कौशलों के विकास का भी जिक्र करते हुए कहा गया, “शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों के कौशल और चरित्र का विकास भी होना चाहिए। इसके लिए छात्र-छात्राओं में आपसी सहयोग, दृढ़ता और आत्म-सम्मान के भाव का विकास हर शिक्षक के एजेंडे में शामिल होना चाहिए।”

शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों की क्षमताओं का विकास होना चाहिए ताकि वे अपने ज्ञान और कौशल का वास्तविक दुनिया में इस्तेमाल कर सकें। शिक्षा को किताबी दायरे से मुक्त होने और जीवन से जुड़ने को भी तरजीह देने वाली बात भारत के संदर्भ में विशेषतौर पर ग़ौर करने वाली है।

‘100 साल पहले जैसे हैं आज के क्लासरूम’

इसके साथ ही चौथी क्रांति का भी जिक्र हुआ कि वर्तमान दौर में शिक्षा को विद्यार्थियों को तैयार करना चाहिए ताकि वे तकनीक के जरिये होने वाले भविष्य के बदलाव हेतु खुद को तैयार कर सकें। जैसे मशीनी बुद्धिमत्ता और बड़े आँकड़े, ऑटोमेशन, न्युरो साइंस और बायो-इंजिनियरिंग इत्यादि।

शिक्षा का उद्देश्य गरीबी और असमानता के दुष्चक्र को तोड़ना भी होना चाहिए। ताकि नये लोगों को शिक्षा के जरिये ग़रीबी से मुक्त होने और बेहतर आर्थिक अवसरों की राह तलाशने में मदद मिल सके।

इस सम्मेलन में क्लासरूम के भौतिक स्वरूप की भी चर्चा हुई। इस दौरान कहा गया कि आज के क्लासरूम 100 साल पहले के क्लासरूम जैसे ही दिखाई देते हैं। अक्सर इसको नवाचारों की विफलता के रूप में देखा जाता है। मगर ऐसा संभव है कि वर्तमान पाठ्यक्रम के लिहाज से ये क्लासरूम अच्छा कर रहे हों।

अच्छे शिक्षक हैं महत्वपूर्ण

इस सम्मेलन में एक बात को ख़ासतौर पर रेखांकित किया गया कि हर शिक्षा मंत्री या संबंधित संस्था शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाना चाहती है, लेकिन सबसे प्रमुख समस्या क्रियान्वयन की है। हर कोई योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर प्रभावशाली ढंग से लागू करने की समस्या से जूझ रहा है। यह भी कहा गया कि उन ‘बड़े विचारों’ का महत्व कम हो जाता है, अगर उसको बड़े स्तर पर लागू नहीं किया जा सकता है।

professional-learning-community-1शिक्षा के क्षेत्र में किसी भी बदलाव का जिक्र हो और शिक्षक की चर्चा न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। इस सम्मेलन में भी क्षमता आधारित पाठ्यक्रम को लागू करने के संदर्भ में बात हो रही थी। एक शिक्षाविद् ने कहा, “क्षमता आधारित पाठ्यक्रम विद्यार्थियों के लिए तभी प्रभावशाली हो सकता है, जब शिक्षक इसका उपयोग कर सकें। शिक्षकों की सहमति लेना और शिक्षण प्रशिक्षण की प्रक्रिया को मजबूत बनाये बग़ैर इतने जटिल शैक्षिक प्रयासों को सफल बनाना संभव नहीं होगा। शिक्षकों के पेशेवर विकास को प्राथमिकता देने के साथ-साथ संस्था प्रमुख के नेतृत्व कौशलों का विकास भी अत्यंत आवश्यक है।”

वहीं एक शिक्षाविद ने कहा, “अगर हम शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना चाहते हैं तो हमें शिक्षण की मात्रा को कम करना होगा।”

शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले सुधार एक दीर्घ-कालीन प्रोजेक्ट हैं, इसके लिए राजनीतिक इच्छा-शक्ति की जरूरत है ताकि बदलाव की प्रक्रिया को आसान बनाया जा सके। शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षिक परिणामों का आकलन हमें बेंचमार्क निर्धारित करने में मदद करते हैं, लेकिन जबतक हम पूरी प्रक्रिया को विस्तार से नहीं समझते, हमें कैसे पता चलेगा कि कौन सी चीज है जिससे बदलाव संभव हो रहा है। पूरी प्रक्रिया को समझने की कोशिश से हमें पता चलेगा कि किन संदर्भों में, कौन सी प्रक्रिया सबसे ज्यादा कारगर होती है।

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